पटना: आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बिहार समेत देश की राजनीति पर अपने विचार व्यक्त किए. ईटीवी भारत बिहार के ब्यूरो चीफ प्रवीण बागी ने उनसे खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कई सवाल किए. शिवानंद तिवारी ने बेबाकी से उन सवालों के जवाब दिए. साथ ही अपनी राय भी बताई.
पढ़ें बातचीत के खास अंश:
सवाल: सीएए के खिलाफ मुस्लिम समाज सबसे ज्यादा मुखर है और आप कह रहे थे ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही है तो क्या इससे ध्रुवीकरण को बल नहीं मिलेगा.
जवाब: देखिए ध्रुवीकरण हुआ है इसीलिए हम कह रहे हैं कि यह लड़ाई सिर्फ जो है मुसलमानों की नहीं है यह संविधान और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है संविधान बचाने में सबसे ज्यादा स्टेट जो हैं पिछड़ों और दलितों का है यादवों का भी है.
सवाल: मगर पिछड़े और दलित उस आंदोलन में नहीं दिख रहे हैं मुस्लिम सबसे ज्यादा दिख रहे हैं.
जवाब: नहीं आपको मुस्लिम सबसे ज्यादा दिख रहे हैं. उसके बाद दलित भी दिख रहे हैं. आप देखें कि अभी से 8 दिन पहले चंद्रशेखर आजाद की गिरफ्तारी हुई. बेल मिलने के बाद हजारों का मजमा उसके पीछे लगा हुआ था. दलित धीरे-धीरे उसके साथ जुड़ रहे हैं, और हम लोगों का प्रयास यह है कि पिछड़े देश की लड़ाई को समझें. यह लड़ाई संविधान बचाने की है. उस संविधान को बचाने की है जिसकी वजह से आजादी के इतने वर्षों के बाद जो प्रतिष्ठा को मिली है. जब आप सिर उठाकर चल रहे हैं. उसी वजह से मिली है. और आज जो है मुसलमान टारगेट पर हैं, और कल को इनका टारगेट दलित होंगे. आरक्षण को लेकर मोहन भागवत 1से अधिक बाद आरक्षण के बारे में विरोध किया था.
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सवाल: केंद्र सरकार तो यह कह रही है, कि जो नागरिकता कानून लाया गया है. उससे सबसे ज्यादा फायदा दलितों को होगा, क्योंकि शरणार्थियों के रूप में सिर्फ दलित ही आए हैं.
जवाब: वह झूठ बोल रहे हैं. देखिए जो आदमी प्रधानमंत्री, गृह मंत्री बने और झूठ बोले तो कभी-कभी शर्मिंदगी होती है कि इतना बड़ा झूठ कैसे बोल सकता है. अब याद कीजिए कि रामलीला मैदान में भी पिछले दिनों जो मीटिंग हुई है. प्रधानमंत्री स्पष्टीकरण देने के लिए उठे और उस आदमी ने कहा कि पिछले साढ़े 5 वर्षों में एनआरसी शब्द पर हमारी सरकार में चर्चा ही नहीं हुई. शब्द ही नहीं कभी आया. जबकि कई लोगों के पास वो वलीडियो मिल जाएगा जिसमें उन्होंने चर्चा की थी. मोदी ने कहा था कि हमारी सरकार तो बड़ा काम करने जा रही है. एक नागरिकता कानून संशोधन और दूसरा नागरिक रजिस्टर बनाएगी. उन्होंने ही कहा और अब इनकार कर रहे हैं. यानि कि वो आदमी बहुत बड़ा झूठ बोल रहा है.
सवाल: नहीं तो अगर वो विरोध देखकर पीछे हट रहे हैं तो इसका स्वागत होना चाहिए.
जवाब: नहीं-नहीं पीछे किस मामले में हट रहे हैं. कहां हट रहे हैं. अभी भी नेशनल पापुलेशन रजिस्टर के बारे में जो मीटिंग हुई है. उसमें नए सवाल जो छूट गए. पापुलेशन रजिस्टर में कहा जा रहा है कि आपके माता-पिता कहां पैदा हुए. कब पैदा हुए इसकी भी जानकारी दीजिए.
