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इस एक्ट को लागू नहीं होने से प्राइवेट अस्पताल बना लूट का अड्डा, मरीजों से वसूली जा रही मनमानी फीस

राज्य सरकार के पास ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे प्राइवेट हॉस्पिटल के रेट को कंट्रोल किया जा सके. ऐसे में मरीज खुलेआम लूटे जा रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के लोगों को इस एक्ट के यहां भी लागू होने का इंतजार है

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Published : May 7, 2019, 5:50 PM IST

प्राइवेट हॉस्पिटल

पटना: राज्य सरकार बड़े-बड़े प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर लगाम लगाने में पूरी तरह फेल साबित हो रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सरकार अब तक केंद्र सरकार की ओर से पारित क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 लागू करने की हिम्मत नहीं दिखा पाई है. मनमानी करने वाले प्राइवेट अस्पताल और शक्तिशाली मेडिकल लॉबी के दबाव में अभी तक इस बिल को लागू नहीं होने दिया गया है.

जानिए क्या है क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010
संसद की ओर से पारित इस एक्ट के अंतर्गत सभी क्लिनिकल संगठनों को विनियमित करने का प्रावधान है. सभी प्रतिष्ठानों को इसके तहत रजिस्टर कराना आवश्यक है. यह एक्ट सभी संस्थानों को आम लोगों और अलग-अलग हालातों के लिए दिशा निर्देश जारी करता है. इन नियमों का उल्लंघन करने वाले संस्थानों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का प्रावधान है.

इन राज्यों में हो चुका है लागू
मार्च 2015 तक इसे अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने अपनाया है. लेकिन बिहार और दिल्ली में इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है. इस एक्ट के लागू हो जाने के बाद प्राइवेट अस्पतालों की कमाई पर सीधा असर पड़ेगा. इस कानून में चिकित्सा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए सारे नियम कायदे हैं. जिसमें कोई डॉक्टर या अस्पताल मरीज से मनमानी नहीं कर सकता है, ज्यादा रकम नहीं वसूल सकता है. इस एक्ट में मरीजों को संरक्षण देने और चिकित्सा प्रणाली को विकसित करने पर विशेष चर्चा की गई है.

पटना से खास रिपोर्ट

क्या है जानकारों का कहना
जानकारों के मुताबिक रेट आउट ऑफ कंट्रोल होने के दो प्रमुख कारण हैं पहला सरकारी अस्पतालों की संख्या कम होना, जो हैं वह पहले से बोझ से दबे हैं, दूसरा कैंसर और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का इलाज सिर्फ मेडिकल कॉलेज और टशर्री केयर सेंटर में उपलब्ध है. सरकार चाहे तो ऐसे इलाज सिविल अस्पताल में भी शुरू हो सकते हैं. यदि किसी को कार्डियो कि इमरजेंसी हो तो पीजीआई में भर्ती कराने में ही पसीने छूट जाते हैं. जबकि प्राइवेट में आते ही तुरंत इलाज शुरू हो जाता है. दूसरा कारण प्राइवेट हॉस्पिटल के ऊपर कोई रूल रेगुलेशन का ना होना. सरकार या प्रशासन के पास ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे कि प्राइवेट हॉस्पिटल चार्ज को कंट्रोल कर पाए. हलांकि बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने कहा है कि बिहार मे यह नियम कोर्ट में लंबित है.

आइए अब एक नजर डालते हैं किस मर्ज का कहां पर कितने रुपए में इलाज होता है -

मर्ज प्राइवेट सरकारी
रजिस्ट्रेशन 500-1200 2-20
नॉर्मल डिलीवरी 50000 10000
सिजेरियन 50-80000 2651
ईसीजी 150-200 2-25
एक्स रे 200 30
सीटी स्कैन सिर 1800 300
सीटी स्कैन सिर के नीचे 3500 1125
एमआरआई 5000 1150
ब्लड क्लब कल्च 350 30
घुटना ट्रांसप्लांट डेढ़ से तीन लाख 75 हजार से एक लाख
हिप ट्रांसप्लांट ढाई लाख 80 हजार से एक लाख
आईसीयू 5000-8000 250-1000
पीडियाट्रिक्स आईसीयू 5000-8000 250-1000
एंजियोप्लास्टी डेढ़ लाख 60 हजार

पटना: राज्य सरकार बड़े-बड़े प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर लगाम लगाने में पूरी तरह फेल साबित हो रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सरकार अब तक केंद्र सरकार की ओर से पारित क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 लागू करने की हिम्मत नहीं दिखा पाई है. मनमानी करने वाले प्राइवेट अस्पताल और शक्तिशाली मेडिकल लॉबी के दबाव में अभी तक इस बिल को लागू नहीं होने दिया गया है.

