पटना/दिल्ली : बिहार में जातीय सर्वेक्षण पर चल रही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में अदालत ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है. नोटिस में कहा गया है कि राज्य सरकार जातीय आंकड़ों के निजी आंकड़े जारी न करे. इसके साथ ही जातीय सर्वेक्षण के जारी आंकड़ों पर रोक लगाने से भी सर्वोच्च अदालत ने इंकार किया है. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ इस मामले में दायर याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही है. इस मामले पर अगली सुनवाई जनवरी 2024 में होगी.
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जातीय सर्वेक्षण के आंकड़ों पर रोक लगाने से इंकार : आज याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार ने राज्य में जातीय सर्वेक्षण करा कर उनके आंकड़े भी जारी कर दिये हैं. इसमें जातीय आधार पर हुए सर्वेक्षण में विभिन्न जातियों की संख्या का ब्यौरा दिया गया है. इसमें कोर्ट को बताया गया कि जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों में बहुत तरह की विसंगतियां हैं. बहुत सी ऐसी भी शिकायतें आयी है कि बिना ठोस सर्वेक्षण किये आधा-अधूरा आंकड़ा जारी कर दिया गया. बहुत सी जातियों के संख्या का पूरा ब्यौरा नहीं दिया गया है. इससे भ्रम की स्थिति बनी है.
पटना हाईकोर्ट के निर्देश पर हुई थी जातीय गणना : इससे पूर्व पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जातीय सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकायों पर लम्बी सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था. 1अगस्त 2023 को पटना हाईकोर्ट ने इस मामले पर फैसला राज्य सरकार के पक्ष में सुनते हुए राज्य सरकार को जातीय सर्वेक्षण जारी रखने की अनुमति दे दी. चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया था.
आंकड़े जारी करने पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस : इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की गयी थीं. राज्य सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कोर्ट से अनुरोध किया था कि राज्य सरकार का पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं किया जाये. सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से दलील दी गयी थी कि जातीय सर्वेक्षण का कार्य पूरा हो चुका है. राज्य सरकार ने जातीय सर्वेक्षण का आंकड़ा 2 अक्टूबर 2023 को जारी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने आज सभी पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई जनवरी 2024 में किये जाने का निर्णय दिया.