सवाल: मगर उसमें तो सारे स्टेट के लोग आए थे. पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि भी आए थे.
जवाब: आए थे, लेकिन कई लोगों ने उसका विरोध किया. वेस्ट बंगाल के अफसरों ने विरोध किया. वहां तेलंगाना के चीफ सेक्रेटरी ने भी विरोध किया था. तो यह जो जोड़ा गया है. इसके बाद आपको 2003 में नेशनल पापुलेशन रजिस्टर के बारे में अटल जी की सरकार में एक संशोधन हुआ था. जिसमें कहा गया था कि नेशनल पापुलेशन रजिस्टर में जानकारी देंगे. उसका वेरिफिकेशन होगा. इसमें आप जो दीजिएगा फादर मदर का नाम तो कैसे होगा.
सवाल: नहीं तो जनगणना में तो पहले से ही फादर मदर का नाम पूछा जाता है.
जवाब: नहीं फादर मदर का नाम पूछना अलग बात है फादर मदर आपकी कब पैदा हुए कहां पैदा हुए यह पूछना नहीं बात है 2010 में हुआ है ना पापुलेशन रजिस्टर इसके बारे में हमारे सीएम ने से जब असेंबली में भी पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम जल जीवन हरियाली यात्रा में थे, इसलिए कोई उसमें परिवर्तन हुआ है या नहीं सवाल जुड़ेगा इसको हमने नहीं देखा है. नीतीश बोलकर निकल गए. हम उनके साथ लंबे समय से रहे हैं काम किया है.
सवाल: आप उनके साथ लंबे समय तक काम करते रहे हैं तो उनके और उनकी सरकार के कामकाज का आकलन आप किस तरह से करते हैं.
जवाब: जो अभी नेशनल क्राइम ब्यूरो का रिपोर्ट छपा है वह कह रहा है कि साहब बिहार में दहेज को लेकर के जो मारी जाने वाली महिलाएं हैं. उनकी संख्या सबसे अधिक है और यह आदमी जो है. जल जीवन हरियाली यात्रा शराबबंदी और औरतों के अधिकार के लिए मानव श्रृंखला बना रहे है. यह हालत है बिहार की. सरकार नीतीश कुमार की बिहार में अखबारों की क्या दुर्दशा इसमें देख लीजिए हम तो एक पत्रकार के बारे में जानते हैं जिसका उन्होंने यानी कि नीतीश कुमार ने ट्रांसफर करा दिया.
सवाल: आप उनके मित्र रहे तो आप उनको सलाह नहीं देते हैं बीच-बीच में.
जवाब: अरे वह सलाह क्या सुनेंगे भाई. जिसके लिए लड़ाई है हमने लालू यादव पर मुकदमा किया. किसके लिए किया किसको लाभ मिला. उसका उसी को लाभ मिला ना और उनको देखें. हम ही को पार्टी से निकाल दिये क्योंकि पार्टी के राजगीर सम्मेलन में हमने सम्मेलन में चेतावनी दिया कि नरेंद्र मोदी चाय बेचने वाला आदमी प्रधानमंत्री की कुर्सी का मजबूत दावेदार है, क्योंकि आरएसएस की विचारधारा इस देश में लागू करेगा. आप खुद ही देख लीजिए कि गुजरात में 2002 में मोदी थे मुख्यमंत्री. उसके पहले केशुभाई पटेल हुआ करते थे. केशुभाई पटेल की अगुवाई में वहां पर लोकल बॉडीज और विधानसभा के इलेक्शन हुए थे. जिसमें बीजेपी जीती थी, लेकिन जैसे ही 2002 में मोदी आए. तो वहां पर गोधरा हो गया अब उसके बाद 2019 में आप देख लीजिए तो उसमें पुलवामा, बालाकोट और अब देवेंद्र सिंह डीएसपी जो पकड़ा गया है बहुत सारी बातें साफ हो रही हैं.
सवाल: विपक्ष के सामने आखिर क्या मजबूरी है कि विपक्ष क्यों एकजुट नहीं हो रहा है.
