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'किसानों के दुख-दर्द के प्रति सरकार उदासीन, नए कानून से कॉरपोरेट को पहुंचेगा फायदा'

किसानों के समर्थन में किसान नेता डॉ. सत्यजीत ने कहा कि देश भर में चल रहे किसानों के प्रतिरोध आंदोलन ने न सिर्फ खेती-किसानी, बल्कि आम लोगों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. सरकार देश भर के किसानों के दुख-दर्द के प्रति उदासीन नहीं रह सकती है.

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Published : Dec 7, 2020, 7:59 AM IST

Updated : Dec 7, 2020, 12:53 PM IST

support of farmers in patna
support of farmers in patna

पटना: केंद्रीय कृषि बिल 2020 के विरोध में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन चल रहा है. इसकी को लेकर पटना जिले के बिहटा के राघोपुर स्थित स्वामी सहजानंद आश्रम में कृषि बिल और किसान आंदोलन को लेकर किसान नेता और स्वामी सहजानंद सीताराम आश्रम के ट्रस्टी डॉ. सत्यजीत ने एक प्रेस वार्ता की, जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों की मांग को लेकर शांति पूर्वक सुनना चाहिए. साथ ही उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन भी किया.

"देश भर में चल रहे किसानों के प्रतिरोध आंदोलन ने न सिर्फ खेती-किसानी, बल्कि आम लोगों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. सरकार देश भर के किसानों के दुख-दर्द के प्रति उदासीन नहीं रह सकती है. आज देश भर के किसान केंद्र सरकार से अपनी चिंताओं का निराकरण और उनका समाधान चाहते हैं. ये किसान जिन सवालों को उठा रहे हैं. दशक पूर्व किसान नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती बिहटा स्थित आश्रम से निरंतर उठाते रहे थे"- डॉ. सत्यजीत, किसान नेता

वहीं, इस मौके पर जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. नवल किशोर सिंह ने कहा कि देश में कृषि समवर्ती सूची में रहा है. ऐसे में कृषि संबंधी कोई भी कानून बनाने के पहले केंद्र व राज्य सरकारों की राय लेनी चाहिए थी. लेकिन इस प्रक्रिया का पालन न कर आनन-फानन में कानूनों को ऐसे लाया गया, जिससे किसानों को ऐसा प्रतीत हुआ कि ये कानून उनपर थोपा गया है. आजादी के पूर्व भारत व बिहार की कृषि विश्व बाजार के उतार-चढावों से जुड़ी हुई थी. सीलिंग एक्ट न होने के कारण जमींदारी व्यवस्था थी.

देखें रिपोर्ट...

'किसानों को आशंका है कि नए कानून से मुख्यत कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने वाले हैं. खेती का कार्य अब किसान नहीं कम्पनी करेगी. उन्हें अपनी लागत भी हासिल नहीं हो पाएगी. स्वामीनाथन आयोग ने अपनी सिफारिशों में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत का कम से कम डेढ़ गुणा रखने की मांग की थी. लेकिन कहीं भी यह लागू नहीं होता. अब तक न सिर्फ स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने का वादा न सर्फ अधूरा है:' डॉ. नवल किशोर सिंह: अर्थशास्त्री

जानें क्या है संसद से पास 3 नए कानून:

1. 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य कानून 2020': इसमें सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है. किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. साथ ही निजी खरीदारों को भी बेहतर दाम मिल पाएंगे. लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते है.

2. 'कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020'': इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है. इसे सामान्य भाषा में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार को किराये पर दे सकते है और वो हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा. हलांकि देश के कुछ किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चाहते हैं.

3. 'आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020': किसानों का कहना है कि यह कानून सिर्फ किसानों के लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है. अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी. सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? खुली छूट. यह तो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है.

पैक्स नहीं खरीद रहा धान'
बता दें कि सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर चुकी है. यह देश के लगभाग 14 करोड़ से अधिक कृषि परिवारों का सवाल है. जानकारों का कहना है कि अधिक संख्या में किसान एमएसपी का लाभ नहीं उठा पाते हैं. इस कारण किसान बाजार और बिचौलियों पर ही निर्भर रहते हैं. उदाहरण के लिए अभी बिहार में सरकार की ओर से धान खरीद की कीमत तो तय कर दी गई है. लेकिन अभी तक पैक्स की ओर से धान की खरीद शुरु नहीं हुई है. चुंकी धान कच्चा फसल होता और उसे ज्यादा दिन तक भंडारण भी नहीं कर सकते है. इस कारण किसान उसे औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर है.

बिहार के किसानों को कितना फायदा हुआ?
सरकार का कहना है कि निजी क्षेत्र के आने से किसानों को लंबे समय में फायदा होगा. लेकिन बिहार में सरकारी मंडी व्यवस्था तो 2006 में ही खत्म हो गई थी. 14 वर्ष बीत गए. अब जवाब है कि वहां इतने दिनों में किसानों की क्या हुआ? वहां के किसानों को क्यों आज औने-पौने धाम पर फसल बेचनी पड़ रही है? अगर वहां इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी तो मजदूरों के पलायन क्यों कर रहे है? ऐसे कई सवाल हैं, लेकिन जबाव नहीं. बता दें कि बिहार में 60 प्रतिशत लोगों के पास अपनी जमीन नहीं है. ऐसे में वहां दूसरे के जमीन में खेती कर रहे किसानों का क्या होगा?. इन्हीं सब समस्याओं को लेकर देश के किसान आज सड़कों पर है. विशेषज्ञयों का कहना कि ये काननू किसानों के हित में नहीं है और सरकार को इस कानून को वापस ले लेना चाहिए.

