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Patna News: कालिदास रंगालय में तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव का शुभारंभ, नाटक 'बलि' का मंचन - तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव का शुभारंभ

पटना के कालिदास रंगालय में तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव का शुभारंभ हो गया है. पहले दिन उद्घाटन कार्यक्रम के बाद नाटक बलि का मंचन रंगकर्मियों ने किया. इस दौरान बड़ी संख्या में नाटक देखने के लिए लोग उपस्थित रहे. ये कार्यक्रम तीन दिनों तक चलेगा. पढ़ें पूरी खबर..

नाटक बलि का मंचन करते रंगकर्मी
नाटक बलि का मंचन करते रंगकर्मी
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Published : May 25, 2023, 10:44 PM IST

नाटक बलि का मंचन करते रंगकर्मी

पटना: राजधानी पटना के कालिदास रंगालय (Kalidas Rangalaya Patna) में गुरुवार को संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से माध्यम फाउंडेशन पटना द्वारा तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव का शुभारंभ किया गया. महोत्सव का उद्घाटन कला समीक्षक विनोद अनुपम, समाजसेवी शंकर मेहता, अभय सिन्हा, मिथलेश सिंह, किरणकांत वर्मा आदि वरिष्ठ रंगकर्मियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. जिसके बाद नाटक 'बलि' का मंचन किया गया.

ये भी पढ़ें- बिहार स्थापना दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक नाटक 'योगानंद' का किया गया मंचन

नाटक बलि का मंचन: त्रिवेणी नाट्य महोत्सव की शुरुआत नुक्कड़ नाटक सिक्यूयॉरिटि गार्ड की बहाली, कुमार उदय के निर्देशन का रंग समूह ने किया. उसके बाद महिला एवं बाल विकास संस्था द्वारा लोक नृत्य ओम प्रकाश, राधा सिन्हा एवं कुमार उदय सिंह द्वारा किया गया. जिसके बाद माध्यम फाउंडेशन द्वारा धर्मेश मेहता के निर्देशन में नाटक बलि का सफल मंचन किया गया.

अभिनेता गिरीश कारनाड ने लिखी है नाटक बलि: सुप्रसिद्ध रंगकर्मी, कहानीकार, कवि, नाटककार, फिल्म निर्देशक एवं अभिनेता गिरीश कारनाड की अनेकों अनमोल कृति में से एक अनमोल कृति नाटक बलि है जो मुल कन्नड़ नाटक का हिन्दी अनुवाद है. बलि का हिन्दी अनुवाद पदमश्री रामगोपाल बजाज ने किया है जो महान रंगकर्मी साहित्कार और नाटककार हैं.

इस प्रकार है नाटक की कहानी: नाटक बलि का विषय वस्तु पशु बलि है, जो भारतीय समाज में मनोकामना प्राप्ति हेतु दिये जाने वाली पशुओं की बलि प्रथा पर आधारित है. इस नाटक में दो धर्मों के मान्यताओं के बिच अर्न्तद्वंद को दिखलाया गया है. जहां हिन्दू धर्म को प्रतिनिधित्व कर रही राजा की मां पशुओं की बलि उचित मानती है. वहीं जैन धर्म का प्रतिनिधित्व कर रही राजा की पत्नी पशु बलि तो दूर की बात है आटे के पुतले से बनी पशु बलि का भी विरोध करती है और कहती है वास्तविक हिंसा तो मानसीकता में है, उसे स्वच्छ करने की जरूरत है.

राजा के द्वंद में पड़ने की कहानी: इनसब के बीच राजा द्वंद में पड़ा रहता है. अंततः नाटक में रानी दो धर्मों के कर्मकाण्डों से परेशान होकर अपनी बलि दे देती है. इस नाटक के सभी पात्र अपनी-अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु संघर्ष करते दिखाई पड़ते हैं. मौजूदा समय में यह नाटक इसलिए जरूरी है कि मौजूदा समय में नैतिक ईमानदारी का अभिप्राय सिर्फ उसको सिद्ध कर देने भर से होता है.

