पटना: बिहार की तकदीर में बाढ़ ऐसी त्रासदी है, जो हर साल अपनी विनाश लीला से हर बिहारी के मन को डरा जाती है. साल-दर-साल बढ़ रही बाढ़ की विनाश लीला को देखकर अब मन की आस भी नहीं बंध रही है कि इससे निदान का कोई रास्ता निकल पाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि बाढ़ को लेकर जितना काम किया जा रहा है, वह कम पड़ जा रहा है और बाढ़ की विभीषिका बढ़ती जा रही है.
बिहार को डूबने से बचाने को लेकर कोई योजनाएं आएंगी, इसको लेकर मन में आस ही नहीं बंध पा रही है. कोसी त्रासदी को छोड दें, तो 2020 में बिहार में बाढ़ ने 1 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया है और पानी वैसे क्षेत्रों में भी गया है, जहां पहले जलजमाव नहीं हुआ.
40 साल से बाढ़ का दंश झेल रहा बिहार
पिछले 40 सालों से यानी, 1979 से अब तक बिहार लगातार हर साल बाढ़ की चपेट में आ रहा है. बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के मुताबिक राज्य का 68 हजार 800 वर्ग किमी हर साल बाढ़ में डूब जाता है. बिहार के लगभग 12 जिले बाढ़ प्रभावित होते हैं. 2020 मेंं बिहार के 20 जिले बाढ़ की चपेट में हैं, 4 जिले आंशिक रूप से प्रभावित है, बिहार के 38 में से 24 जिलों पर बाढ़ ने वहां के जन जीवन को प्रभावित कर रखा है.
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बाढ़ के मूल कारण को लेकर जब-जब बहस चली है. बिहार पीड़ा और सब कुछ खो देने की कसक के साथ पटना से दिल्ली दरबार तक फाइलों में अपने दर्द के खामोशी को समेटे अच्छे दिन के लिए छटपटाता रहता है. लेकिन निजात के नाम पर उसकी झोली में कुछ आता है, तो वह बाढ़ के पहले बांध को ठीक करने काम, जो यह संकेत होता है कि आप अपनी किस्मत पर एक बार और रोने के लिए तैयार हो जाइए.
बाढ़ नियंत्रण के आंकड़े
बिहार में बाढ़ नियंत्रण को लेकर आंकड़ों की बात करें, तो 1954 में बिहार में 25 लाख हेक्टेयर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था, जबकि 160 किमी की तटबंध का निर्माण हुआ था. 2020 में 73.01 लाख हेक्टेयर बाढ की चपेट में है जबकि तटबंधों की बात की जाए, तो यह बढ़कर 3 हजार 700 किमी का हो गया है. बिहार को बाढ़ ने साल दर साल जिस तरह से अपनी चपेट में लिया है. उससे सरकार का हर इंतजाम नाकाफी ही साबित हुआ है. ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ कोसी ही इसका कारण है. कोसी का जो हिस्सा बिहार में है, वह एक कारण है. लेकिन दूसरे कारण बिहार को डुबोने में ज्यादा बड़ी भूमिका अदा करते हैं.
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कोसी नदी का जल ग्रहण क्षेत्र 74 हजार 030 वर्ग किमी है. इसमें से 62 हजार 620 वर्ग किमी नेपाल और तिब्बत में है. सिर्फ 11 हजार 410 वर्ग किमी हिस्सा ही बिहार में है. ऐसे में प्रकृति के साथ कुछ खिलवाड़ भी बाढ़ कारण बनी है, जिसमें जंगल माफिया द्वारा कैचमेंट एरिया से पेटों की अंधाधुध कटाई भी रही है. बिहार मेंं कोसी से आने वाली बाढ़ का कारण नेपाल में कोसी नदी पर बांध है. कोसी बांध, जो 1956 में बनाया गया था. इस बांध को लेकर भारत और नेपाल के बीच संधि है. संधि के तहत अगर नेपाल में कोसी नदी में पानी ज्यादा हो जाता है, तो नेपाल बांध के गेट खोल देता है. वहां से आने वाला बाढ़ का कारण बनता है.
