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हौसलों ने लिख दी विकास की कहानी, रेशम के धागों से संवारी जिंदगानी - purnea

कामयाबी की कहानी लिखने वाली ये वो महिलाएं हैं, जिन्होंने कौड़ियों के भाव में बिकने वाली मलबरी से साड़ियों की बिक्री तक का सफर तय किया. अपने बलबूते कोकून से बनने वाले रेशम की साड़ी बनवाकर लाखों तक का मुनाफा कमाया. जीविका दीदियों की यह खुशी दोगुनी तब हो गई, जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के जरिए इनके काम की तारीफ की.

Mulberry cultivation
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Published : Feb 27, 2020, 7:21 AM IST

पूर्णिया: कहा जाता है कि जिनके हौसले चट्टानों से ज्यादा फौलादी होते हैं, आसमां खुद उनकी इबादत में नीचे झुक जाता है. इन कथन को सच कर दिखाया है पूर्णिया की आदर्श जीविका मलबरी उत्पादन समूह से जुड़ी जीविका दीदियों ने. उनके मेहनत और जज्बे की तारीफ खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में की है. पीएम की सराहना के बाद धमदाहा के जीविका समूह से जुड़ी महिला किसान फूली नहीं समा रहीं.

Mulberry cultivation
मलबरी की खेती से जुड़ी जीविका दीदियां

पीएम की सराहना के बाद महिला किसानों में खुशी की लहर
कामयाबी की कहानी लिखने वाली ये वो महिलाएं हैं, जिन्होंने कौड़ियों के भाव में बिकने वाली मलबरी से साड़ियों की बिक्री तक का सफर तय किया. अपने बलबूते कोकून से बनने वाले रेशम की साड़ी बनवाकर लाखों तक का मुनाफा कमाया. जीविका दीदियों की यह खुशी दोगुनी तब हो गई, जब खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के जरिए इनके काम की तारीफ की.

Mulberry cultivation
पीएम मोदी के मन की बात सुनती जीविका दीदी

जानिए जीविका दीदियों की कांटों से लेकर कामयाबी तक की कहानी
ईटीवी भारत की टीम जीविका दीदियों के इस सफर की कहानी जानने धमदाहा प्रखंड के अमारी ,नंदग्राम व किशनपुर बलुआ जैसे गांव पहुंची. अमारी वहीं गांव है, जहां पहली बार जीविका समूह का काम शुरू हुआ. अमारी की ग्रामीण महिलाएं ही पहली बार आदर्श जीविका मलबरी महिला उत्पादक समूह से जुड़ी थी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बेरोजगार बैठी महिलाएं बनी स्वावलंबी
जीविका दीदीओं के महीनों की मेहनत से शहतूत या मलबरी के पेड़ पर रेशम के कीड़ों से तैयार कोकून बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर बिक जाया करते थे. जी-तोड़ मेहनत के बावजूद भी इन्हें उसकी कीमत नहीं मिल पा रही थी. जीविका दीदीओं ने इन्हें कौड़ियों के भाव बेचने के बजाय मुनाफा कमाने का रास्ता निकाला. सूखे कोकून से तैयार रेशम के धागों से बनी साड़ियों को राजधानी के सरस मेला में बेचना शुरू किया. इसके बाद जीविका समूह की इन दीदियों को न सिर्फ लाखों का मुनाफा हुआ, बल्कि उचित दाम मिलने के साथ ही कभी बेरोजगार बैठी महिलाएं स्वाबलंबी बन गई.

Mulberry cultivation
रेशम के धागे से बनी साड़ियां

मलबरी समूह से जुड़कर जीविका दीदियों की किस्मत
मलबरी जीविका समूह से जुड़ी दीदियां बताती हैं कि महीनों की मेहनत से तैयार होने के बावजूद शहतूत या मलबरी के पेड़ पर रेशम के कीड़ों से कोकून तैयार होने में महीनों का परिश्रम लगता. जब बेचने की बारी आती तो खरीदार इसे ही कौड़ियों के दाम ले जाते. इससे बचने के लिए धमदाहा के अमारी और ऐसे ही दजनों गांव की महिलाएं आदर्श जीविका मलबरी महिला उत्पादक समूह से जुड़ी. इसके बाद मलबरी के पौधों से बने कोकून को बंगाल के मुर्शिदाबाद, बिशुनपुर, भागलपुर के नाथनगर और बांका के अमरपुर का बाजार मिला. इसके बाद सिल्क की साड़ियों की राजधानी पटना के सरस मेले के अलावा अलग-अलग प्रदेशों में लगने वाले मेलों में भी डिमांड और खपत बढ़ने लगी

