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'राजनीति में शरद यादव लालू-नीतीश के गुरु थे, कई सरकारों को बनाया, कई को गिराया' - शरद यादव

भरातीय राजनीति में कई पुरोध हुए हैं. उसी में से एक रहे शरद यादव. जो आज भी उसी रूप में याद किए जाते हैं, जैसे छात्र जीवन में. उन्होंने कई नेताओं को गद्दी पर बिठाया. कई सरकारों को बनाया. उनकी पहली पुण्यतिथि पर पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

Sharad Yadav Etv Bharat
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 12, 2024, 9:46 PM IST

पटना : जब-जब समाजवाद का जिक्र होगा तब-तब लोहिया, जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नाडिस और शरद यादव का भी जिक्र होगा. शरद यादव पूरी तरह से समाजवाद की उपज थे. आज उनकी पहली पुण्यतिथि है. जाहिर सी बात है उनकी पहली पुण्यतिथि में भले उनके साथ में काम करने वाले नेता उन्हें याद ना करते हो लेकिन, शरद यादव एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने एक नहीं, दो नहीं, तीन राज्यों से लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया था. शरद यादव बिहार के रहने वाले नहीं थे. उनका जन्म 1947 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था. लेकिन, उन्होंने अपनी राजनीति पूरे देश में घूम-घूम कर की.

एमपी, यूपी और बिहार से सांसद बने : शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से गोल्ड मेडलिस्ट थे. लेकिन, उन्होंने इंजीनियरिंग का काम ना करते हुए अपना पूरा जीवन समाजवाद की राजनीति में झोंक दिया. जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर शरद यादव छात्र आंदोलन में कूद गए. जयप्रकाश नारायण ने ही उन्हें पहली बार हलधर किसान चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया था.

छात्र राजनीति से संसद तक का सफर : छात्र आंदोलन में शरद यादव इतने एक्टिव थे कि उन्हें जेल जाना पड़ा. जेल से ही शरद यादव ने 27 साल की उम्र में चुनाव लड़ा और जबलपुर से वह सांसद हो गए. जनता दल में उनका कद लगातार बढ़ता गया. 1989 में उत्तर प्रदेश के बदायूं से शरद यादव ने चुनाव लड़ा और उस समय भी उन्होंने जीत हासिल की. इस जीत के साथ ही शरद यादव वीपी सिंह की सरकार में कपड़ा मंत्री बन गए. इसके बाद शरद यादव ने अपना रुख बिहार का किया.

मधेपुरा से चार बार जीते : कहते हैं रोम है पोप का और मधेपुरा है गोप का. उन्होंने अपना चुनाव क्षेत्र मधेपुरा को चुना. मधेपुरा यादवों के गढ़ के तौर पर जाना जाता है. शरद यादव 1991 में मधेपुरा से भारी मतों से जीते और यह जीत का सिलसिला 1996, 1999 और 2009 तक चला.

मधेपुरा से चार बार हारे : हालांकि, शरद यादव को मधेपुरा से चार बार चुनाव हारना भी पड़ा. कभी उनके साथ राजनीति करने वाले लालू यादव ने 1998 और 2004 में शरद यादव को हराया. वहीं, 2014 में आरजेडी से पप्पू यादव ने उन्हें शिकस्त दी और 2019 में नीतीश कुमार के गरीबी दिनेश यादव ने शरद यादव को हराया. हालांकि अपने पूरे राजनीतिक जीवन में शरद यादव कई बार राज्यसभा के सदस्य भी बने.

जिसके साथ खड़े हुए उसी ने धक्का दिया : शरद यादव बड़े ही बेबाक और अक्कड़ वाले नेता थे. इस वजह से उन्हें राजनीति में कई बार नुकसान भी हुआ. जिस लालू यादव को उन्होंने बिहार के राजनीति में स्थापित किया था, वही लालू यादव ने लोकसभा में उन्हें दो बार शिकस्त दी थी. जिस नीतीश कुमार के लिए शरद यादव ने 1997 में लाल यादव से लड़ाई लड़ी, 2016 में नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने के साथ-साथ उनसे राज्यसभा की सदस्यता भी वापस ले ली थी.

