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रोहतास में शिक्षा के नाम के पर बच्चों के भविष्य से हो रहा खिलवाड़

भोखड़वा गांव के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. यहां के स्कूल में शिक्षा व्यवस्था बिलकुल ध्वस्त हो गई है

बदहाल स्कूल
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Published : Mar 28, 2019, 11:04 AM IST

रोहतास: जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर कैमूर पहाड़ी पर भोखड़वा गांव मौजूद है. जहां इस गांव के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जारहा है. यहां के स्कूल में शिक्षा व्यवस्था बिलकुल ध्वस्त हो गई है. वहींस्कूल के शिक्षक मनमानी करते हैं.

बदहाल स्कूल

स्कूल जिस इलाके में मौजूद है वहां अधिकारियों का पहुचना मुश्किल है. नतीजा, इसका फायदा यहां के टीचर उठाते हैं. वह कभी कभार हीं बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल आते है. वहीं बच्चों को मध्याह्न भोजन भी नहीं मिलता है तो छात्रों को सरकार की तरफ से चलने वाली तमाम योजनाओं का लाभ भी नहीं मिलता. इतना ही नहीं स्कूल में न तो पीने का पानी है, ना हीं शौचालय है. क्लास रूम में गुरुजी ब्लैक बोर्ड की जगह रूम में लगी लोहे की खिड़कियों पर हीं पढ़ाते हैं.

सरकार के दावों की खुली पोल

एक तरफ जहां सरकार शिक्षा के नाम पर सरकार सबसे अधिक रुपये खर्च करने का दावा करती है. वहीं सरकार के तामाम दावों की पोल भी सरकारी स्कूल खोल देती है. कैमूर पहाड़ी पर बसा इस गांव में तक़रीबन पचास से अधिक घर है. लिहाज़ा इनके घरों के बच्चे गांव की ही प्राइमरी स्कूल में बुनियादी शिक्षा हासिल करने जाते है.

रोहतास: जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर कैमूर पहाड़ी पर भोखड़वा गांव मौजूद है. जहां इस गांव के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जारहा है. यहां के स्कूल में शिक्षा व्यवस्था बिलकुल ध्वस्त हो गई है. वहींस्कूल के शिक्षक मनमानी करते हैं.

बदहाल स्कूल

स्कूल जिस इलाके में मौजूद है वहां अधिकारियों का पहुचना मुश्किल है. नतीजा, इसका फायदा यहां के टीचर उठाते हैं. वह कभी कभार हीं बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल आते है. वहीं बच्चों को मध्याह्न भोजन भी नहीं मिलता है तो छात्रों को सरकार की तरफ से चलने वाली तमाम योजनाओं का लाभ भी नहीं मिलता. इतना ही नहीं स्कूल में न तो पीने का पानी है, ना हीं शौचालय है. क्लास रूम में गुरुजी ब्लैक बोर्ड की जगह रूम में लगी लोहे की खिड़कियों पर हीं पढ़ाते हैं.

सरकार के दावों की खुली पोल

एक तरफ जहां सरकार शिक्षा के नाम पर सरकार सबसे अधिक रुपये खर्च करने का दावा करती है. वहीं सरकार के तामाम दावों की पोल भी सरकारी स्कूल खोल देती है. कैमूर पहाड़ी पर बसा इस गांव में तक़रीबन पचास से अधिक घर है. लिहाज़ा इनके घरों के बच्चे गांव की ही प्राइमरी स्कूल में बुनियादी शिक्षा हासिल करने जाते है.

Intro:रोहतास। जिला मुख्यालय से तक़रीबन चालीस किलोमीटर दूर कैमूर पहाड़ी पर भोखड़वा गांव मौजूद है। जहां इस गांव के बच्चों का भविष्य अंधकार में गुज़र रहा है।


Body:गौरतलब है कि एक तरफ जहां सरकार शिक्षा के नाम पर सबसे अधिक रुपये खर्च करने का दावा करती है वहीं सरकार के तामाम दावों की पोल खोलता रोहतास के ये स्कूल ये बताने के लिए काफी है कि कोस तरह से सरकार शिक्षा के नाम पर बच्चों का भविष्य बर्बाद करने में लगी है। कैमूर पहाड़ी पर बसा इस गांव में तक़रीबन पचास से अधिक घर है। लिहाज़ा इनके घरों के बच्चे गांव की ही प्राइमरी स्कूल बुनियादी तालीम हासिल करने जाते है। लेकिन स्कूल की खस्ता हाल इस बात का सबूत दे रही है कि किस तरह से यहां के शिक्षक मनमानी करते है। ज़ाहिर स्कूल जिस इलाके में मौजूद है वहां अधिकारियों का पहुचं पाना मुमकिन नहीं है। नतीजा इसका फायदा वहां के टीचर खूब उठाते है। क्यों कि स्कूल में टीचर शायद ही बच्चों को पढ़ाने के लिए आते है। वहीं स्कूल के क्लास पांच की पढ़ने वाली एक छात्रा ने बताया कि गुरुजू कभी कभी स्कूल आते है। उनकी जगह गांव का ही कोई और युवक पढ़ाने का काम करता है। बच्चों पढ़ाई का तो आलम ये है कि उन्हें अंग्रेजी में वन टू तक कि स्पेलिंग नहीं आती है। इन बच्चों को न तो मध्यान भोज ही नसीब होता है और न ही उन्हें सरकार की तरफ से चलने वाली तमाम योजनाओं का ही लाभ मिल पा रहा है। उन बच्चों के जिस्म को एक ड्रेस तक नहीं नसीब नहीं हुआ है। ज़हीर है इस तरह की लापरवाही से सवाल खड़ा होना ज़रूरी है कि किस तरह से अधिकारियों की लापरवाही की वजह से इन मासूमों की ज़िंदगी बर्बाद की जारही है। इतना ही नहीं स्कूल में न तो पीने का पानी है नाहीं शौचालय ही है। क्लास रूम में गुरुजी ब्लैक बोर्ड की जगह रूम में लगी लोहे की खिड़कियों को ही ब्लैक बोर्ड बना डाला है।


Conclusion:ज़ाहिर है सरकार के द्वारा इतने पैसे खर्च करने बाद भी गरीब बच्चों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है। उन्हें न तो सही से शिक्षा मिल रहा है और नाहीं उनका उन्हें हक़।


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