जमा होती गाद बनती है 'जलप्रलय' की वजह
नदियों में भरता गाद भी बिहार में बाढ़ का बड़ा कारण है. बिहार में गंगा नदी मेंं सबसे ज्यादा पानी दूसरे श्रोत से आता है. बात गंगा नदी की करें, तो लगभग 35 नदियां गंगा में पानी डालती है, जिसमें मौसमी नदियां ज्यादा हैं. ये मौसमी नदियां पानी के साथ गंगा में गाद भी लेकर आती हैं. नदियों के बहाव क्षेत्र में लगातार गाद भरने से नदियां का प्रवाह, तो बदला ही है. साथ ही जल संग्रह क्षमता भी कम हुई है. इसको लेकर कई बार योजना तो बनी. लेकिन काम नहीं हो सका. गंगा नदी से गाद को हटाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में जब शत्रुघ्न सिन्हा जहाजरानी मंत्री थे, तो कुछ प्रयास तो हुआ था. लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहुंचाया जा सका.
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कोसी त्रासदी के बाद चर्चा हुई तेज
कोसी त्रासदी के बाद बिहार को बाढ़ से निजात देने के लिए कई तरह की योजनाओं को लेकर चर्चा तो हुई. लेकिन काम किसी पर भी शुरू नहीं हो सका. 2016 मेंं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में पानी और नदियों पर काम करने वाले लोगों को बुलाकर एक बड़ी चर्चा की गयी. हवाई सर्वेक्ष्ण के माध्यम से सभी संबंधित पहलू पर वार्ता हुई. लेकिन सबकुछ फाइलों में बंद होकर ही रह गया.
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बिहार में बाढ़ से बचाव को को लेकर कई योजनाओं पर काम करने को लेकर वार्ता तो होती है. लेकिन जब उसे अमली जामा देने की बात आती है, तो सबकुछ सियासत की भेंट चढ़ जाता हैं. बिहार में बाढ़ से निजात को लेकर यह चर्चा तो होती है कि नार्थ बिहार का पानी उठाकर साउथ बिहार को दे दिया जाए, तो एक तरफ बाढ़ और दूसरी तरफ सूखे से निजात मिल जाएगी. लेकिन सरकारी कामकाज ही इसकी सबसे बड़ी अड़चन हैं. बिहार में नदी जोड़कर पानी को बांटने को लेकिन जो योजनाएं बनी उनकी हालत कुछ इस तरह बनी हुई है.
'बूढ़ी गंडक नून बाया गंगा लिंक'
8 जनवरी 2014 को सौंपे गए डीपीआर के अनुसार 71 किलोमीटर में कैनाल बनाकर बूढ़ी गंडक नदी का पानी नून और बाया नदी के रास्ते गंगा में मिलाने का था. इससे वैशाली, समस्तीपुर और मुज़फ़्फ़रपुर जिले को बाढ़ से निजात मिलने की उम्मीद जताई गई है. साथ ही इससे 2 लाख 47 हजार 001 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता भी विकसित होगी. उस समय योजना का लागत 4213.8 करोड़ आंका गया, लेकिन अब इसकी लागत 65 सौ करोड़ तक अनुमानित है.
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सिस्टम पर 'पानी फेरती' बिहार की बाढ़, #Etvभारत के रिपोर्टरों ने बताया पूरा हाल#BiharFlood #BiharFloods@NitishKumar @SanjayJhaBihar @Jduonline @yadavtejashwi @RJDforIndia @pappuyadavjaplhttps://t.co/6q0cXTLA5t
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'कोसी-मेची लिंक'
इसका डीपीआर 2 मई 2014 को सौंपा गया. जिसके अंतर्गत 120.15 किलोमीटर लंबे कैनाल का निर्माण होना है. कोसी बेसिन के पानी को महानंदा बेसिन में मेची लिंक से लाया जाएगा. जिससे 2 लाख 14 हजार हेक्टेयर से अधिक खेतों को सिंचाई सुविधा मिलेगी. इससे सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले को लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है. वहीं इसकी लागत लगभग 5 हजार करोड़ था, जो अब बढ़कर 7 हजार 500 करोड़ होने का अनुमान है.
'सकरी नाटा नदी जोड़ योजना'
इसका डीपीआर 30 मई 2014 को सौंपा गया, जिसके अंतर्गत 20 किलोमीटर में कैनाल बनाने की योजना है. इससे नवादा, नालंदा और आस-पास के इलाकों को लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है. साथ ही इससे 68 हजार 808 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता विकसित होगी. वहीं जब डीपीआर सौंपा गया, तो उसमें इसकी लागत 572.38 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 1200 करोड़ होने का अनुमान है. इसी योजना की चर्चा एक बार फिर से शुरू हो गई है.