Mulberry cultivation
रेशम के धागे से साड़ी बनाते बुनकर

मलबरी से मालामाल हो रहीं धमदाहा की जीविका दीदियां
पटना के सरस मेले सहित प्रदेश के दूसरे मेलों में साड़ियों का स्टॉल संचालित करने वाली अमारी गांव की रानी और पिंकी बताती हैं कि मेले में सिल्क की ये साड़ियां 2 हजार से लेकर 30 हजार रुपए तक में बिकती हैं. इससे उन्हें लागत का 4 गुना तक मुनाफा होता है. लिहाजा इसी लागत का परिणाम रहा कि देखते ही देखते धमदाहा की इस समूह से इस प्रखंड की 700 महिलाएं इस काम से जुड़ गई.

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सरस मेला में लगाया गया स्टॉल

मलबरी की खेती से जुड़े अनजाने तथ्य
मलबरी की खेती करने वाली महिलाएं बताती हैं कि जिले के धमदाहा प्रखंड से मलबरी की खेती से तकरीबन 700 जीविका दीदियां जुड़ी हैं. वहीं 2019-20 के आंकड़ों पर एक नजर दौड़ाए तो इन जीविका दीदियों ने 1500 किलोग्राम कच्चा कोकून तैयार किया. इसे सुखाने के बाद इसका परिमाण 500 किलोग्राम ड्राई कोकून हुआ. वहीं इस ड्राई कोकून से 150 किलोग्राम रेशम का धागा बना. जीविका समूह की दीदियां बताती हैं कि 1 किलोग्राम रेशम के धागे से सिल्क की 2 साड़ियां तैयार हो जाती हैं. इसके मुताबिक मुनाफा लाखों में जाता है. वहीं कोकून ए, बी ,सी और डी श्रेणी में बंटा होता है. ए श्रेणी के कोकून 350, बी के 300, सी के 250 और डी श्रेणी के कोकून 150 की कीमत पर बिकते हैं. पहले इसी ए श्रेणी के कोकून को ही खरीदार 150 में खरीदते थे.

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रेशम की साड़ी

पूर्णिया: कहा जाता है कि जिनके हौसले चट्टानों से ज्यादा फौलादी होते हैं, आसमां खुद उनकी इबादत में नीचे झुक जाता है. इन कथन को सच कर दिखाया है पूर्णिया की आदर्श जीविका मलबरी उत्पादन समूह से जुड़ी जीविका दीदियों ने. उनके मेहनत और जज्बे की तारीफ खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में की है. पीएम की सराहना के बाद धमदाहा के जीविका समूह से जुड़ी महिला किसान फूली नहीं समा रहीं.

Mulberry cultivation
मलबरी की खेती से जुड़ी जीविका दीदियां

पीएम की सराहना के बाद महिला किसानों में खुशी की लहर
कामयाबी की कहानी लिखने वाली ये वो महिलाएं हैं, जिन्होंने कौड़ियों के भाव में बिकने वाली मलबरी से साड़ियों की बिक्री तक का सफर तय किया. अपने बलबूते कोकून से बनने वाले रेशम की साड़ी बनवाकर लाखों तक का मुनाफा कमाया. जीविका दीदियों की यह खुशी दोगुनी तब हो गई, जब खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के जरिए इनके काम की तारीफ की.

