रोहतासः जिले में मौजूद वर्षों पुराने मकबरे की स्थिति बेहद खराब है. ऐतिहासिक विशेषता, नक्काशी और बनावट में बेहतरीन होने के बावजूद इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. जिसके चलते यह नायाब मकबरा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है.
लोगों की मानें तो अगर इसी तरह इस मकबरे के साथ खिलवाड़ होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब गैरमुल्कों से यहां आने वाले मेहमानों की तादाद में भारी गिरावट देखने को मिलेगी. जाहिर है इससे सरकार को भी राजस्व का काफी नुकसान होगा.
पुरातात्विक महत्व होने के बावजूद इस मुगलकालीन धरोहर पर किसी का भी ध्यान नहीं है. भले ही लोग इसके बारे में अधिक नहीं जानते हैं, लेकिन पुरातत्व के लिहाज से इसका काफी महत्व है. यह मकबरा देखने में ताजमहल की भांति लगता है.
जानकारी के अनुसार, अफगान वास्तुकला के इस नायाब मकबरे को शेरशाह ने बनाया था. शेरशाह का जन्म 1486 में हिंदुस्तान की सरज़मी के बजवाड़ा के होशियापुर जिले में हुआ था. इस महान शासक ने ही सूरी वंश की भी स्थापना की थी. शहर के बीचों बीच अष्टभुजाकार आकृति का बना यह मकबरा झील से घिरा हुआ है.
इतिहासकार डॉक्टर श्याम सुंदर तिवारी ने बताया कि एक समय में इस झील के पानी से लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी गुजारा करते थे, लेकिन बदलते वक्त ने जैसे-जैसे करवट ली वैसे-वैसे हुक्मरानों की नज़र शेरशाह के इस नायाब मकबरे से हटती गई. लिहाजा अब हालात ये है कि झील का पानी पूरी तरह से गंदा हो चुका है. जिससे लोग मकबरे का दीदार सही से नहीं कर पाते हैं.