पटना: आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत मखाना समेत कई क्षेत्रीय उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए केंद्र सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी. इसके बाद भारत में मखाना उत्पादन का हब माने जाने वाले मिथिलांचल में इस घोषणा से खुशी की लहर है. सालों बाद इस इलाके में औद्योगिकरण की उम्मीद भी जगी है. वहीं, मखाना को लेकर राज्य सरकार की उम्मीद केंद्र से कुछ अलग है. मखाना को बढ़ावा देने की योजनाओं को लेकर प्रदेश में बहस छिड़ गई है.
बिहार के मिथिलांचल की पहचान मखाना है. देश में 85% मखाना का उत्पादन मिथिलांचल इलाके में ही होता है. लगभग 15 हजार हेक्टेयर भूमि पर मखाना की खेती की जाती है. वहीं, 120 हजार मीट्रिक टन बीज का उत्पादन होता है, जिसमें कि 40 मीट्रिक टन मखाना का उत्पादन हो पाता है. किसान इससे 250 करोड़ का व्यवसाय करते हैं. व्यापारी मखाना से 500 करोड़ का व्यवसाय करते हैं. 150 हजार मीट्रिक टन मखाना का उत्पादन तालाबों से होता है. वहीं, 220 हजार मीट्रिक टन मखाना का उत्पादन अन्य जलस्त्रोतों से किया जाता है.
'क्लस्टर से मखाना के उत्पादन को मिलेगा प्रोत्साहन'
कोरोना संकट काल में केंद्र सरकार ने आर्थिक पैकेज की घोषणा की है. लोगों को उम्मीद जगी है कि अब मखाना को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगाी और मखाना उद्योग का रूप लेने में सफल होगा. केंद्र सरकार की घोषणा के बाद बिहार सरकार में असमंजस की स्थिति है. भाजपा नेता और कृषि मंत्री प्रेम कुमार का कहना है कि पीएम की घोषणा से मखाना उद्योग का विकास होगा. एफपीओ बनाकर क्लस्टर में मखाना के उत्पादन को प्रोत्साहन के साथ-साथ निर्यात को भी बढ़ावा दिया जाएगा. उद्यान निदेशालय मखाना के विकास के लिए लगातार काम कर रहा है.
'राज्य सरकार को मिले मदद'
बिहार सरकार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने कहा है कि प्लांट बनाने से मखाना उद्योग का विकास नहीं होगा. इसके लिए प्रोसेसिंग की जरूरत है. साथ ही उन्होंने कहा कि क्लस्टर का पैसा राज्य सरकार को मिले, तभी व्यापक स्वरूप में मखाना उद्योग सामने आ पाएगा.
'उत्पादक वर्ग मल्लाह को सशक्त करने की जरूरत'
वहीं, मिथिलांचल इलाके से आने वाले प्रोफेसर डीएम दिवाकर का कहना है कि मखाना उद्योग को अंतरराष्ट्रीय पहचान तभी मिलेगी, जब उत्पादक वर्ग को उसका अधिकतम लाभ मिलेगा. मल्लाह जाति के लोग मखाना का उत्पादन करते हैं लेकिन उन्हें सिर्फ मजदूरी मिलती है और लाभ बिचौलिए ले जाते हैं.