नाटक में भाग लेने वाले कलाकार: निर्देशक- धर्मेश मेहता, लेखक- गिरीश कारनाड, हिंदी रुपानतरण- रामगोपाल बजाजा, संगीत- अक्षय कुमार यादव, सेट- सुनील शर्मा, मंच प्रभारी- राकेश कुमार, सहायक- रणधीर सिंह, कॉस्टुम- मोहम्मद सदरुद्दीन, मिना देवी, प्रोपर्टी- चित्रा प्रिया, सहयोग- नगेन्द्र, अरविन्द, कुणाल सिकंद, मेकअप- मनोज मयंक, अंजू कुमारी, लाइट- उपेन्द्र कुमार, मिडिया सह प्रभारी- रास राज.

नाटक बलि का मंचन करते रंगकर्मी

पटना: राजधानी पटना के कालिदास रंगालय (Kalidas Rangalaya Patna) में गुरुवार को संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से माध्यम फाउंडेशन पटना द्वारा तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव का शुभारंभ किया गया. महोत्सव का उद्घाटन कला समीक्षक विनोद अनुपम, समाजसेवी शंकर मेहता, अभय सिन्हा, मिथलेश सिंह, किरणकांत वर्मा आदि वरिष्ठ रंगकर्मियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. जिसके बाद नाटक 'बलि' का मंचन किया गया.

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नाटक बलि का मंचन: त्रिवेणी नाट्य महोत्सव की शुरुआत नुक्कड़ नाटक सिक्यूयॉरिटि गार्ड की बहाली, कुमार उदय के निर्देशन का रंग समूह ने किया. उसके बाद महिला एवं बाल विकास संस्था द्वारा लोक नृत्य ओम प्रकाश, राधा सिन्हा एवं कुमार उदय सिंह द्वारा किया गया. जिसके बाद माध्यम फाउंडेशन द्वारा धर्मेश मेहता के निर्देशन में नाटक बलि का सफल मंचन किया गया.

अभिनेता गिरीश कारनाड ने लिखी है नाटक बलि: सुप्रसिद्ध रंगकर्मी, कहानीकार, कवि, नाटककार, फिल्म निर्देशक एवं अभिनेता गिरीश कारनाड की अनेकों अनमोल कृति में से एक अनमोल कृति नाटक बलि है जो मुल कन्नड़ नाटक का हिन्दी अनुवाद है. बलि का हिन्दी अनुवाद पदमश्री रामगोपाल बजाज ने किया है जो महान रंगकर्मी साहित्कार और नाटककार हैं.

इस प्रकार है नाटक की कहानी: नाटक बलि का विषय वस्तु पशु बलि है, जो भारतीय समाज में मनोकामना प्राप्ति हेतु दिये जाने वाली पशुओं की बलि प्रथा पर आधारित है. इस नाटक में दो धर्मों के मान्यताओं के बिच अर्न्तद्वंद को दिखलाया गया है. जहां हिन्दू धर्म को प्रतिनिधित्व कर रही राजा की मां पशुओं की बलि उचित मानती है. वहीं जैन धर्म का प्रतिनिधित्व कर रही राजा की पत्नी पशु बलि तो दूर की बात है आटे के पुतले से बनी पशु बलि का भी विरोध करती है और कहती है वास्तविक हिंसा तो मानसीकता में है, उसे स्वच्छ करने की जरूरत है.

राजा के द्वंद में पड़ने की कहानी: इनसब के बीच राजा द्वंद में पड़ा रहता है. अंततः नाटक में रानी दो धर्मों के कर्मकाण्डों से परेशान होकर अपनी बलि दे देती है. इस नाटक के सभी पात्र अपनी-अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु संघर्ष करते दिखाई पड़ते हैं. मौजूदा समय में यह नाटक इसलिए जरूरी है कि मौजूदा समय में नैतिक ईमानदारी का अभिप्राय सिर्फ उसको सिद्ध कर देने भर से होता है.

नाटक में भाग लेने वाले कलाकार: निर्देशक- धर्मेश मेहता, लेखक- गिरीश कारनाड, हिंदी रुपानतरण- रामगोपाल बजाजा, संगीत- अक्षय कुमार यादव, सेट- सुनील शर्मा, मंच प्रभारी- राकेश कुमार, सहायक- रणधीर सिंह, कॉस्टुम- मोहम्मद सदरुद्दीन, मिना देवी, प्रोपर्टी- चित्रा प्रिया, सहयोग- नगेन्द्र, अरविन्द, कुणाल सिकंद, मेकअप- मनोज मयंक, अंजू कुमारी, लाइट- उपेन्द्र कुमार, मिडिया सह प्रभारी- रास राज.

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