पटना: बिहार के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व ( VTR) के गनौली इलाके में वल्चर रेस्क्यू सेंटर (Vulture Rescue Center) बनाने की कवायद शुरू हो गई है. दरअसल पिछले कुछ महीनों में इस इलाके में करीब 150 से ज्यादा गिद्ध नजर आए हैं. पक्षियों को देखे जाने के बाद गिद्धों के संरक्षण की योजना बनाना शुरू कर दिया है. वीटीआर के मुताबिक गिद्ध यानी वल्चर की कई प्रजातियां हाल के दिनों में यहां नजर आई हैं. इनमें पर इजीप्टियन वल्चर, ग्रीफन वल्चर, व्हाइट वल्चर और हिमालयन ग्रीफन प्रमुख हैं. गनौली के अलावा वीटीआर के मदनपुर और अन्य क्षेत्रों में भी गिद्ध देखे गए हैं.
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"वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के कुछ क्षेत्र में गिद्धों के कंजर्वेशन की योजना बनाई जा रही है. इससे इनकी संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी. वहीं, जिन जगहों पर गिद्धों के घोसले मिले हैं. वहां वॉच टावर बनाए जा रहे हैं ताकि उन उनकी सुरक्षा के लिए निगरानी की जा सके."- दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, पर्यावरण वन विभाग
गिद्धों के कंजर्वेशन का महत्व
वीटीआर के आस-पास रहने वाले ग्रामीण को भी गिद्धों के कंजर्वेशन की जानकारी दी जाएगी. उनके साथ बैठक और सेमिनार के जरिए उन्हें गिद्धों के कंजर्वेशन का महत्व समझाया जाएगा.
"वीटीआर के गनौली और मदनपुर समेत करीब 4 से 5 जगहों पर गिद्धों के घोसले और उनके अंडे मिले हैं. इससे हमें उत्साहजनक परिणाम मिलने की उम्मीद है. आस-पास के ग्रामीण इलाकों के लोगों को हम बताएंगे कि गिद्ध हमारे लिए कितने जरूरी हैं ताकि वे लोग गिद्धों को नुकसान ना पहुंचाएं."- हेमकांत राय, निदेशक, वीटीआर
वातावरण को शुद्ध रखते हैं गिद्ध
वहीं, पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्र ने बताया कि जितनी बड़ी संख्या में गिद्ध लंबे समय के बाद बिहार के किसी इलाके में देखे गए हैं. यह अच्छे संकेत हैं क्योंकि प्राकृतिक संतुलन में गिद्ध सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वह मरे हुए जानवरों को खाकर हमारे आस-पास के वातावरण को शुद्ध रखते हैं. गिद्धों की संख्या लगातार कम होती गई और अब बहुत गिने-चुने जगहों पर ही गिद्ध दिखते हैं. इसलिए अगर वीटीआर में ऐसा प्रयास हो रहा है तो यह काबिले तारीफ है.
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पशु चिकित्सक की राय
पशु चिकित्सक डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि गाय, भैंस और अन्य बड़े जानवरों में बुखार और अन्य बीमारियों के लिए आज से करीब दो दशक पहले डाइक्लोफिनेक इंजेक्शन बहुत ज्यादा प्रयोग होता था. जानवरों के मरने के बाद जब गिद्ध उनका मांस खाते थे तो यह इंजेक्शन उनकी किडनी को खराब कर उन्हें असमय मार देता था. यह बातें रिसर्च में सामने आई जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस इंजेक्शन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया. वहीं, अब कई अन्य बेहतर दवा और इंजेक्शन देकर पशुओं का इलाज होता है.