सरकारी आवास तक छोड़ना पड़ा : एक समय ऐसा भी आया जब दिल्ली में शरद यादव को सरकारी आवास की जरूरत थी, वो बीमार थे, उस समय उनके पास ना तो लोकसभा की सदस्यता थी और ना ही राज्यसभा की सदस्यता थी, उन्हें सरकारी आवास छोड़ना पड़ा. 12 जनवरी 2023 को शरद यादव ने गुरुग्राम में अंतिम सांस ली. शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी और पुत्र शांतनु अपने पिता की राजनीतिक विरासत को तलाश रहे हैं. हालांकि अभी तक इन दोनों को सफलता नहीं मिली है. बेटी सुभाषिनी ने 2020 में बिहारीगंज से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. शांतनु लगातार मधेपुरा से चुनावी सफर शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं.

मंडल कमिशन लाने में अहम भूमिका : अपनी पूरी राजनीतिक जीवन में शरद यादव को इस तौर पर भी याद किया जाएगा कि उन्होंने अपने जीवन काल में कई सरकारों को गिराया भी और कई सरकारों को बनाया भी. बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और शरद यादव के करीबी रहे नरेंद्र नारायण यादव बताते हैं कि शरद यादव एक ईमानदार, चरित्रवान नेता थे. जो वह बोलते थे वह करते थे. जो समाज के पिछले व्यक्ति थे पीड़ित थे शोषण थे उनकी वह आवाज बने. जो संविधान सम्मत बातें थी जब मंडल कमीशन बना जो सोशली बैकवर्ड थे उनको मुख्यधारा में लाने का मंडल कमीशन में जो रिपोर्ट आया था, शरद यादव चाहते थे कि वह लागू हो और उसे लागू करने में शरद यादव ने हर संभव कोशिश की. उन्होंने पूरे देश में इसके लिए यात्रा की ताकि मंडल कमीशन को केंद्र सरकार लागू करें.

''शरद यादव बराबर कहा करते थे जो पार्टी सत्ता में हो वह कम बोले, उसका काम बोले और जो पार्टी विपक्ष में हो वह जनता की आवाज बने. सारे देश में वह एक ऐसे नेता थे जिन्होंने हवाला कांड को स्वीकार किया, जिसके चलते उनकी परेशानियां बढ़ी, बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने दूध का दूध पानी का पानी किया. उन्होंने ईमानदारी और सत्यता से कभी समझौता नहीं किया. 1990 में जब नेता पद का चुनाव हो रहा था उन्होंने कहा था कि लालू यादव एक साधारण परिवार से आते हैं यह सोच करके शरद यादव ने लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाने में अहम योगदान दिया था.''- नरेंद्र नारायण यादव, शरद यादव के करीबी

'लालू जी-नीतीश जी शरद जी को नेता मानते थे' : शरद यादव के करीबी रहे और लालू यादव के बड़े साले साधु यादव बताते हैं कि शरद यादव मध्य प्रदेश जबलपुर से सांसद रहे, उत्तर प्रदेश के बदायूं से सांसद रहे, उसके बाद बिहार के मधेपुरा से सांसद रहे, बीच-बीच में वह राज्यसभा के सांसद भी रहे. बहुत ही अच्छे विचार के नेता शरद यादव थे. पढ़े लिखे और विद्वान नेता थे. मैं जब उनसे जुड़ा था तो वह जनता दल के ऑल इंडिया सेक्रेटरी थे. चौधरी चरण सिंह ने उनको ऑल इंडिया सेक्रेटरी बनाया था. जब वह पटना आते थे तो लालू यादव ही उनको पटना में ठहारते थे. पटना एयरपोर्ट के सामने एनएच गेस्ट हाउस में वह ठहरते थे. लालू यादव के घर से ही खाना खाने की व्यवस्था की जाती थी. शरद यादव को लालू जी और नीतीश कुमार जी भी नेता मानते थे. लालू जी और नीतीश जी को राजनीति में आगे बढ़ाने में शरद यादव की अहम भूमिका रही थी. लालू जी को मुख्यमंत्री बनाने में उनका अहम योगदान रहा था.