जानिए क्या है क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010
संसद की ओर से पारित इस एक्ट के अंतर्गत सभी क्लिनिकल संगठनों को विनियमित करने का प्रावधान है. सभी प्रतिष्ठानों को इसके तहत रजिस्टर कराना आवश्यक है. यह एक्ट सभी संस्थानों को आम लोगों और अलग-अलग हालातों के लिए दिशा निर्देश जारी करता है. इन नियमों का उल्लंघन करने वाले संस्थानों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का प्रावधान है.

इन राज्यों में हो चुका है लागू
मार्च 2015 तक इसे अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने अपनाया है. लेकिन बिहार और दिल्ली में इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है. इस एक्ट के लागू हो जाने के बाद प्राइवेट अस्पतालों की कमाई पर सीधा असर पड़ेगा. इस कानून में चिकित्सा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए सारे नियम कायदे हैं. जिसमें कोई डॉक्टर या अस्पताल मरीज से मनमानी नहीं कर सकता है, ज्यादा रकम नहीं वसूल सकता है. इस एक्ट में मरीजों को संरक्षण देने और चिकित्सा प्रणाली को विकसित करने पर विशेष चर्चा की गई है.

पटना से खास रिपोर्ट

क्या है जानकारों का कहना
जानकारों के मुताबिक रेट आउट ऑफ कंट्रोल होने के दो प्रमुख कारण हैं पहला सरकारी अस्पतालों की संख्या कम होना, जो हैं वह पहले से बोझ से दबे हैं, दूसरा कैंसर और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का इलाज सिर्फ मेडिकल कॉलेज और टशर्री केयर सेंटर में उपलब्ध है. सरकार चाहे तो ऐसे इलाज सिविल अस्पताल में भी शुरू हो सकते हैं. यदि किसी को कार्डियो कि इमरजेंसी हो तो पीजीआई में भर्ती कराने में ही पसीने छूट जाते हैं. जबकि प्राइवेट में आते ही तुरंत इलाज शुरू हो जाता है. दूसरा कारण प्राइवेट हॉस्पिटल के ऊपर कोई रूल रेगुलेशन का ना होना. सरकार या प्रशासन के पास ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे कि प्राइवेट हॉस्पिटल चार्ज को कंट्रोल कर पाए. हलांकि बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने कहा है कि बिहार मे यह नियम कोर्ट में लंबित है.

आइए अब एक नजर डालते हैं किस मर्ज का कहां पर कितने रुपए में इलाज होता है -

मर्ज प्राइवेट सरकारी
रजिस्ट्रेशन 500-1200 2-20
नॉर्मल डिलीवरी 50000 10000
सिजेरियन 50-80000 2651
ईसीजी 150-200 2-25
एक्स रे 200 30
सीटी स्कैन सिर 1800 300
सीटी स्कैन सिर के नीचे 3500 1125
एमआरआई 5000 1150
ब्लड क्लब कल्च 350 30
घुटना ट्रांसप्लांट डेढ़ से तीन लाख 75 हजार से एक लाख
हिप ट्रांसप्लांट ढाई लाख 80 हजार से एक लाख
आईसीयू 5000-8000 250-1000
पीडियाट्रिक्स आईसीयू 5000-8000 250-1000
एंजियोप्लास्टी डेढ़ लाख 60 हजार
Intro: बड़े बड़े प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर सरकारी तंत्र फ़ेल, अभी तक क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 नहीं लागू करा पाई सरकार
एक रिपोर्ट:--



