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तीनों प्रहर बदलता है मां सरस्वती का स्वरूप, छन-छन की आती है आवाज, बुद्ध को भी दिया था दर्शन - SARASWATI PUJA 2025

बिहार का प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर, जहां मां का स्वरूप तीनों प्रहर में अलग-अलग रहता है. मां ने भगवान बुद्ध को भी दर्शन दिया था.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 2, 2025, 4:37 PM IST

गया: 2 फरवरी को सरस्वती पूजा मनाया जाएगा. विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना धूमधाम से की जाती है. इस मौके पर एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में विख्यात है. बोधगया के रतनारा गांव में स्थापित मां सरस्वती की महिमा अद्भुत है.

मां का चमत्कार: माता सरस्वती का यह मंदिर प्राचीन मंदिर है. चमत्कार की बात करें तो प्रतिमा काले अष्टधातु की है, लेकिन माता सफेद मुख में ही दर्शन देती हैं. यहां लोग माता से विद्या ही नहीं बल्कि संतान सुख का भी आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. माता से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए काफी दूर-दूर से लोग आते हैं.

बिहार का प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर (ETV Bharat)

हंस पर सवार अष्टभुजी मां: यहां माता सरस्वती की प्रतिमा अष्टभुजी है. माता हंस पर सवार हैं. वीणा पुस्तक, शंख आदि उनके हाथों में है. अष्टभुजी माता के रूप में माता सरस्वती यहां लोगों को दर्शन देती हैं और सच्चे मन से मन्नत मांगने वालों की मुरादे पूरी करती हैं.

प्रतिमा से छन-छन की आवाज: मंदिर के सेवक ललन प्रसाद बताते हैं कि माता सरस्वती की प्रतिमा करीब चार फीट की है. काले पत्थर में रही माता की प्रतिमा अष्टधातु की बताई जाती है. कहा जाता है कि इसे हल्का झटका देकर छूने पर छन-छन की आवाज आती है. माता सरस्वती की प्रतिमा को चमत्कार करने वाली देवी के रूप में माना जाता है.

Famous Saraswati Temple Of Bihar
बिहार का प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर (ETV Bharat)

तीनों प्रहर बदलता है रूप: माता सरस्वती की प्रतिमा का स्वरूप तीनों प्रहर बदलता है. मंदिर के सेवक ललन प्रसाद के अनुसार माता का स्वरूप सुबह के समय में बाल रूप में, दोपहर में युवा रूप में और रात में प्रौढ रूप में प्रतीत होता है. माता तीनों प्रहर अपना रूप बदलती है.

"दो दशक पहले यहां से प्रतिमा उखाड़कर चोरों द्वारा ले जाने की कोशिश की गई थी किंतु कुछ दूरी पर जाने के बाद ही प्रतिमा को रख दिया था. प्रतिमा को ले जाने में चोर सफल नहीं हुए क्योंकि उनसे प्रतिमा फिर नहीं उठ पाई थी." -ललन प्रसाद, माता सरस्वती मंदिर के सेवक

Famous Saraswati Temple Of Bihar
बिहार का प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर (ETV Bharat)

काफी पूजा पाठ के बाद प्रतिमा उठा पाए लोग: सुबह में इस घटना की जानकारी हुई तो लोग पहुंचे और प्रतिमा उठाना चाहे तो प्रतिमा उठ नहीं रही थी. बाद में स्थानीय मठ से आचार्य को बुलाया गया. उन्होंने पूजा अर्चना की और कमल का फूल प्रतिमा पर रखा. इसके बाद प्रतिमा को चार-पांच लोगों ने आराम से उठाया और फिर से इस मंदिर में प्रतिमा को स्थापित किया गया.

शंकराचार्य के युग से है मंदिर: ब्राह्मणी घाट के आचार्य मनोज कुमार मिश्रा बताते हैं कि शंकराचार्य युग से यह मंदिर है. यानि यह मंदिर हजारों साल पुराना है. चमत्कार करने वाली माता के रूप में मां सरस्वती यहां विराजमान हैं. माता के संबंध में कई कीर्तियां प्रचलित हैं. जहां तक उन्हें जानकारी है कि माता की काले रंग में इतनी भव्य प्रतिमा जल्दी नहीं मिलती है. यहां की बड़ी मान्यता यह है कि माता विद्या ही नहीं, संतान सुख का आशीर्वाद भी देती हैं.

"भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए निकले थे तो इस मंदिर के पास रहे वट वृक्ष के नीचे साधना की थी. यहीं पर माता सरस्वती ने उन्हें साक्षात दर्शन दी थी. इसके बाद उन्होंने यहां से थोड़ी दूर आगे वट वृक्ष के नीचे साधना की थी और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी." -मनोज कुमार मिश्रा, आचार्य, ब्राह्मणी घाट

मुख्य पिंडवेदियों में एक सरस्वती तीर्थ: आज भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली अंतर्राष्ट्रीय धरोहर महाबोधि मंदिर के रूप में है. वट का वृक्ष महाबोधि मंदिर परिसर में बोधिवृक्ष के रूप में है. इस तरह माता सरस्वती के मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. माता के इस मंदिर को पुराण शास्त्रों में सरस्वती तीर्थ के नाम से जाना जाता है. यहां पितरों को मोक्ष दिलाने के निमित्त पिंडदान करने का विधान है. मोक्ष धाम गया जी में पिंडदान करने को आने वाले सरस्वती तीर्थ को भी पहुंचते हैं.

