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रखरखाव के अभाव में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है शेरशाह का ये मकबरा - historic monuments

इस मकबरे के साथ खिलवाड़ होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब गैरमुल्कों से यहां आने वाले मेहमानों की तादाद में भारी गिरावट देखने को मिलेगी. जाहिर है इससे सरकार को भी राजस्व का काफी नुकसान होगा.

मकबरा
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Published : Feb 2, 2019, 12:27 PM IST

रोहतासः जिले में मौजूद वर्षों पुराने मकबरे की स्थिति बेहद खराब है. ऐतिहासिक विशेषता, नक्काशी और बनावट में बेहतरीन होने के बावजूद इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. जिसके चलते यह नायाब मकबरा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है.

लोगों की मानें तो अगर इसी तरह इस मकबरे के साथ खिलवाड़ होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब गैरमुल्कों से यहां आने वाले मेहमानों की तादाद में भारी गिरावट देखने को मिलेगी. जाहिर है इससे सरकार को भी राजस्व का काफी नुकसान होगा.

पुरातात्विक महत्व होने के बावजूद इस मुगलकालीन धरोहर पर किसी का भी ध्यान नहीं है. भले ही लोग इसके बारे में अधिक नहीं जानते हैं, लेकिन पुरातत्व के लिहाज से इसका काफी महत्व है. यह मकबरा देखने में ताजमहल की भांति लगता है.

रखरखाव के अभाव में खराब हो रहा मकबरा
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जानकारी के अनुसार, अफगान वास्तुकला के इस नायाब मकबरे को शेरशाह ने बनाया था. शेरशाह का जन्म 1486 में हिंदुस्तान की सरज़मी के बजवाड़ा के होशियापुर जिले में हुआ था. इस महान शासक ने ही सूरी वंश की भी स्थापना की थी. शहर के बीचों बीच अष्टभुजाकार आकृति का बना यह मकबरा झील से घिरा हुआ है.

इतिहासकार डॉक्टर श्याम सुंदर तिवारी ने बताया कि एक समय में इस झील के पानी से लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी गुजारा करते थे, लेकिन बदलते वक्त ने जैसे-जैसे करवट ली वैसे-वैसे हुक्मरानों की नज़र शेरशाह के इस नायाब मकबरे से हटती गई. लिहाजा अब हालात ये है कि झील का पानी पूरी तरह से गंदा हो चुका है. जिससे लोग मकबरे का दीदार सही से नहीं कर पाते हैं.

रोहतासः जिले में मौजूद वर्षों पुराने मकबरे की स्थिति बेहद खराब है. ऐतिहासिक विशेषता, नक्काशी और बनावट में बेहतरीन होने के बावजूद इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. जिसके चलते यह नायाब मकबरा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है.

लोगों की मानें तो अगर इसी तरह इस मकबरे के साथ खिलवाड़ होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब गैरमुल्कों से यहां आने वाले मेहमानों की तादाद में भारी गिरावट देखने को मिलेगी. जाहिर है इससे सरकार को भी राजस्व का काफी नुकसान होगा.

पुरातात्विक महत्व होने के बावजूद इस मुगलकालीन धरोहर पर किसी का भी ध्यान नहीं है. भले ही लोग इसके बारे में अधिक नहीं जानते हैं, लेकिन पुरातत्व के लिहाज से इसका काफी महत्व है. यह मकबरा देखने में ताजमहल की भांति लगता है.

रखरखाव के अभाव में खराब हो रहा मकबरा
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जानकारी के अनुसार, अफगान वास्तुकला के इस नायाब मकबरे को शेरशाह ने बनाया था. शेरशाह का जन्म 1486 में हिंदुस्तान की सरज़मी के बजवाड़ा के होशियापुर जिले में हुआ था. इस महान शासक ने ही सूरी वंश की भी स्थापना की थी. शहर के बीचों बीच अष्टभुजाकार आकृति का बना यह मकबरा झील से घिरा हुआ है.

इतिहासकार डॉक्टर श्याम सुंदर तिवारी ने बताया कि एक समय में इस झील के पानी से लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी गुजारा करते थे, लेकिन बदलते वक्त ने जैसे-जैसे करवट ली वैसे-वैसे हुक्मरानों की नज़र शेरशाह के इस नायाब मकबरे से हटती गई. लिहाजा अब हालात ये है कि झील का पानी पूरी तरह से गंदा हो चुका है. जिससे लोग मकबरे का दीदार सही से नहीं कर पाते हैं.

Intro:बहरहाल जिसतरह से इस नायब मक़बरे के साथ खेलवाड़ किया जारहा है ज़ाहिर है एकदिन इसका नुकसान इसका ज़रूर देखने को मिलेगा। इसतरह से अगर खामियां रही तो ग़ैरमुलकों से आने वाले मेहमानों की तादाद में भारी गिरावट आसकती है। जिसके बाद सरकार को भी राजस्व की भारी कमी महसूस होगी और अपने मुल्क की भी बदनामी होगी।


Body:अफगान वस्तु कला के ये नायब मक़बरा शेरशाह ने बनाया था। शेरशाह का जन्म 1486 में हिंदुस्तान के सरज़मी के बजवाड़ा के होशियापुर जिला में हुआ था। इस महान शाशक ने ही सूरी वंश की भी आस्थापन की थी। इसी शेरशाह ने इतिहासिक शहर सासाराम को शेरशाह नाम का एक मक़बरा देकर दुनिया के नक़्शे पर ला दिया। शहर के बीचोंबीच बना अष्टभुजाकार मक़बरा झील के बीच मे मौजद है। इतिहासकार डॉक्टर श्याम सुंदर तिवारी बताते है कि एक समय में झील के पानी से लोग अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी गुज़रा करते थे। इसके अलावे मुस्लिम समाज के लोग इसी पानी से वजू जैसे पाक काम को भी अंजाम दिया करते थे। झील का का पानी लोगों के लिए एक सहारा बना हुआ था। लेकिन उससे भी ज़्यादा उस झील के साफ पानी का दीदार ग़ैरमुल्क से आए हुए मेहमानों द्वारा किया जाता था। लेकिन बदलते वक्त ने जैसे जैसे करवट लिया यहां के हुक्मरानों की नज़र शेरशाह के इस नायब मक़बरे से हटता गया। लिहाज़ा अब नतीजा ये हो गया कि झील का पानी पूरी तरह से गंदा और खराब हो चुका है। इतना ही नहीं पूरे झील के पानी से गंदी बदब्बू आती है नतीजा ये होता है कि लोग मक़बरे का दीदार सही से नहीं कर पाते है। गौरतलब है कि जिस तरह से पूरा मक़बरा झील के बीचोंबीच बसा है ज़ाहिर है उसके गंदे पानी से उसकी बुनियाद कमज़ोर होते जारही है। इसका नतीजा साफ देखा जासकता है की बार प्रशासन को भी इसकी सूचनाएं दी गई लेकिन अबतक कोई ठोस पहल नहीं हो पाया है।


Conclusion:बहरहाल जिसतरह से इस नायब मक़बरे के साथ खेलवाड़ किया जारहा है ज़ाहिर है एकदिन इसका नुकसान इसका ज़रूर देखने को मिलेगा। इसतरह से अगर खामियां रही तो ग़ैरमुलकों से आने वाले मेहमानों की तादाद में भारी गिरावट आसकती है। जिसके बाद सरकार को भी राजस्व की भारी कमी महसूस होगी और अपने मुल्क की भी बदनामी होगी।
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