''शरद यादव का एक समय इतना बड़ा कद था कि उसके सामने लालू जी और नीतीश कुमार का कद कुछ भी नहीं था. एक तरह से लालू यादव और नीतीश कुमार के गुरु थे शरद यादव. शरद यादव ने ही 1990 में अपनी रणनीति के तहत लाल यादव को मुख्यमंत्री बनाया था. उस समय एक्टिव रोल में थे. बीपी सिंह चाहते थे कि रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बने. शरद यादव ने चंद्रशेखर से बात करके लालू यादव को मुख्यमंत्री के लिए आगे बढ़ाया. उस समय रघुनाथ झा ने भी एक्टिव रोल निभाया था.''- कन्हैया भेलारी, वरिष्ठ पत्रकार

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पटना : जब-जब समाजवाद का जिक्र होगा तब-तब लोहिया, जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नाडिस और शरद यादव का भी जिक्र होगा. शरद यादव पूरी तरह से समाजवाद की उपज थे. आज उनकी पहली पुण्यतिथि है. जाहिर सी बात है उनकी पहली पुण्यतिथि में भले उनके साथ में काम करने वाले नेता उन्हें याद ना करते हो लेकिन, शरद यादव एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने एक नहीं, दो नहीं, तीन राज्यों से लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया था. शरद यादव बिहार के रहने वाले नहीं थे. उनका जन्म 1947 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था. लेकिन, उन्होंने अपनी राजनीति पूरे देश में घूम-घूम कर की.

एमपी, यूपी और बिहार से सांसद बने : शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से गोल्ड मेडलिस्ट थे. लेकिन, उन्होंने इंजीनियरिंग का काम ना करते हुए अपना पूरा जीवन समाजवाद की राजनीति में झोंक दिया. जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर शरद यादव छात्र आंदोलन में कूद गए. जयप्रकाश नारायण ने ही उन्हें पहली बार हलधर किसान चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया था.

छात्र राजनीति से संसद तक का सफर : छात्र आंदोलन में शरद यादव इतने एक्टिव थे कि उन्हें जेल जाना पड़ा. जेल से ही शरद यादव ने 27 साल की उम्र में चुनाव लड़ा और जबलपुर से वह सांसद हो गए. जनता दल में उनका कद लगातार बढ़ता गया. 1989 में उत्तर प्रदेश के बदायूं से शरद यादव ने चुनाव लड़ा और उस समय भी उन्होंने जीत हासिल की. इस जीत के साथ ही शरद यादव वीपी सिंह की सरकार में कपड़ा मंत्री बन गए. इसके बाद शरद यादव ने अपना रुख बिहार का किया.

मधेपुरा से चार बार जीते : कहते हैं रोम है पोप का और मधेपुरा है गोप का. उन्होंने अपना चुनाव क्षेत्र मधेपुरा को चुना. मधेपुरा यादवों के गढ़ के तौर पर जाना जाता है. शरद यादव 1991 में मधेपुरा से भारी मतों से जीते और यह जीत का सिलसिला 1996, 1999 और 2009 तक चला.

मधेपुरा से चार बार हारे : हालांकि, शरद यादव को मधेपुरा से चार बार चुनाव हारना भी पड़ा. कभी उनके साथ राजनीति करने वाले लालू यादव ने 1998 और 2004 में शरद यादव को हराया. वहीं, 2014 में आरजेडी से पप्पू यादव ने उन्हें शिकस्त दी और 2019 में नीतीश कुमार के गरीबी दिनेश यादव ने शरद यादव को हराया. हालांकि अपने पूरे राजनीतिक जीवन में शरद यादव कई बार राज्यसभा के सदस्य भी बने.

जिसके साथ खड़े हुए उसी ने धक्का दिया : शरद यादव बड़े ही बेबाक और अक्कड़ वाले नेता थे. इस वजह से उन्हें राजनीति में कई बार नुकसान भी हुआ. जिस लालू यादव को उन्होंने बिहार के राजनीति में स्थापित किया था, वही लालू यादव ने लोकसभा में उन्हें दो बार शिकस्त दी थी. जिस नीतीश कुमार के लिए शरद यादव ने 1997 में लाल यादव से लड़ाई लड़ी, 2016 में नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने के साथ-साथ उनसे राज्यसभा की सदस्यता भी वापस ले ली थी.

सरकारी आवास तक छोड़ना पड़ा : एक समय ऐसा भी आया जब दिल्ली में शरद यादव को सरकारी आवास की जरूरत थी, वो बीमार थे, उस समय उनके पास ना तो लोकसभा की सदस्यता थी और ना ही राज्यसभा की सदस्यता थी, उन्हें सरकारी आवास छोड़ना पड़ा. 12 जनवरी 2023 को शरद यादव ने गुरुग्राम में अंतिम सांस ली. शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी और पुत्र शांतनु अपने पिता की राजनीतिक विरासत को तलाश रहे हैं. हालांकि अभी तक इन दोनों को सफलता नहीं मिली है. बेटी सुभाषिनी ने 2020 में बिहारीगंज से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. शांतनु लगातार मधेपुरा से चुनावी सफर शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं.