Mulberry cultivation
पीएम मोदी के मन की बात सुनती जीविका दीदी

जानिए जीविका दीदियों की कांटों से लेकर कामयाबी तक की कहानी
ईटीवी भारत की टीम जीविका दीदियों के इस सफर की कहानी जानने धमदाहा प्रखंड के अमारी ,नंदग्राम व किशनपुर बलुआ जैसे गांव पहुंची. अमारी वहीं गांव है, जहां पहली बार जीविका समूह का काम शुरू हुआ. अमारी की ग्रामीण महिलाएं ही पहली बार आदर्श जीविका मलबरी महिला उत्पादक समूह से जुड़ी थी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बेरोजगार बैठी महिलाएं बनी स्वावलंबी
जीविका दीदीओं के महीनों की मेहनत से शहतूत या मलबरी के पेड़ पर रेशम के कीड़ों से तैयार कोकून बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर बिक जाया करते थे. जी-तोड़ मेहनत के बावजूद भी इन्हें उसकी कीमत नहीं मिल पा रही थी. जीविका दीदीओं ने इन्हें कौड़ियों के भाव बेचने के बजाय मुनाफा कमाने का रास्ता निकाला. सूखे कोकून से तैयार रेशम के धागों से बनी साड़ियों को राजधानी के सरस मेला में बेचना शुरू किया. इसके बाद जीविका समूह की इन दीदियों को न सिर्फ लाखों का मुनाफा हुआ, बल्कि उचित दाम मिलने के साथ ही कभी बेरोजगार बैठी महिलाएं स्वाबलंबी बन गई.

Mulberry cultivation
रेशम के धागे से बनी साड़ियां

मलबरी समूह से जुड़कर जीविका दीदियों की किस्मत
मलबरी जीविका समूह से जुड़ी दीदियां बताती हैं कि महीनों की मेहनत से तैयार होने के बावजूद शहतूत या मलबरी के पेड़ पर रेशम के कीड़ों से कोकून तैयार होने में महीनों का परिश्रम लगता. जब बेचने की बारी आती तो खरीदार इसे ही कौड़ियों के दाम ले जाते. इससे बचने के लिए धमदाहा के अमारी और ऐसे ही दजनों गांव की महिलाएं आदर्श जीविका मलबरी महिला उत्पादक समूह से जुड़ी. इसके बाद मलबरी के पौधों से बने कोकून को बंगाल के मुर्शिदाबाद, बिशुनपुर, भागलपुर के नाथनगर और बांका के अमरपुर का बाजार मिला. इसके बाद सिल्क की साड़ियों की राजधानी पटना के सरस मेले के अलावा अलग-अलग प्रदेशों में लगने वाले मेलों में भी डिमांड और खपत बढ़ने लगी

Mulberry cultivation
रेशम के धागे से साड़ी बनाते बुनकर

मलबरी से मालामाल हो रहीं धमदाहा की जीविका दीदियां
पटना के सरस मेले सहित प्रदेश के दूसरे मेलों में साड़ियों का स्टॉल संचालित करने वाली अमारी गांव की रानी और पिंकी बताती हैं कि मेले में सिल्क की ये साड़ियां 2 हजार से लेकर 30 हजार रुपए तक में बिकती हैं. इससे उन्हें लागत का 4 गुना तक मुनाफा होता है. लिहाजा इसी लागत का परिणाम रहा कि देखते ही देखते धमदाहा की इस समूह से इस प्रखंड की 700 महिलाएं इस काम से जुड़ गई.

Mulberry cultivation
सरस मेला में लगाया गया स्टॉल

मलबरी की खेती से जुड़े अनजाने तथ्य
मलबरी की खेती करने वाली महिलाएं बताती हैं कि जिले के धमदाहा प्रखंड से मलबरी की खेती से तकरीबन 700 जीविका दीदियां जुड़ी हैं. वहीं 2019-20 के आंकड़ों पर एक नजर दौड़ाए तो इन जीविका दीदियों ने 1500 किलोग्राम कच्चा कोकून तैयार किया. इसे सुखाने के बाद इसका परिमाण 500 किलोग्राम ड्राई कोकून हुआ. वहीं इस ड्राई कोकून से 150 किलोग्राम रेशम का धागा बना. जीविका समूह की दीदियां बताती हैं कि 1 किलोग्राम रेशम के धागे से सिल्क की 2 साड़ियां तैयार हो जाती हैं. इसके मुताबिक मुनाफा लाखों में जाता है. वहीं कोकून ए, बी ,सी और डी श्रेणी में बंटा होता है. ए श्रेणी के कोकून 350, बी के 300, सी के 250 और डी श्रेणी के कोकून 150 की कीमत पर बिकते हैं. पहले इसी ए श्रेणी के कोकून को ही खरीदार 150 में खरीदते थे.

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रेशम की साड़ी
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