पटना: चीनी उत्पादन में कभी बिहार का परचम लहराता था. देश के 40 फीसदी चीनी का उत्पादन बिहार में (Sugar Production in Bihar) होता था. आजादी से पहले बिहार में 33 चीनी (Sugar Mills of Bihar) मिलें थीं, लेकिन बाद में 28 मिलें अस्तित्व में रहीं. आज सिर्फ 9 चीनी मिलें चालू हैं. 2018-2019 में राज्य में 84.02 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया गया. वहीं, 2019-2020 में 45.27 लाख क्विंटल से अधिक चीनी का उत्पादन हुआ.
यह भी पढ़ें- मोतिहारी चीनी मिल के खिलाफ एक्शन, मंत्री ने धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराने का दिया आदेश
चीनी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 1792 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना एक प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा था. लुटियन जेपी टशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बिहार की जमीन गन्ना उत्पादन की दृष्टि से उपयुक्त है. यहां सस्ते मजदूर भी उपलब्ध हैं. उसी समय से बिहार में लोग गन्ना की खेती करने लगे और धीरे-धीरे चीनी उत्पादन शुरू हुआ.
1820 में चंपारण में पहली चीनी मिल स्थापित की गई. 1966-67 तक बिहार की चीनी मिलों पर निजी कंपनियों का कब्जा हो गया और सरकार का नियंत्रण धीरे-धीरे खत्म हो गया. 1972 में केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग जांच समिति का गठन किया. 1977 से 1985 के बीच 15 से ज्यादा चीनी मिलों का बिहार सरकार ने अधिग्रहण किया. 2006 आते-आते बिहार सरकार ने हाथ खड़े कर दिए और चीनी मिलों को चलाने में असमर्थता जाहिर कर दी.
सरकार ने निजी कंपनियों से निविदा आमंत्रित करने का फैसला लिया ताकि बंद चीनी मिलों को चलाया जा सके. बिहार स्टेट शुगर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के 15 मिलों में से सरकार केवल 7 को ही लीज पर देने में सफल हो सकी. सरकारी नीतियों के चलते धीरे-धीरे बिहार में चीनी उत्पादन में कमी आती गई. 1990-91 से 2005-06 के दौरान देश के गन्ना उत्पादन में जहां 15% की वृद्धि हुई. वहीं, बिहार में 31% की कमी दर्ज की गई.
बिहार में फिलहाल 9 चीनी मिलें चालू अवस्था में हैं. अलग-अलग कारणों से तीन चीनी मिल बंद होने के कगार पर हैं. फिलहाल चीनी मिलों में 10 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है. बिहार में जब सभी चीनी मिलें चालू थे तो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 3 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ था. बिहार में चीनी मिल फिर से चालू हो इसके लिए सरकार की ठोस रणनीति नहीं दिखाई देती. गन्ना उद्योग विभाग ने चीनी मिलों के 2400 एकड़ जमीन को उद्योग विभाग को सौंप दिया है. सरकार की उम्मीद है कि इथेनॉल पॉलिसी के चलते चीनी मिलों की स्थिति में सुधार होगा.
"कोई भी चीनी मिल सिर्फ चीनी उत्पादन से नहीं चल सकता. मिल फायदे में चले इसके लिए इथेनॉल और अन्य उत्पादों का भी इस्तेमाल करना होगा. वेस्ट मटेरियल का जब तक उपयोग नहीं होगा तब तक चीनी मिल को फायदे लायक आमदनी नहीं होगी. इथेनॉल पॉलिसी अगर सही रूप में लागू हो गई तो गन्ना उद्योग का भला हो सकता है"- सरोज रंजन पटेल, किसान
"गन्ना उत्पादन को लेकर सरकार ने कोई ठोस नीति नहीं बनाई, जिसका नतीजा यह हुआ कि चीनी उत्पादन में धीरे-धीरे कमी आती गई. गन्ना उद्योग को लेकर सरकार की स्पष्ट नीति नहीं है. स्पेशल पैकेज के बिना चीनी मिल रिवाइव नहीं हो सकते."- डॉ विद्यार्थी विकास, अर्थशास्त्री
"अभी बिहार में 9 चीनी मिल चालू अवस्था में हैं. पिछले एक-दो साल के दौरान तीन चीनी मिलों की स्थिति खराब हुई है. सुगौली और लौरिया चीनी मिल को हमलोगों ने एचपीसीएल को सौंपा है जो आज चालू अवस्था में है. 2400 एकड़ जमीन हमने उद्योग विभाग को दिया है. एथेनॉल पॉलिसी से गन्ना उद्योग को विशेष उम्मीदें हैं."- प्रमोद कुमार, मंत्री, गन्ना उद्योग विभाग
यह भी पढ़ें- माफियाओं ने बिहार में एनजीटी प्रतिबंध की धज्जियां उड़ाई, रेत का खनन जारी