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धान की कटनी के बाद खेतों में नहीं जलाएं अवशेष, खेती में होगा नुकसान

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 28, 2023, 6:00 PM IST

Paddy Harvest Burning In Patna: पटना के मसौढी में धान की कटनी के बाद खेतों में अवशेष जलाने को रोकने और किसानों को जागरूकता को लेकर कृषि वैज्ञानिक मृणाल सिंह ने कई अहम जानकारी दी. उन्होंने कहा कि खेतों में जल रहे परली पर न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म कर रही है, बल्कि वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है.

BURNING PADDY HARVEST IN PATNA
धान की कटनी के बाद खेतों में नहीं जलाएं अवशेष

पटना: बिहार के खेतों में पराली को जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता ही है. साथ ही किसानो भी भारी नुकसान होता है. खेतों में पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं, साथ ही जमीन की ऊपरी सतह पर उपलब्ध उर्वरक शक्ति भी क्षीण हो जाती है. इससे अगली फसल में किसानों को ज्यादा खाद और सिंचाई करनी पड़ती हैं. उससे फसल की लागत बढ़ जाती है. ऐसे में पराली खेत में जलने की बजाय मिट्टी में दबा देना ही हितकर है. इससे वह पराली मिट्टी में सडकर कार्बनिक खाद का काम करती हैं. जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती हैं.

पराली को खाद में करें तब्दील: कृषि वैज्ञानिकों की माने तो फसल कट जाने के बाद पराली को काटकर एक गड्ढे में भर दिया जाए तो उसमें गुड़ चीनी उड़िया गोबर का धोल डाल दें. जिससे वह पूरी तरह से कार्बनिक खाद में तब्दील हो जाएगा और यह अगली फसल के लिए काफी लाभदायक साबित होता है. किसानों से गुजारिश है कि खेतों में प्राली ना जलाएं.

BURNING PADDY HARVEST IN PATNA
धान की कटनी के बाद खेतों में नहीं जलाएं अवशेष

"परंपरागत बुवाई के तरीकों की तुलना में हैप्पी सीडर के उपयोग से 20% अधिक लाभ हो सकता है, लेकिन इन तकनीक के बारे में लोगों के पास जानकारी की कमी है. धान के पुआल में सिलिकणो की मौजूदगी के बावजूद उसे औद्योगिक उपयोग के अनुकूल बनाया जा सकता है. इस तकनीकी मदद से किसी भी कृषि अपशिष्ट या लिगनेनो सैलूलोजिक्स द्रव्यमान को फॉलो सैलूलोज फाइबर या और लिगनेन में परिवर्तित कर सकते हैं." - मृणाल सिंह, कृषि वैज्ञानिक, पटना.

जागरूकता अभियान चलाया गया: खेतों में जल रहे परली पर न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म कर रही है. बल्कि वातावरण को प्रदूषित कर रही है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने लगातार किसने को एक जागरूकता अभियान के तहत पराली को प्रबंधन करने के तौर पर भी सीख रहे हैं. जिसमें उन्हें बताया जा रहा कि सभी खेतों को पुआल को एक जगह जमा कर के उसे ऑक्सीजन की कमी लाकर उसे जलाने से बायोकर बनता है. बाय अचार बनने से मीठी में खाद के जैसा उन्हें उर्वरक मिल जाता है. इसके साथ ही कई तरह के तकनीकी के बारे में कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं, ताकि परली का प्रबंध हो सके.

इसे भी पढ़े- कैमूर डीएम की किसानों से अपील- मत जलाएं पराली

पटना: बिहार के खेतों में पराली को जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता ही है. साथ ही किसानो भी भारी नुकसान होता है. खेतों में पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं, साथ ही जमीन की ऊपरी सतह पर उपलब्ध उर्वरक शक्ति भी क्षीण हो जाती है. इससे अगली फसल में किसानों को ज्यादा खाद और सिंचाई करनी पड़ती हैं. उससे फसल की लागत बढ़ जाती है. ऐसे में पराली खेत में जलने की बजाय मिट्टी में दबा देना ही हितकर है. इससे वह पराली मिट्टी में सडकर कार्बनिक खाद का काम करती हैं. जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती हैं.

पराली को खाद में करें तब्दील: कृषि वैज्ञानिकों की माने तो फसल कट जाने के बाद पराली को काटकर एक गड्ढे में भर दिया जाए तो उसमें गुड़ चीनी उड़िया गोबर का धोल डाल दें. जिससे वह पूरी तरह से कार्बनिक खाद में तब्दील हो जाएगा और यह अगली फसल के लिए काफी लाभदायक साबित होता है. किसानों से गुजारिश है कि खेतों में प्राली ना जलाएं.

BURNING PADDY HARVEST IN PATNA
धान की कटनी के बाद खेतों में नहीं जलाएं अवशेष

"परंपरागत बुवाई के तरीकों की तुलना में हैप्पी सीडर के उपयोग से 20% अधिक लाभ हो सकता है, लेकिन इन तकनीक के बारे में लोगों के पास जानकारी की कमी है. धान के पुआल में सिलिकणो की मौजूदगी के बावजूद उसे औद्योगिक उपयोग के अनुकूल बनाया जा सकता है. इस तकनीकी मदद से किसी भी कृषि अपशिष्ट या लिगनेनो सैलूलोजिक्स द्रव्यमान को फॉलो सैलूलोज फाइबर या और लिगनेन में परिवर्तित कर सकते हैं." - मृणाल सिंह, कृषि वैज्ञानिक, पटना.

जागरूकता अभियान चलाया गया: खेतों में जल रहे परली पर न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म कर रही है. बल्कि वातावरण को प्रदूषित कर रही है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने लगातार किसने को एक जागरूकता अभियान के तहत पराली को प्रबंधन करने के तौर पर भी सीख रहे हैं. जिसमें उन्हें बताया जा रहा कि सभी खेतों को पुआल को एक जगह जमा कर के उसे ऑक्सीजन की कमी लाकर उसे जलाने से बायोकर बनता है. बाय अचार बनने से मीठी में खाद के जैसा उन्हें उर्वरक मिल जाता है. इसके साथ ही कई तरह के तकनीकी के बारे में कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं, ताकि परली का प्रबंध हो सके.

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