सारण : बिहार के छपरा में एक ऐसे श्रवण कुमार (Shravan Kumar of Saran) की चर्चा है जो अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका घर में ही मंदिर बनवा (sons built a Father temple at House in Saran) दिया. घर के सदस्य उनकी मूर्ति की खूब सेवा करते हैं. सुबह का खाना, चाय- नाश्ता सब कुछ मूर्ति के सामने पेश किया जाता है. एक जिंदा इंसान की तरह उनकी सेवा-सुश्रुषा की जाती है. घर वालों का मानना है कि ऐसा करने से उन्हें पिता की कमी नहीं खलती. परिवार के सदस्यों को ऐसा लगता है कि वो हर वक्त उनके साथ ही हैं.
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बेटों ने पिता का घर में बनवा दिया मंदिर: घर परिवार से जुड़े बड़े फैसले कमरे में स्थापित मूर्ति के सामने ही लिए जाते हैं. बच्चे भी सुबह उठकर मूर्ति के सामने नतमस्तक होते हैं. उनका आशीर्वाद लेते हैं और जब भी कोई नया काम शुरू किया जाता है तो बच्चे मूर्ति के सामने खड़े होकेर उनसे उसकी इजाजत लेते हैं. पिता की मृत्यु के बाद अपने बच्चों का पिता के प्रति अगाध प्रेम देखकर बूढ़ी मां भी गदगद हैं. वो कहती हैं कि ऐसी सेवा देखकर ऐसा महसूस होता है कि वो अपने पिता की ही साक्षात सेवा कर रहे हों.
''मेरे पिता की मृत्यु 2011 में हुई थी. श्राद्ध के वक्त ही हम लोगों ने पिता जी की मूर्ति घर में स्थापित करवा दी थी. हम लोग इनका वैसे ही ख्याल करते हैं जैसे इनके जीवित रहते हुए करते थे. सुबह हाथ मुंह धुलाकर नाश्ता, चाय, दोपहर का भोजन, शाम का भोजन समय पर देते हैं. सोने के लिए उनका बिस्तर लगाते हैं. ऐसा करने से हमें पिताजी की कमी नहीं समझ में आती.''- अमित कुमार, बेटा
सारण के श्रवण कुमार : दरअसल, हराजी गांव निवासी प्रधान शिक्षक चंदेश्वर दास की मृत्यु साल 2011 में हुई थी. उनके तीन बेटे थे. तीनों बेटों ने 10 दिन के अंदर ही पिता की मूर्ति घर में बनवाकर स्थापित कर दिया. दोनों बड़े लड़के सरकारी स्कूल में टीचर हैं जबकि तीसरा बेटा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करता है. चंदेश्वर दास की एक बेटी भी है. सभी बेटे और बेटी की शादी भी हो चुकी है. परिवार के सभी सदस्य अपने पिता की मूर्ति को जीवित पिता की तरह सेवा करते हैं.
पिता के मूर्ति की करते हैं सेवा: जिस प्रकार सुबह उठकर लोग हाथ मुंह धोते हैं उसी प्रकार मूर्ति का भी मुंह धुलाया जाता है. सोने के लिए बेड बिछाया जा ता है. ठंडी में रजाई ओढ़ाई जाती है. दोपहर का खाना, रात का खाना परोसा जाता है. सुबह, दोपहर और शाम की चाय भी मूर्ति को चढ़ाई जाती है. बड़े घर पर नहीं हैं तो छोटे बच्चे भी अपने बाबा की मूर्ति को खाना खिलाना नहीं भूलते. छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाते समय मूर्ति को प्रणाम करके जाते हैं.
सारण के बेटों से सीखें ओल्ड एज होम भेजने वाले: सारण के इन बेटों की कहानी बानगी है ऐसे लोगों के लिए जो अपने माता-पिता को जीते जी ओल्ड एज होम में छोड़ जाते हैं. घरों में उनकी देखभाल करने से भी कतराते हैं. ऐसे में ये तीनों बेटे अपने पिता की मृत्यु के बावजूद उनकी मूर्ति बनाकर पूजा करते हैं. उनकी याद में हर वो काम करते हैं जो एक जिंदा व्यक्ति के लिए किया जाता है. ऐसा करके सभी बेटों को पिता की कमी भी नहीं सालती. और खुद को अनाथ भी नहीं समझते.