गोपालगंज/दरभंगा: देशभर में लागू लॉकडाउन से लोग कोरोना वायरस जैसी महामारी से तो दूर हैं. लेकिन भुखमरी की कगार पर पहुंच रहे हैं. बिहार के कई जिलों में ऐसी ही स्थिति सामने आ रही है, जब लोगों के पास खाने और पकाने के लिए अन्न का एक दाना नहीं बचा है. वो सिर्फ और सिर्फ उस रहनुमा की राह देख रहे हैं, जो उन्हें राहत दे सके. जो उन्हें दो वक्त का राशन मुहैया करा सके.
ईटीवी भारत लगातार ऐसे परिवारों के दर्द और भूख का सरोकार कर रहा है. बात करें गोपालगंज की, तो यहां सदर प्रखंड के हरखुआ गांव निवासी धनंजय शर्मा का परिवार पिछले 4 दिनों से भूखा है. अब तक किसी मददगार ने हाथ नहीं बढ़ाया है. मजबूरन डीएवी स्कूल में पढ़ाई कर रहे सातवीं के छात्र ने परिवार का भूख मिटाने के लिए पहली बार मजदूरी की. लेकिन मजदूरी में मिले पैसे को परिवार का भूख मिटाने के बजाए कर्जदार को देने पड़े क्योंकि अभी तक परिवार इसी तरह कर्ज लेकर जीवन यापन कर रहा था.
- ईटीवी भारत संवाददाता अटल बिहारी पांडेय ने दर्द महसूस करते हुए उन्हें कुछ राशन तो दे दिया. लेकिन आगे का क्या? क्योंकि किसी को नहीं पता है कि ये कोरोना नाम का ग्रहण कब खत्म होगा और हालात पहले जैसे सामान्य होंगे.
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दरभंगा में दो निवाले की मांग
हनुमाननगर प्रखंड के मन्होली गांव में सतीश पासवान लॉकडाउन से पहले गाड़ी चलाने का काम का करता था. लेकिन, जब से देश में लॉकडाउन हुआ है, तब से उसकी परेशानी बढ़ गई है. पूरे देश में लॉक डाउन होने की वजह से यातायात पूरी तरह ठप हो गया है, जिसके कारण सतीश पासवान को कहीं रोजगार नहीं मिल रहा. आलम ये है कि सतीश का परिवार भूखा सो रहा है. घर में तीन छोटे बच्चे लेकर कुल 5 सदस्य हैं, ऐसे में सब का भरण पोषण करना इस लॉक डाउनलोड महंगा पड़ रहा है.
हालांकि, खबर चलने के बाद सामाजिक संस्थाओं ने इस परिवार की मदद की है, लेकिन सवाल वही बरकरार है कि ऐसा कब तक? सरकार के सामुदायिक किचन और राशन के साथ-साथ 1 हजार रुपया इन परिवारों को क्यों नहीं मिल रहा. इनके जनप्रतिनिधि, इस दिशा में ध्यान क्यों नहीं दे रहे. इनके पास राशन कार्ड नहीं तो क्या इनसे सोशल डिस्टेंसिंग बना ली जाएगी.