पटनाः कोरोना काल में जब अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ी तो सरकार को याद आया कि उन्होंने ना तो डॉक्टरों को बहाल किया और ना ही स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति की. जिसका नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में लोगों को जान गंवानी पड़ी.
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अस्पतालों में वेंटिलेटर, एंबुलेंस सब था लेकिन नहीं थे तो इन लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम को चलाने वाले. कुछ ऐसी ही हालत बिहार के स्कूलों की है, जहां पढ़ने वाले बच्चे तो हैं, स्कूल की बिल्डिंग भी लगभग हर जगह है लेकिन पर्याप्त संख्या में शिक्षक नही हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
चुनाव से पहले सरकार ने शिक्षक अभ्यर्थियों के लिए झुनझुना तो जरूर दिखाया था. पर चुनाव बीतने के बाद सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है. हालांकि शिक्षा विभाग के अधिकारी दावा करते हैं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में काम किया जा रहा है.
इसे लेकर ही अभ्यर्थियों ने सवाल खड़े किये हैं. उनका कहना है कि जब बिहार में शिक्षक हैं ही नहीं तो पढ़ाई की बात कहां से आयी. जब पढ़ाई नहीं होगी तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे आएगी? शिक्षक नियोजन के सवाल पर विभाग का कोई अधिकारी कैमरे पर बोलने को तैयार नहीं है.
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क्या कहते हैं शिक्षक अभ्यर्थी
सीटेट शिक्षक अभ्यर्थी पप्पू कुमार कहते हैं कि हमारा भरोसा सरकार से उठ रहा है, क्योंकि बार-बार बिहार के शिक्षा मंत्री झूठ बोलकर निकल जाते हैं. शिक्षा मंत्री बार-बार कहते हैं कि केस की मेंशनिंग की जा रही है जबकि धरातल पर ऐसा होता नजर नहीं आता.
"शिक्षा मंत्री बार-बार झूठ क्यों बोलते हैं और ब्लाइंड केस की मेंशनिंग क्यों नहीं करा रहे हैं. सरकार जब चाहे तो एडवोकेट जनरल को भेजकर केस की मेंशनिंग कराने के बाद शिक्षक बहाली शुरू कर सकती है. लेकिन सरकार, शिक्षा मंत्री और शिक्षा विभाग हम शिक्षक अभ्यर्थियों से बार-बार झूठ पर झूठ बोल रहा है." पप्पू कुमार.शिक्षक अभ्यर्थी
एक और शिक्षक अभ्यर्थी कृति लता कहती हैं कि इतने वर्षों की शिक्षा और मेहनत का नतीजा यह निकलता है कि हम ढाई साल से नियोजन का इंतजार कर रहे हैं और सरकार एक छोटे से मामले को लेकर इसे टाल रही है.
क्या कहते हैं आंकड़े
यू डाइस की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में शिक्षक छात्र अनुपात 1:57 है. जो कि 1:30 होना चाहिए. यानि तीस बच्चों पर एक शिक्षक. बिहार के 8000 से ज्यादा स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात 1:100 है. एक साल पहले केंद्र सरकार की ओर से जारी रिपोर्ट में शिक्षकों की कमी के मामले में बिहार टॉप पर रहा है. जहां करीब तीन लाख शिक्षकों के पद रिक्त हैं.
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3276 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक
बिहार शिक्षा परियोजना के मुताबिक बिहार में 41762 प्राथमिक विद्यालय हैं जबकि 26523 मध्य विद्यालय हैं. बिहार में 3276 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे काम चल रहा है. जबकि 12507 विद्यालयों में 2 शिक्षक, 10595 स्कूलों में 3 शिक्षक, 7170 विद्यालयों में 4 शिक्षक, 4366 स्कूलों में 5 शिक्षक और 3874 स्कूलों में 5 या इससे अधिक शिक्षक कार्यरत हैं.
कहां फंसा है मामला
नेशनल ब्लाइंड फेडरेशन ने पिछले साल पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. जिसमें यह अपील की गई थी कि शिक्षक नियोजन में नेत्र दिव्यांग शिक्षकों को तय आरक्षण सीमा का लाभ नहीं दिया जा रहा है. इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने बिहार के तमाम शिक्षक नियोजन पर रोक लगा दिया था. कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था, अब इस मामले में सरकार को अपना रुख स्पष्ट करना है।
नेशनल ब्लाइंड फेडरेशन की याचिका के मामले में बिहार सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह नियमों के मुताबिक आरक्षण देगी. लेकिन मामला यहीं फंसा है. पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इस मामले की सुनवाई कर रहे थे. पिछले महीने कोरोना की वजह से वे अस्पताल में भर्ती थे.
अब वे स्वस्थ हो गए हैं और वापस काम पर लौट चुके हैं. सरकार के अधिकारी कैमरे के पीछे कह रहे हैं कि केस मेंशनिंग के लिए सरकार ने कोशिश शुरू कर दी है. सरकार मेंशनिंग के जरिए कोर्ट से अपील करेगी कि हम तय आरक्षण देने को तैयार हैं. इसलिए हमें इस मामले से अलग किया जाए और हमें नियोजन जारी रखने की अनुमति दी जाय.
राजद ने सरकार की नीयत पर उठाए सवाल
इस बारे में राजद नेता चितरंजन गगन कहते हैं कि विधानसभा में घोषणा खुद शिक्षा मंत्री ने की थी. उन्होंने कहा था कि 5 अप्रैल को सुनवाई पूरी हो जाएगी. लेकिन शिक्षा विभाग से अब अभ्यर्थियों का भी भरोसा उठ चुका है.
राजद नेता ने कहा कि सरकार अगर शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर थोड़ी भी गंभीर है तो स्पेशल मेंशनिंग कर इस मामले में पटना हाईकोर्ट से अनुरोध करे. अविलंब नियुक्ति प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाते हुए शिक्षकों की नियुक्ति कर विद्यालयों में योगदान कराया जाए.