यह भी पढ़ें: 2 या 3 फरवरी, कब मनाई जाएगी सरस्वती पूजा? दूर हो गया सारा कंफ्यूजन

गया: 2 फरवरी को सरस्वती पूजा मनाया जाएगा. विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना धूमधाम से की जाती है. इस मौके पर एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में विख्यात है. बोधगया के रतनारा गांव में स्थापित मां सरस्वती की महिमा अद्भुत है.

मां का चमत्कार: माता सरस्वती का यह मंदिर प्राचीन मंदिर है. चमत्कार की बात करें तो प्रतिमा काले अष्टधातु की है, लेकिन माता सफेद मुख में ही दर्शन देती हैं. यहां लोग माता से विद्या ही नहीं बल्कि संतान सुख का भी आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. माता से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए काफी दूर-दूर से लोग आते हैं.

बिहार का प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर (ETV Bharat)

हंस पर सवार अष्टभुजी मां: यहां माता सरस्वती की प्रतिमा अष्टभुजी है. माता हंस पर सवार हैं. वीणा पुस्तक, शंख आदि उनके हाथों में है. अष्टभुजी माता के रूप में माता सरस्वती यहां लोगों को दर्शन देती हैं और सच्चे मन से मन्नत मांगने वालों की मुरादे पूरी करती हैं.

प्रतिमा से छन-छन की आवाज: मंदिर के सेवक ललन प्रसाद बताते हैं कि माता सरस्वती की प्रतिमा करीब चार फीट की है. काले पत्थर में रही माता की प्रतिमा अष्टधातु की बताई जाती है. कहा जाता है कि इसे हल्का झटका देकर छूने पर छन-छन की आवाज आती है. माता सरस्वती की प्रतिमा को चमत्कार करने वाली देवी के रूप में माना जाता है.

Famous Saraswati Temple Of Bihar
बिहार का प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर (ETV Bharat)

तीनों प्रहर बदलता है रूप: माता सरस्वती की प्रतिमा का स्वरूप तीनों प्रहर बदलता है. मंदिर के सेवक ललन प्रसाद के अनुसार माता का स्वरूप सुबह के समय में बाल रूप में, दोपहर में युवा रूप में और रात में प्रौढ रूप में प्रतीत होता है. माता तीनों प्रहर अपना रूप बदलती है.

"दो दशक पहले यहां से प्रतिमा उखाड़कर चोरों द्वारा ले जाने की कोशिश की गई थी किंतु कुछ दूरी पर जाने के बाद ही प्रतिमा को रख दिया था. प्रतिमा को ले जाने में चोर सफल नहीं हुए क्योंकि उनसे प्रतिमा फिर नहीं उठ पाई थी." -ललन प्रसाद, माता सरस्वती मंदिर के सेवक

Famous Saraswati Temple Of Bihar
बिहार का प्रसिद्ध सरस्वती मंदिर (ETV Bharat)

काफी पूजा पाठ के बाद प्रतिमा उठा पाए लोग: सुबह में इस घटना की जानकारी हुई तो लोग पहुंचे और प्रतिमा उठाना चाहे तो प्रतिमा उठ नहीं रही थी. बाद में स्थानीय मठ से आचार्य को बुलाया गया. उन्होंने पूजा अर्चना की और कमल का फूल प्रतिमा पर रखा. इसके बाद प्रतिमा को चार-पांच लोगों ने आराम से उठाया और फिर से इस मंदिर में प्रतिमा को स्थापित किया गया.

शंकराचार्य के युग से है मंदिर: ब्राह्मणी घाट के आचार्य मनोज कुमार मिश्रा बताते हैं कि शंकराचार्य युग से यह मंदिर है. यानि यह मंदिर हजारों साल पुराना है. चमत्कार करने वाली माता के रूप में मां सरस्वती यहां विराजमान हैं. माता के संबंध में कई कीर्तियां प्रचलित हैं. जहां तक उन्हें जानकारी है कि माता की काले रंग में इतनी भव्य प्रतिमा जल्दी नहीं मिलती है. यहां की बड़ी मान्यता यह है कि माता विद्या ही नहीं, संतान सुख का आशीर्वाद भी देती हैं.

"भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए निकले थे तो इस मंदिर के पास रहे वट वृक्ष के नीचे साधना की थी. यहीं पर माता सरस्वती ने उन्हें साक्षात दर्शन दी थी. इसके बाद उन्होंने यहां से थोड़ी दूर आगे वट वृक्ष के नीचे साधना की थी और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी." -मनोज कुमार मिश्रा, आचार्य, ब्राह्मणी घाट

मुख्य पिंडवेदियों में एक सरस्वती तीर्थ: आज भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली अंतर्राष्ट्रीय धरोहर महाबोधि मंदिर के रूप में है. वट का वृक्ष महाबोधि मंदिर परिसर में बोधिवृक्ष के रूप में है. इस तरह माता सरस्वती के मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. माता के इस मंदिर को पुराण शास्त्रों में सरस्वती तीर्थ के नाम से जाना जाता है. यहां पितरों को मोक्ष दिलाने के निमित्त पिंडदान करने का विधान है. मोक्ष धाम गया जी में पिंडदान करने को आने वाले सरस्वती तीर्थ को भी पहुंचते हैं.

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