चुनावी भोंपू की धुन!
चुनाव को लेकर एक बार फिर बिहार में वादों का भोंपू बजने लगा है. गद्दी के लालच में वादों की चाशनी में शब्दों को डुबाने का काम भी किया जा रहा है. लेकिन डूबते बिहार को कैसे बाहर निकाला जाए, इसकी कोई नीति और योजना सरकार के पास नहीं है. बिहार के हर मन की आस यही है कि दो इंजन से चलने वाली बिहार की सरकार बाढ़ से निजात के लिए काम करने के समय विकास को रफ्तार देने वाले इंजन को बंद क्यों कर देती है. बाढ़ से निजात के लिए, जो बात होती है. उसमे दो सरकारों, केन्द्र और बिहार को काम करना है. दोनों सरकारों को बाढ़ पीडितों से सरोकार है, तो फिर कार्य क्यों नहीं हो रहा है, जो काम बिहार में बाढ़ को रोक सकते हैं.
ऐसे रुक सकती है बाढ़
- नदियों के कटाव को रोकना, ताकी बहाव क्षेत्र में गाद को भराव ना हो. इसके लिए बोल्डर पिचिंग का कार्य ज्यादा से ज्यादा हो.
- नदियों में एस्पर बनाया जाए, ताकी बाढ़ के समय पानी की धारा को नियंत्रित रखा जा सके.
- नदी जोड़ों योजना के विभागीय और मंत्रालयी दौड़ से बाहर निकाल कर जमीन पर उतार दिया जाए.
- नदियों के कैचमेंट ऐरिया की देख रेख को लेकर अलग से नीति बनायी जाए.
- कटाव ना हो, इसके लिए समय से वे सारे काम पूरे कर लिए जाएं, जिससे बाढ़ को नियंत्रित किया जा सके.
2020 में बिहार में आई बाढ़ को लेकर ईटीवी बिहार ने जिले से लेकर गांव गांव तक ग्राउंड रिपोर्ट दिखाई है. बाढ़ की विभीषिका से सबका मन डरा भी है और मन में यह सवाल भी उठा है कि क्या बिहार को बाढ़ से हमेशा निजात दिलाने की कोई योजना नहीं है. कोई ऐसा जतन नहीं किया जा सकता है, जिससे बिहार की बाढ़ रूक जाए. बिहार के लोगों को हर बार आशियाना न बदलना पड़े. उन्हें खानाबदोश की जिंदगी न जीना पड़े.
सरकारें क्यों नहीं बनाती नीति?
इस तरह के सवाल हमरे पास भी आते हैं कि आखिर सरकार इसको लेकर नीति क्यों नहीं बनाती. बिहार 2020 के चुनावों से नई सरकार बनाने जा रहा है. टोकरी में वादों को भरकर आने वालों से यह बिहार के उन्हीं बाढ़ पीड़ितों को पूछना होगा कि आखिर बिहार को बाढ़ से निजात कब मिलेगा. दो इंजन की सरकार वालों से भी और उसके पहले के बिहार वालों से भी.
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दरभंगा: इधर डूबा है शहर, उधर निगम के गोदाम में धूल फांक रहे हैं 'नाली-गली योजना' के शिलान्यास के पत्थर @RjdDarbhanga @RJDforIndiahttps://t.co/2OeP7TqYuL
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राजनीति करने वालों को इस बात को समझना होगा कि अगर अब बिहार में बाढ़ नियंत्रण को लेकर कार्य नहीं किया गया, तो 1979 में महज 25 लाख हेक्टेयर को प्रभावित करने वाली बाढ़, आज 73 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुकी हैं. नेताओं के विकास का वादा भले जमीन पर ना उतरा हो. लेकिन बाढ़ ने अपने वादे के तहत हर साल तबाही का क्षेत्र बढ़ाया है. अब समय इसे रोकना है और इसके लिए सरकारों को कड़े और बड़े निर्णय लेने होंगे. तभी बिहार के लोगों को कटाव की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी ओर पलायन के दर्द से निजात मिलेगी. ये बाढ़ ही है, जो बिहार के विकास को बुरी तरह प्रभावित कर रही है. नेताओं को इस बात को ध्यान में रखना होगा.