जवाब: यही तो रोना है कि विपक्ष में कौन एकजुट नहीं है और विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा. पार्टियों को खासतौर पर जो अपने आप को संभाले. कम्युनिस्ट, कांग्रेस सब लोगों ने जो राजनीति किया है. आज उस राजनीति का ही नतीजा है कि भारतीय जनता पार्टी और कट्टरवाद देश की कुर्सी पर बैठ गया है. यह है और उससे निजात नहीं पाया जा सकता. जिस तरह का वातावरण बन रहा है. देख लीजिए कि तमाम विश्वविद्यालयों के छात्र अब सड़क पर उतरे हैं.
सवाल: तो एक बात बताइए, कांग्रेस कमजोर हुई है विपक्ष में तो क्या ऐसा माना जाए कि विपक्ष कांग्रेस के कमजोर होने के चलते ही कमजोर हो गया है.
जवाब: नहीं विपक्ष का बिखरना जो कमजोर दिखाई दे रहा है उसके पीछे कारण जरूर हैं.
सवाल: लेकिन बिहार में आप सबसे बड़ी पार्टी है. आपको लीड रोल में रहना चाहिए लेकिन क्यों सब शांत है.
जवाब: हम लीड रोल में ही थे और लीड रोल में ही हैं और रहेंगे भी.
कौन है शिवानंद तिवारी
राज्यसभा सांसद और आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी बिहार की राजनीति में एक महत्तवपूर्ण व्यक्तित्व माने जाते हैं. नेता शिवानंद तिवारी स्नातक की पढ़ाई के बाद से ही राजनीति में आ गए. 1965 में उन्होंने पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के 'घेरा डालो आंदोलन' में भाग लिया था.
शिवानंद तिवारी एक प्रखर व्यक्ति
इसी दौरान उनका प्रखर व्यक्तिव सामने आया, जब 1965 में ही पटना के गांधी मैदान में धारा 144 के उल्लंघन डॉ. लोहिया की गिरफ्तारी के विरोध में चल रही बैठक में शामिल हुए और पुलिस के डंडों का बहादुरी से सामना किया. इसके बाद उन्होंने 1970 में पटना में 'अंग्रेजी हटाओ' आंदोलन में भाग लिया. शिवानंद तिवारी दिल्ली में 'कच्छ आंदोलन' को लेकर गिरफ्तार भी किए गए. इसी आंदोलन के लिए 1974 में चार बार जेल यात्राएं करना पड़ीं.
कई बार जा चुके हैं जेल
इमरजेंसी के समय में भी शिवानंद तिवारी ने कई यातनाएं सहीं. वे 17 महीने और 18 दिन के लिए मीसाबंदी के तहत जेल में रहे और प्रेस विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने पर भी गिरफ्तार हुए.
- शिवानंद तिवारी शुरू में आरजेडी की ओर से लंबे समय तक राजनीति करते रहे. उन्होंने पंचायत, जिला सचिव, अध्यक्ष का कार्यभार संभाला.
- पहली बार 1996 में बिहार विधानसभा की भोजपुर सीट से जीतकर सदस्य बने. 2000 में वे एक बार फिर से राज्य विधानसभा के लिए चुन लिए गए.
- मई 2008 में वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य बने.इसी समय शिवानंद तिवारी फाइनेंस कमेटी के सदस्य और गृह मंत्रालय के परामर्शदात्री समिति के सदस्य भी बने.2009 में वे राजभाषा कमेटी के सदस्य तथा अचार संहिता पर बनने वाली कमेटी के भी सदस्य बने.अगस्त 2009 में वे विदेशी मामलों की कमेटी के सदस्य और रक्षा मामलों की कमेटी के परामर्शदात्री सदस्य बने.सितंबर 2009 में वे विधानसभा संबंधित कमेटी के तथा दिसंबर 2009 में ही वे समान्य प्रयोजन कमेटी के सदस्य बने. लोकसभा चुनाव 2014 के पहले शिवानंद तिवारी को पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण जेडीयू से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था.इसके बाद उन्होंने लालू की पार्टी का दामन थाम लिया और उन्हें राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री बनाया.