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स्वर्णिम है समस्तीपुर संस्कृत उच्च विद्यालय का इतिहास, आज अपनी दुर्दशा पर बहा रहा है आंसू - सबसे पुराना संस्कृत उच्च विद्यालय

अंग्रेजों के जमाने में स्थापित बिहार के समस्तीपुर का संस्कृत उच्च विद्यालय ( Samastipur Sanskrit High School) अपने स्वर्णिम इतिहास के लिए जाना जाता है. लेकिन आज इसकी हालत जर्जर हो चुकी है. सरकारी उदासीनता के कारण यह भूत बंगला में तब्दील हो चुका है. पढ़िए पूरी खबर..

Samastipur Sanskrit High School
Samastipur Sanskrit High School
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Published : Feb 12, 2022, 1:04 PM IST

समस्तीपुर: समस्तीपुर जिले का सबसे पुराना संस्कृत उच्च विद्यालय (bad condition Of Sanskrit High School in Samastipur) अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. चार कमरों से सुसज्जित इमारत अब ढहने की कगार पर है. विद्यालय में मात्र दो ही कमरा बचा है जिसमें शिक्षकों का कार्यालय एवं दसवीं की कक्षा चलती है. विद्यालय का अपना बड़ा मैदान भी है जिसके चारों तरफ अतिक्रमणकारियों का कब्जा हो चुका है.

पढ़ें- भोजपुर: ऐतिहासिक टाउन प्लस टू हाई स्कूल की हालत जर्जर, बनी रहती है दुर्घटना की आशंका

सन 1973 में बना यह विद्यालय आज अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. किसी समय छात्र-छात्राओं से गुलजार रहने वाला यह विद्यालय आज भूत बंगले जैसी हालत में तब्दील हो चुका है. जिसे पूछने वाला तक कोई नहीं है.इस विद्यालय में पूर्व में जहां संस्कृत के विद्वान पंडित और आचार्य पदस्थापित थे. यहां वेद, उपनिषद, ज्योतिष, साहित्य, भाषा विज्ञान के अलावे रामचरितमानस आदि का पाठ पढ़ाया जाता था.लेकिन समय के करवट लेते ही सारी व्यवस्था चौपट हो गई.

इस विद्यालय में आधा दर्जन शिक्षक, लिपिक एवं आदेशपाल की भी नियुक्ति है. विद्यालय के शिक्षकों के द्वारा बताया गया कि, विद्यालय के सभी कमरे ध्वस्त हो चुके हैं. विद्यालय के जमीन पर अतिक्रमणकारियों के द्वारा कब्जा कर लिया गया है. इसको लेकर जिला प्रशासन, बिहार सरकार, शिक्षा विभाग एवं जनप्रतिनिधियों को लिखित आवेदन देकर कार्रवाई की गुहार लगाई गई थी लेकिन प्रतिफल अभी तक शून्य है.

पढ़ें- नीतीश बाबू जरा इधर भी देखिए, बच्चे तबेले में पढ़ेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे?

सरकार के सौतेलेपन के कारण विद्यालय जर्जर हो गया है. इसमें 4 कमरे और 6 शिक्षक हैं. लेकिन जर्जर भवन के कारण बच्चे नहीं आ पा रहे हैं. पीएचईडी ऑफिस वालों ने झंडा उखाड़ दिया और अतिक्रमण कर लिया. प्रशासन को जानकारी देने के बावजूद आजतक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.- कैलाश प्रसाद, सहायक शिक्षक

"स्कूल पहले बहुत अच्छे तरीके से चल रहा था लेकिन कुछ दिनों से सरकार इसपर ध्यान नहीं दे रही है. बहुत दिनों तक वेतन में भी कटौती होती थी. कुछ भी ढंग से नहीं हो रहा है. सैंकड़ों बच्चे स्कूल से पास आउट हुए और आज अच्छे पदों पर कार्यरत हैं. लेकिन फिर भी स्कूल पर ध्यान नहीं दिया जाता है."- सरिता झा, शिक्षक

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समस्तीपुर: समस्तीपुर जिले का सबसे पुराना संस्कृत उच्च विद्यालय (bad condition Of Sanskrit High School in Samastipur) अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. चार कमरों से सुसज्जित इमारत अब ढहने की कगार पर है. विद्यालय में मात्र दो ही कमरा बचा है जिसमें शिक्षकों का कार्यालय एवं दसवीं की कक्षा चलती है. विद्यालय का अपना बड़ा मैदान भी है जिसके चारों तरफ अतिक्रमणकारियों का कब्जा हो चुका है.

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सन 1973 में बना यह विद्यालय आज अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. किसी समय छात्र-छात्राओं से गुलजार रहने वाला यह विद्यालय आज भूत बंगले जैसी हालत में तब्दील हो चुका है. जिसे पूछने वाला तक कोई नहीं है.इस विद्यालय में पूर्व में जहां संस्कृत के विद्वान पंडित और आचार्य पदस्थापित थे. यहां वेद, उपनिषद, ज्योतिष, साहित्य, भाषा विज्ञान के अलावे रामचरितमानस आदि का पाठ पढ़ाया जाता था.लेकिन समय के करवट लेते ही सारी व्यवस्था चौपट हो गई.

इस विद्यालय में आधा दर्जन शिक्षक, लिपिक एवं आदेशपाल की भी नियुक्ति है. विद्यालय के शिक्षकों के द्वारा बताया गया कि, विद्यालय के सभी कमरे ध्वस्त हो चुके हैं. विद्यालय के जमीन पर अतिक्रमणकारियों के द्वारा कब्जा कर लिया गया है. इसको लेकर जिला प्रशासन, बिहार सरकार, शिक्षा विभाग एवं जनप्रतिनिधियों को लिखित आवेदन देकर कार्रवाई की गुहार लगाई गई थी लेकिन प्रतिफल अभी तक शून्य है.

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सरकार के सौतेलेपन के कारण विद्यालय जर्जर हो गया है. इसमें 4 कमरे और 6 शिक्षक हैं. लेकिन जर्जर भवन के कारण बच्चे नहीं आ पा रहे हैं. पीएचईडी ऑफिस वालों ने झंडा उखाड़ दिया और अतिक्रमण कर लिया. प्रशासन को जानकारी देने के बावजूद आजतक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.- कैलाश प्रसाद, सहायक शिक्षक

"स्कूल पहले बहुत अच्छे तरीके से चल रहा था लेकिन कुछ दिनों से सरकार इसपर ध्यान नहीं दे रही है. बहुत दिनों तक वेतन में भी कटौती होती थी. कुछ भी ढंग से नहीं हो रहा है. सैंकड़ों बच्चे स्कूल से पास आउट हुए और आज अच्छे पदों पर कार्यरत हैं. लेकिन फिर भी स्कूल पर ध्यान नहीं दिया जाता है."- सरिता झा, शिक्षक

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