पटनाः बिहार में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है. कहते हैं कि जिनके अंदर प्रतिभा हो और कुछ कर गुजरने की चाहत हो वह हर मुकाम को हासिल लेता है. बिहार की कई ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने बलबूते पर अपना, अपने जिले,अपने राज्य और अपने देश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है. बिहार के मधुबनी जिले की बौआ देवी भी इन्हीं में से एक हैं.
बौआ देवी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में अपने शुरुआती दिनों से पद्मश्री तक के सफर के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कड़ी मेहनत और परिश्रम का नतीजा है कि आज वे इस मुकाम तक पहुंची हैं. साथ ही वे कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं.
घर के दीवारों और दरवाजों पर करती थी पेंटिंग
बिहार के मधुबनी जिले के एक छोटे गांव में रहने वाली बौआ देवी का जन्म 25 दिसंबर 1942 में हुआ था. वे महज पांचवी कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाई और 12 साल की उम्र में उनकी शादी करा दी गई. चित्रकला का शौक उन्हें पहले से था और शादी के बाद भी अपने घर के आंगन में दीवारों और दरवाजों पर वे मिथिला पेंटिंग किया करती थी.
रात में करती थी चित्रकारी
बौआ देवी ने बताया कि दिन में घर में काफी काम काज होता था, जिस वजह से उन्हें समय नहीं मिल पाता था और रात में वे अपनी चित्रकला का काम करती थी. साल 1966-67 के समय अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड के डिजाइनर भास्कर कुलकर्णी उनके गांव पहुंचे थे, जब उन्हें पता चला कि बौआ देवी मिथिला पेंटिंग करती हैं तो वे उनके घर पहुंचे. डिजाइनर भास्कर कुलकर्णी को बौआ देवी का काम काफी पसंद आया.
"डिजाइनर भास्कर कुलकर्णी ने हमें कागज पर चित्रकारी करने के लिए प्रेरित किया. भास्कर कुलकर्णी ने हमसे चित्र बनावकर तीन अठन्नी दिए जो हमारी पहली कमाई थी. उस समय हमें पता नहीं था कि चित्रकला करने के पैसे भी मिल सकते हैं और पहली बार आमदनी हुई काफी अच्छा लग रहा था."- बौआ देवी , पद्मश्री सम्मानित
14 रुपये मिला मेहनताना
बौआ देवी ने बताया कि अपनी पहली कमाई से उन्होंने कागज खरीदा और उसपर काम करना शुरू किया. इसके बाद एक बार फिर भास्कर कुलकर्णी गांव पहुंचे और उन्होंने तीन पेंटिंग बनाने को कहा और उसके बदले में उन्होंने 14 रुपये दिए. उस समय तक हम अपने हिसाब से चित्रकारी किया करते थे. लेकिन जब लोगों की फरमाइश हुई, तब उस आधार पर भी चित्रकारी करने लगे.
ये भी पढेः महिला दिवस स्पेशल: संभाग सत्र का आयोजन, पद्मश्री बौआ देवी को किया गया सम्मानित
पहली बार मिला राष्ट्रीय सम्मान
पद्मश्री सम्मानित बौआ देवी ने बताया कि धीरे-धीरे ऑर्डर मिलने लगे और हमारे पेंटिंग बनाने का सिलसिला जारी रहा. सरकारी काम भी मिलने लगा दिल्ली आना जाना शुरू हुआ और 1985-86 में पहली बार राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया. धीरे-धीरे विदेश के लोग आने लगे पेंटिंग उन्हें पसंद आने लगी उसके बाद विदेश आना-जाना भी शुरू हुआ. हमारे पूर्वज भी कभी दिल्ली नहीं गए थे और ना कभी विमान पर बैठने की कल्पना की थी.
विदेशों से भी मिलते हैं ऑर्डर
बौआ देवी ने बताया कि उन्होंने विश्व में फ्रांस, जापान, अमेरिका, लंदन, काठमांडू, स्विट्जरलैंड, मॉरीशस जैसे कई देशों में जाकर काम किया है. बहुत लोग कहते हैं कि विदेश में रहिए इंग्लिश सीखिए लेकिन हम अपने मिथिला और अपने बिहार को कैसे छोड़ सकते हैं. इसलिए हम बिहार में ही रहकर मिथिला पेंटिंग को आगे बढ़ा रहे हैं.
2004 में हुई कैनवास पेंटिंग की शुरुआत
पद्मश्री सम्मानित बौआ देवी ने बताया कि साल 2004 में लंदन से कैनवास पेंटिंग का ऑर्डर मिला था. इसके बाद कैनवास पेंटिंग करने का सिलसिला भी शुरू हुआ. उन्होंने बताया कि मधुबनी पेंटिंग में अपनी संस्कृति और इतिहास की कहानियों को हम बनाते हैं. कई बार अपने मन की कहानियां भी हम बनाते हैं. इस पेंटिंग के जरिए लोग अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं.
मन की प्रसन्नता के लिए करती हैं पेंटिंग
बौआ देवी ने बताया कि शुरुआत में काफी मुश्किलें आई लेकिन हमने कभी हिम्मत नहीं हारा और लगातार काम करते रहे. उन्होने कहा कि उनका मकसद पेंटिंग के जरिए कभी पैसा कमाना था. वे मन की प्रसन्नता के लिए पेंटिंग करती हैं. बौआ देवी ने बताया कि उन्हें लोगों से पता चला कि उन्हें सम्मान मिलने वाला है.
ये भी पढ़ेः नीतीश के विधायक की ग्रामीणों ने निकाली हेकड़ी, 'गुर्गे' के साथ गए थे दबंगई दिखाने
2017 में मिला पद्मश्री
बौआ देवी को 2017 में पद्मश्री सम्मान मिला. भारत में मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित होने वाली वे तीसरी महिला हैं. 79 साल की उम्र में भी बौआ देवी का पेंटिंग के प्रति लगाव खत्म नहीं हुआ है. उन्होंने देश की सभी महिलाओं को हिम्मत न हारकर अपने पैशन को फॉलो करने का संदेश दिया. साथ ही उन्होंने सरकार से बेहतर काम करने वाली महिलाओं को उचित माहौल प्रदान करने की मांग की.