पटना: कोरोना वायरस आज उन मजदूरों को रुला रहा है, जो दिहाड़ी पर अपना जीवन यापन कर रहे थे. होली का त्योहार आया, तो जमा पूंजी उसमें खर्च हो गयी. काम पर लौटे कुछ ही दिन हुये थे कि कोरोना का कहर बरपने लगा. ऐसे में देशभर में लॉक डाउन लागू करना पड़ा. अब आने-जाने का साधन तो दूर की बात, साहब!, इनके पास खाने के लिए रुपयों का अभाव भी आन पड़ा है.
एक ऐसा ही वीडियो ईटीवी भारत को मिला, जब यूपी से बिहार, अपने गांव लौट रहे मजदूरों के आंखों में आंसू छलक पड़े. दरअसल, ये मजदूर दिहाड़ी मजदूर हैं, जो यूपी के कारखानों में काम करते हैं. किराये का मकान लेकर रहते हैं, ऐसे में किराया भी देना है और रोज पेट भी भरना है. लिहाजा, इन्होंने पैदल ही घर का रास्ता तय करना शुरू कर दिया. हाईवे से घर को लौट रहे मजदूरों को दूर-दूर तक कोई नहीं दिखायी दिया. अंत में टोल प्लाजा पहुंचते ही इन्होंने वहां पानी मांगा. भूख से व्याकुल मजदूरों को सामाजवादी पार्टी के नेता ने जब देखा, तो उन्होंने तुरंत खाने की व्यवस्था करवायी.
छलक पड़े आंसू
दो निवाले खाते ही, हाईवे पर बैठे मजदूरों में से एक मजदूर बिलखने लगा. मानों उसने मन ही मन इस बात का डर सता रहा है कि कोरोना से तो नहीं, लेकिन भूख से कहीं उसकी जान न चली जाए. डर इस बात का सता रहा है कि क्या वो वापस अपनी गांव पहुंच पाएगा. ये सबकुछ सोचते-सोचते उसके आंसुओं की धार और तेज बढ़ जाती है.
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दिलासा और मदद
हाईवे पर खाना मुहैया करा रहे नेता जी ने मजदूरों को बड़े प्यार से समझाया और हर मुमकिन मदद करने का आश्वासन दिया. इन सबके बीच सोशल डिस्टेसिंग का भी ध्यान रखा गया. वहीं, मजदूर मास्क या तो रुमाल बांधे नजर आये. बात साफ है कि इन्हें अपनी जान भी प्यारी है और ये वो सबकुछ जानते हैं, जो कोरोना के बचाव के लिए है. अब बस क्या करें, साहब. ये अगर विदेश में रहेंगे, तो भूखे मर जाएंगे. गांव में अपने परिवार के साथ दो वक्त का खाना तो नसीब कर सकेंगे.
इनसब में एक बात ये भी सामने आयी कि सरकार के ऐलान के बाद बहुत से मजदूर ऐसे भी हैं, जिनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही वे किसी सरकारी योजना से जुड़े हुए हैं. ऐसे में ये वक्त उनको बहुत दर्द दे रहा है.