राज्य सरकार बड़े बड़े प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर लगाम लगाने में पूरी तरह फेल साबित हो रही है इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सरकार अब तक केंद्र सरकार द्वारा पारित क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 लागू करने की हिम्मत नहीं दिखा पाई है, मनमानी करने वाले प्राइवेट अस्पतालों और शक्तिशाली मेडिकल लॉबी के दबाव में अभी तक इस बिल को राजधानी में लागू नहीं होने दिया है ।


Body:जानिए क्या है क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010:--


भारतीय संसद द्वारा पारित है इस एक्ट के अंतर्गत सभी क्लिनिकल संगठनों को विनियमित करने का प्रावधान है, सभी प्रतिष्ठानों को इसके तहत रजिस्टर करना आवश्यक है यह एक्ट सभी संस्थानों को आम लोगों एवं विभिन्न परिस्थितियों में इलाज के लिए दिशानिर्देश जारी करता है, इन नियमों का उल्लंघन मनमानी करने वाले संस्थानों के खिलाफ उचित कार्यवाही करने का प्रावधान है, मार्च 2015 तक निम्नलिखित राज्यों ने इसे अपनाया है जिसमें अरुणाचल प्रदेश हिमाचल प्रदेश मिजोरम सिक्किम राजस्थान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड परंतु बिहार एवं दिल्ली में इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है, इस एक्ट को लागू हो जाने के बाद प्राइवेट अस्पतालों की कमाई पर सीधा असर पड़ेगा, इस कानून में चिकित्सा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए सारे नियम कायदे हैं, जिसमें कोई डॉक्टर अस्पताल मरीज से मनमानी नहीं कर सकता है एवं ज्यादा रकम भी वसूल नहीं सकते हैं, इस एक्ट में मरीजों को संरक्षण देने चिकित्सा प्रणाली को विकसित करने पर विशेष चर्चा की गई है। जानकारों के मुताबिक रेट आउट ऑफ कंट्रोल होने के दो प्रमुख कारण है पहला सरकारी अस्पतालों की संख्या कम होना, जो है वह पहले से बोझ से दबे हैं, दूसरा कैंसर एवं कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का इलाज सिर्फ मेडिकल कॉलेज एवं टशर्री केयर सेंटर में उपलब्ध है, यदि सरकार चाहे तो ऐसे इलाज सिविल अस्पताल में भी शुरू हो सकते हैं, यदि किसी को कार्डीयो कि इमरजेंसी हो तो पीजीआई में भर्ती कराने में ही पसीने छूट जाते हैं, जबकि प्राइवेट में आते ही तुरंत इलाज शुरू हो जाता है दूसरा कारण प्राइवेट हॉस्पिटल ऊपर कोई रूल रेगुलेशन का ना होना सरकार या प्रशासन के पास ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे भी प्राइवेट हॉस्पिटल के रेट को कंट्रोल कर पाए।
हलांकी बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने कहा कि बिहार मे यह नियम कोर्ट मे लंबित है


Conclusion:आइए अब एक नजर डालते हैं किस मर्ज का कहां पर कितने रुपए का इलाज होता है
मर्ज................प्राईवेट...............सरकारी
रजिस्ट्रेशन ...... 500-1200........2-20
नार्मल डिलीवरी....50000.........0000
सिजेरियन.....50-80000...........2651
ईसीजी.......150.-200...............2-25
एक्स रे........200........................30
सीटी स्कैन सिर....1800............300
सीटी स्कैन सिर के नीचे ..3500.......1125
एम आर आई...5000..................1150
ब्लड क्लब कल्चर ....350...............30
घुटना ट्रांसप्लांट..... डेढ से तीन लाख........75 हजार से एक लाख
हिप ट्रांसप्लांट.....ढाई लाख..............80 हजार से एक लाख
आईसीयू..........5000-8000............250-1000
पीडियाट्रिक्स आईसीयू.....5000-8000.......250-1000
एंजियोप्लास्टी...डेढ लाख....................60 हजार
कार्डियक एंजियोग्राफी....13000.............4000




बाईट--ब्रजनंदन सिंह,सचिव,आल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
बाईट--एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सहजानंद
बाईट.. संजय कुमार, प्रधान सचिव, स्वास्थ विभाग, बिहार
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