पटना: बिहार के राजधानी पटना के एक बार फिर जगह-जगह कूड़े का अंबार दिखना शुरू हो गया है. इसका मुख्य वजह सफाई कर्मियों का हड़ताल (Sanitation Workers Strike) है. दरअसल, अपनी 15 सूत्रीय मांगों को लेकर सोमवार से पटना नगर निगम (Patna Municipal Corporation) के चतुर्थ वर्गीय सफाई कर्मी अनिश्चितकाल हड़ताल पर चले गए हैं.
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सफाई कर्मी के हड़ताल पर जाने के वजह से शहर में गंदगी दिखना शुरू हो गया है. सफाई कर्मी अपनी मांगों को लेकर निगम प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए भी देखे जा रहे हैं. कर्मियों का कहना है निगम प्रशासन हमारी मांगों को जब तक नहीं मानती है. तब तक काम नहीं करेंगे.
पटना नगर निगम चतुर्थवर्गीय कर्मचारी संघ के बैनर तले सोमवार से सफाई कर्मी अनिश्चितकाल हड़ताल पर चले गए हैं. हड़ताल का पहला दिन असरदार रहा. क्योंकि मोहल्लों से कूड़े का उठाव नहीं हुआ. हालांकि, निगम प्रशासन की तरफ से आउटसोर्स पर बहाल सफाई कर्मियों के माध्यम से कुछ इलाके में सफाई भी कराई गई.
आज हड़ताल का दूसरा दिन है. सुबह से ही शहर के विभिन्न इलाकों में कूड़ा पॉइंट पर कूड़े का ढेर जमा हो गया है. निगम मुख्यालय पर सफाई कर्मियों का जोरदार प्रदर्शन जारी है. कर्मचारियों ने कहा है कि हमारी मांगों को माने जाने तक हड़ताल पर रहेंगे. बता दें कि चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के समर्थन में अब निजी एजेंसी के कर्मचारी भी आ गए हैं. जिसकी वजह से शहर में अब कूड़े का अंबार दिखना शुरू हो गया है.
बताते चलें कि अपनी मांगों को लेकर पटना नगर निगम के सफाई कर्मी 3 फरवरी 2019 से 9 अगस्त 2021 तक 6 बार हड़ताल कर चुके हैं. लेकिन उनकी 15 सूत्रीय मांगे वहीं के वहीं पड़ी हुई है. अब ऐसे में सफाई कर्मी आर पार के मूड में नजर आ रहे हैं. देखने वाली बात होगी कि अब शहर की सफाई को लेकर सरकार इन सफाई कर्मियों के साथ सुलह करती है या फिर कोई और दूसरा रास्ता निकालती है.
बात दें कि चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों की नियुक्ति पर 2018 से रोक है. एजेंसी के जरिए आउटसोर्सिंग ही एकमात्र विकल्प दिया गया है. फिलहाल, करीब 4200 दैनिक सफाई मजदूर और 2200 के मजदूर हैं. इन्हीं 4200 में 10 साल पुराने मजदूरों को स्थाई करने की योजना बनी है. मगर फाइल आगे नहीं बढ़ पाई.
दैनिक कर्मचारियों से अस्थाई कर्मचारियों की तर्ज पर भी काम लिया जा रहा है. इसलिए समान काम समान वेतन की मांग तेज है. दैनिक कर्मचारी 18 हजार वेतनमान मांग रहे हैं. मतलब अभी 10 हजार 400 रुपये मानदेय मिलता है. मांग मानने पर 4200 दैनिक कर्मियों पर लगभग 3 करोड़ से अधिक निगम प्रशासन पर बोझ बढ़ जाएगा.
बात दें कि आउटसोर्स में कई एजेंसियां कर्मचारी दे रही हैं. कर्मचारियों की मांग उनके लिए सेवा शर्त बनाने की है. ताकि ऐसे कर्मियों को एजेंसी तत्काल हटा न सके. आरोप है कि एजेंसी कर्मियों के नाम पर 13 हजार 800 रुपये निगम प्रशासन से लेते हैं. लेकिन इन्हें 7 हजार ही दिया जाता है. चालकों के लिए 18 से 22 हजार, लेकिन इन्हें 9 से 10 हजार ही दिए जाते हैं. वहीं, ईपीएफ की गणना में सुधार और इसे सीधे मजदूरों के खाते में जमा कराने की मांग अप्रैल 2016 से इसमें विसंगति दिख रही है. औसतन 1200 रुपये के हिसाब से 1 माह में 4200 कर्मचारियों से लगभग एक लाख की कटौती होती है. पिछले 5 साल 2 माह में करीब 31 करोड़ की कटौती हुई है. जमा 350 करोड़ रुपए ही हुए.
नगर निगम की जमीन पर कॉलोनी बनाकर सफाई कर्मियों को आवास सुविधा देने की मांग निगम प्रशासन ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में इसका प्रस्ताव तैयार किया था. इसे धरातल पर उतारने की, लेकिन यह योजना अभी धरातल पर उतर न सकी. वहीं, वाहन मरम्मत का कार्य एजेंसी चालकों पर छोड़ती है. आरोप है कि एजेंसी इस मद में राशि लेती है लेकिन उसे ड्राइवर को नहीं दिया जाता कर्मचारियों की मांग है. वाहन मरम्मत की राशि सीधे ड्राइवर को दी जाए.
बता दें कि कर्मचारियों ने 25 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा लागू कराने की मांग की है. कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ा है. निगम अभी कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए 10 लाख की बीमा की सुविधा इन कर्मियों को दी हुई है. लेकिन कर्मी इतनी राशि से खुश नहीं है. वहीं, कोरोना संक्रमण काल में सफाई कर्मियों द्वारा लगातार कार्य करने को लेकर निगम प्रशासन के तरफ से 45 सौ रुपये प्रोत्साहन भत्ता देने की बात कही गई थी. लेकिन यह राशि अभी तक सभी कर्मचारियों को नहीं मिली है. जिसको लेकर यह लगातार मांग कर रहे हैं.
पटना नगर निगम में बहाल कर्मचारियों को रिटायर्ड और मृत कर्मचारियों की बकाया विभिन्न राशि के भुगतान में लगाए गए रोग को अन्य अविलंब हटाया जाए बकाया राशि भुगतान की जाए. वहीं, कर्मचारियों ने तृतीय वर्गीय कर्मचारियों का बिहार कैडर बनाने का भी विरोध किया है. पिछले दिनों इस कैडर के तहत कर्मचारियों का ट्रांसफर भी किया गया. हालांकि, बाद में हंगामा मचने पर सरकार की ओर से हस्तांतरण का आदेश वापस ले लिया गया. लेकिन कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार इसे पूरी तरह से निरस्त नहीं की है.
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