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लॉकडाउन के कारण बेहाल हुए दिहाड़ी मजदूर, काम के बदले मिलता है पुलिस का डंडा

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Published : May 7, 2021, 2:32 PM IST

बिहार में 15 मई तक लगाए गए लॉक डाउन का असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ता दिख रहा है. ये लोग अन्य दिनों की तरह काम की तलाश में 30 से 40 किमी की दूरी तयकर पूर्णिया पहुंच तो रहे हैं लेकिन लोग इनसे काम लेने में परहेज कर रहे हैं. ऐसे में इन मजदूरों के खाने तक पर आफत आन पड़ी है.

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लॉकडाउन के कारण बेहाल हो रहे हैं दिहाड़ी मजदूर

पूर्णियाः बिहार सरकार की ओर से लगाए गए लॉकडाउन का सीधा असर जिले के दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. जिले में दिहाड़ी पर काम करनेवाले मजदूर रोज सुबह में 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय कर पूर्णिया तो पहुंच रहे हैं, लेकिन इन्हें कोई काम मिल नहीं रहा है. बल्कि कई मौके पर पुलिस से पिटना पड़ जाता है.

इसे भी पढ़ेंः सर...चेहरे पर पिंपल है... इलाज करवाना है... E-Pass चाहिए, पढ़िए DM साहब का जवाब

दिहाड़ी मजदूरों से परहेज कर रहे है लोग
स्थानीय लोग भी इन मजदूरों से अपने घरों में काम करवाने से फिलहाल बच रहे हैं. लोग मान रहे हैं कि ये मजदूर रोज किसी न किसी के घरों में काम करते हैं और ऐसे में इनसे संक्रमण के फैलने का खतरा ज्यादा है. लॉकडाउन के कारण 11:00 बजे के बाद इन मजदूरों के पास वापस लौटने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता है, क्योंकि 11:00 बजे के बाद जिले में पूर्ण लॉकडाउन लागू हो जाता है .

देखें वीडियो.

''यहां पर 40 रुपया एक पीठ का भाड़ा खर्च करके आते हैं. काम नहीं मिलता है. बाल-बच्चा कैसे खाएगा. कोई काम नहीं मिल रहा है. सरकार भी कुछ नहीं कर रही है.''- बबलू राय, मजदूर

''सड़क पर निकलने पर पुलिस पिटाई करती है. कहती है बाहर मत निकलो. बच्चे क्या खाएंगे. हमलोग तो दूर-दूर से यहां आए हैं.''- संदीप, मजदूर

पुलिस के डंडे भी खाते हैं मजदूर
ऐसे में इन दिहाड़ी पर काम कर रहे लोगों को घर लौटने को रास्ते में पुलिस के डंडे भी खाने पड़ते हैं. क्योंकि इन लोगों को पास पुलिस को ये विश्वास दिलाने के लिए कि ये देहाड़ी के मजदूर हैं, कोई प्रूफ नहीं होता. ऐसे में रोज 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय कर पूर्णिया आने और काम नहीं मिलने के बाद पुलिस के डंडे खाकर घर वापस लौटने वाले इन मजदूरों को ये चिंता सती रही है कि घर में चूल्हा कैसे जलेगा.

काम करने की छूट, लेकिन काम नही है
सरकार की गाइडलाइन में मजदूरों को काम करने की छूट तो मिली है लेकिन इन्हें काम नहीं बल्की पुलिस के डंडे खाने को मिल रहे हैं. इन मजदूरों के पास मजदूरी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है जिससे कि ये लॉकडाउन में अपना और अपने घरवालों का पेट पाल सकें. लिहाजा इन्हें रोज पूर्णिया काम की तलाश में आना पड़ता है. ये दिहाड़ी मजदूर सरकार से कोई दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था की आस जोह रहे हैं जिससे इनके घर का चूल्हा जल सके.

पूर्णियाः बिहार सरकार की ओर से लगाए गए लॉकडाउन का सीधा असर जिले के दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. जिले में दिहाड़ी पर काम करनेवाले मजदूर रोज सुबह में 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय कर पूर्णिया तो पहुंच रहे हैं, लेकिन इन्हें कोई काम मिल नहीं रहा है. बल्कि कई मौके पर पुलिस से पिटना पड़ जाता है.

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दिहाड़ी मजदूरों से परहेज कर रहे है लोग
स्थानीय लोग भी इन मजदूरों से अपने घरों में काम करवाने से फिलहाल बच रहे हैं. लोग मान रहे हैं कि ये मजदूर रोज किसी न किसी के घरों में काम करते हैं और ऐसे में इनसे संक्रमण के फैलने का खतरा ज्यादा है. लॉकडाउन के कारण 11:00 बजे के बाद इन मजदूरों के पास वापस लौटने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता है, क्योंकि 11:00 बजे के बाद जिले में पूर्ण लॉकडाउन लागू हो जाता है .

देखें वीडियो.

''यहां पर 40 रुपया एक पीठ का भाड़ा खर्च करके आते हैं. काम नहीं मिलता है. बाल-बच्चा कैसे खाएगा. कोई काम नहीं मिल रहा है. सरकार भी कुछ नहीं कर रही है.''- बबलू राय, मजदूर

''सड़क पर निकलने पर पुलिस पिटाई करती है. कहती है बाहर मत निकलो. बच्चे क्या खाएंगे. हमलोग तो दूर-दूर से यहां आए हैं.''- संदीप, मजदूर

पुलिस के डंडे भी खाते हैं मजदूर
ऐसे में इन दिहाड़ी पर काम कर रहे लोगों को घर लौटने को रास्ते में पुलिस के डंडे भी खाने पड़ते हैं. क्योंकि इन लोगों को पास पुलिस को ये विश्वास दिलाने के लिए कि ये देहाड़ी के मजदूर हैं, कोई प्रूफ नहीं होता. ऐसे में रोज 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय कर पूर्णिया आने और काम नहीं मिलने के बाद पुलिस के डंडे खाकर घर वापस लौटने वाले इन मजदूरों को ये चिंता सती रही है कि घर में चूल्हा कैसे जलेगा.

काम करने की छूट, लेकिन काम नही है
सरकार की गाइडलाइन में मजदूरों को काम करने की छूट तो मिली है लेकिन इन्हें काम नहीं बल्की पुलिस के डंडे खाने को मिल रहे हैं. इन मजदूरों के पास मजदूरी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है जिससे कि ये लॉकडाउन में अपना और अपने घरवालों का पेट पाल सकें. लिहाजा इन्हें रोज पूर्णिया काम की तलाश में आना पड़ता है. ये दिहाड़ी मजदूर सरकार से कोई दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था की आस जोह रहे हैं जिससे इनके घर का चूल्हा जल सके.

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