मंडल कमिशन लाने में अहम भूमिका : अपनी पूरी राजनीतिक जीवन में शरद यादव को इस तौर पर भी याद किया जाएगा कि उन्होंने अपने जीवन काल में कई सरकारों को गिराया भी और कई सरकारों को बनाया भी. बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और शरद यादव के करीबी रहे नरेंद्र नारायण यादव बताते हैं कि शरद यादव एक ईमानदार, चरित्रवान नेता थे. जो वह बोलते थे वह करते थे. जो समाज के पिछले व्यक्ति थे पीड़ित थे शोषण थे उनकी वह आवाज बने. जो संविधान सम्मत बातें थी जब मंडल कमीशन बना जो सोशली बैकवर्ड थे उनको मुख्यधारा में लाने का मंडल कमीशन में जो रिपोर्ट आया था, शरद यादव चाहते थे कि वह लागू हो और उसे लागू करने में शरद यादव ने हर संभव कोशिश की. उन्होंने पूरे देश में इसके लिए यात्रा की ताकि मंडल कमीशन को केंद्र सरकार लागू करें.

''शरद यादव बराबर कहा करते थे जो पार्टी सत्ता में हो वह कम बोले, उसका काम बोले और जो पार्टी विपक्ष में हो वह जनता की आवाज बने. सारे देश में वह एक ऐसे नेता थे जिन्होंने हवाला कांड को स्वीकार किया, जिसके चलते उनकी परेशानियां बढ़ी, बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने दूध का दूध पानी का पानी किया. उन्होंने ईमानदारी और सत्यता से कभी समझौता नहीं किया. 1990 में जब नेता पद का चुनाव हो रहा था उन्होंने कहा था कि लालू यादव एक साधारण परिवार से आते हैं यह सोच करके शरद यादव ने लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाने में अहम योगदान दिया था.''- नरेंद्र नारायण यादव, शरद यादव के करीबी

'लालू जी-नीतीश जी शरद जी को नेता मानते थे' : शरद यादव के करीबी रहे और लालू यादव के बड़े साले साधु यादव बताते हैं कि शरद यादव मध्य प्रदेश जबलपुर से सांसद रहे, उत्तर प्रदेश के बदायूं से सांसद रहे, उसके बाद बिहार के मधेपुरा से सांसद रहे, बीच-बीच में वह राज्यसभा के सांसद भी रहे. बहुत ही अच्छे विचार के नेता शरद यादव थे. पढ़े लिखे और विद्वान नेता थे. मैं जब उनसे जुड़ा था तो वह जनता दल के ऑल इंडिया सेक्रेटरी थे. चौधरी चरण सिंह ने उनको ऑल इंडिया सेक्रेटरी बनाया था. जब वह पटना आते थे तो लालू यादव ही उनको पटना में ठहारते थे. पटना एयरपोर्ट के सामने एनएच गेस्ट हाउस में वह ठहरते थे. लालू यादव के घर से ही खाना खाने की व्यवस्था की जाती थी. शरद यादव को लालू जी और नीतीश कुमार जी भी नेता मानते थे. लालू जी और नीतीश जी को राजनीति में आगे बढ़ाने में शरद यादव की अहम भूमिका रही थी. लालू जी को मुख्यमंत्री बनाने में उनका अहम योगदान रहा था.

''शरद यादव का एक समय इतना बड़ा कद था कि उसके सामने लालू जी और नीतीश कुमार का कद कुछ भी नहीं था. एक तरह से लालू यादव और नीतीश कुमार के गुरु थे शरद यादव. शरद यादव ने ही 1990 में अपनी रणनीति के तहत लाल यादव को मुख्यमंत्री बनाया था. उस समय एक्टिव रोल में थे. बीपी सिंह चाहते थे कि रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बने. शरद यादव ने चंद्रशेखर से बात करके लालू यादव को मुख्यमंत्री के लिए आगे बढ़ाया. उस समय रघुनाथ झा ने भी एक्टिव रोल निभाया था.''- कन्हैया भेलारी, वरिष्ठ पत्रकार

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