पटना: केंद्रीय कृषि बिल 2020 के विरोध में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन चल रहा है. इसकी को लेकर पटना जिले के बिहटा के राघोपुर स्थित स्वामी सहजानंद आश्रम में कृषि बिल और किसान आंदोलन को लेकर किसान नेता और स्वामी सहजानंद सीताराम आश्रम के ट्रस्टी डॉ. सत्यजीत ने एक प्रेस वार्ता की, जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों की मांग को लेकर शांति पूर्वक सुनना चाहिए. साथ ही उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन भी किया.

"देश भर में चल रहे किसानों के प्रतिरोध आंदोलन ने न सिर्फ खेती-किसानी, बल्कि आम लोगों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. सरकार देश भर के किसानों के दुख-दर्द के प्रति उदासीन नहीं रह सकती है. आज देश भर के किसान केंद्र सरकार से अपनी चिंताओं का निराकरण और उनका समाधान चाहते हैं. ये किसान जिन सवालों को उठा रहे हैं. दशक पूर्व किसान नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती बिहटा स्थित आश्रम से निरंतर उठाते रहे थे"- डॉ. सत्यजीत, किसान नेता

वहीं, इस मौके पर जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. नवल किशोर सिंह ने कहा कि देश में कृषि समवर्ती सूची में रहा है. ऐसे में कृषि संबंधी कोई भी कानून बनाने के पहले केंद्र व राज्य सरकारों की राय लेनी चाहिए थी. लेकिन इस प्रक्रिया का पालन न कर आनन-फानन में कानूनों को ऐसे लाया गया, जिससे किसानों को ऐसा प्रतीत हुआ कि ये कानून उनपर थोपा गया है. आजादी के पूर्व भारत व बिहार की कृषि विश्व बाजार के उतार-चढावों से जुड़ी हुई थी. सीलिंग एक्ट न होने के कारण जमींदारी व्यवस्था थी.

देखें रिपोर्ट...

'किसानों को आशंका है कि नए कानून से मुख्यत कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने वाले हैं. खेती का कार्य अब किसान नहीं कम्पनी करेगी. उन्हें अपनी लागत भी हासिल नहीं हो पाएगी. स्वामीनाथन आयोग ने अपनी सिफारिशों में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत का कम से कम डेढ़ गुणा रखने की मांग की थी. लेकिन कहीं भी यह लागू नहीं होता. अब तक न सिर्फ स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने का वादा न सर्फ अधूरा है:' डॉ. नवल किशोर सिंह: अर्थशास्त्री

जानें क्या है संसद से पास 3 नए कानून:

1. 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य कानून 2020': इसमें सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है. किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. साथ ही निजी खरीदारों को भी बेहतर दाम मिल पाएंगे. लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते है.

2. 'कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020'': इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है. इसे सामान्य भाषा में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार को किराये पर दे सकते है और वो हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा. हलांकि देश के कुछ किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चाहते हैं.

3. 'आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020': किसानों का कहना है कि यह कानून सिर्फ किसानों के लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है. अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी. सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? खुली छूट. यह तो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है.

पैक्स नहीं खरीद रहा धान'
बता दें कि सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर चुकी है. यह देश के लगभाग 14 करोड़ से अधिक कृषि परिवारों का सवाल है. जानकारों का कहना है कि अधिक संख्या में किसान एमएसपी का लाभ नहीं उठा पाते हैं. इस कारण किसान बाजार और बिचौलियों पर ही निर्भर रहते हैं. उदाहरण के लिए अभी बिहार में सरकार की ओर से धान खरीद की कीमत तो तय कर दी गई है. लेकिन अभी तक पैक्स की ओर से धान की खरीद शुरु नहीं हुई है. चुंकी धान कच्चा फसल होता और उसे ज्यादा दिन तक भंडारण भी नहीं कर सकते है. इस कारण किसान उसे औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर है.

बिहार के किसानों को कितना फायदा हुआ?
सरकार का कहना है कि निजी क्षेत्र के आने से किसानों को लंबे समय में फायदा होगा. लेकिन बिहार में सरकारी मंडी व्यवस्था तो 2006 में ही खत्म हो गई थी. 14 वर्ष बीत गए. अब जवाब है कि वहां इतने दिनों में किसानों की क्या हुआ? वहां के किसानों को क्यों आज औने-पौने धाम पर फसल बेचनी पड़ रही है? अगर वहां इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी तो मजदूरों के पलायन क्यों कर रहे है? ऐसे कई सवाल हैं, लेकिन जबाव नहीं. बता दें कि बिहार में 60 प्रतिशत लोगों के पास अपनी जमीन नहीं है. ऐसे में वहां दूसरे के जमीन में खेती कर रहे किसानों का क्या होगा?. इन्हीं सब समस्याओं को लेकर देश के किसान आज सड़कों पर है. विशेषज्ञयों का कहना कि ये काननू किसानों के हित में नहीं है और सरकार को इस कानून को वापस ले लेना चाहिए.

Last Updated : Dec 7, 2020, 12:53 PM IST
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