पटना: नगर निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर पटना हाईकोर्ट (Patna high court decision Over EBC Reservation) के फैसले (Bihar Municipal Election Postponed) के बाद बिहार की सत्ताधारी दल जदयू और मुख्य विपक्षी दल बीजेपी आमने-सामने है. नगर निकाय में अति पिछड़ा के आरक्षण को लेकर दोनों दल एक दूसरे को घेरने में लगे हैं. बिहार में 2015 विधानसभा चुनाव में भी आरक्षण बड़ा मुद्दा बना था और अब एक बार फिर आरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है.
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बिहार में फिर आरक्षण पर विवाद : वहीं निकाय चुनाव पर रोक पर बीजेपी, नीतीश कुमार पर निशाना साध रही है. बीजेपी नेताओं का कहना है सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही निर्देश दिया था. उसका पालन नीतीश सरकार ने नहीं किया और उसके कारण ही अति पिछड़ों के आरक्षण को लेकर नगर निकाय चुनाव रुका है. वहीं जदयू का कहना है कि नीतीश कुमार ने हमेशा पिछड़ों दलितों महिलाओं को पंचायत में आरक्षण देकर आगे बढ़ाने का काम किया है. इसलिए आरक्षण की व्यवस्था के बाद ही चुनाव होगा. आरजेडी भी नीतीश कुमार का बचाव कर रही है. ऐसे हाईकोर्ट के फैसले को लेकर बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का फैसला ले चुकी है.
ओबीसी और ईबीसी पर सियासत: बिहार में कुल 205 जातियां हैं. इसे बिहार सरकार ने लिस्ट किया है. इसमें से 33 जातियां ओबीसी से हैं और 113 जातियां ईबीसी से हैं. बिहार में ओबीसी और ईबीसी का वोट प्रतिशत 51 फीसदी के आसपास है. ऐसे तो आरजेडी और जदयू जब से एक हुए हैं तभी से इन्हीं ओबीसी और ईबीसी जातियों के वोट प्रतिशत और इनके साथ मुस्लिम वोट प्रतिशत को हिसाब लगाकर 2024 और 2025 में बीजेपी के सफाया की बात की जा रही है. लेकिन यह भी सच्चाई है कि बिहार में लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बाहर करने में नीतीश कुमार ने ईबीसी वोट को अपने पाले में कर बड़ा आधार बनाया था.
अति पिछड़ा वोट बैंक पर सभी की नजर: अति पिछड़ा वोट बैंक पर नीतीश कुमार लंबे समय से दावेदारी करते रहे हैं और इसलिए जिस गठबंधन के साथ रहे हैं अति पिछड़ा वोट बैंक उधर ही शिफ्ट होता है. ऐसे बीजेपी ने भी इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाने के लिए पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों पर इस वर्ग के नेताओं को मौका दिया है. साथ ही जब बिहार में एनडीए की सरकार थी तो उस समय उप मुख्यमंत्री से लेकर कई विभागों के मंत्री पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से ही बनाए गए थे.
जदयू-बीजेपी में आरक्षण को लेकर छिड़ी जंग: निकाय चुनाव पर रोक पर बीजेपी और जदयू एक दूसरे को घेरने में लगी है. जहां बीजेपी नीतीश कुमार को इसके लिए दोषी बता रही है तो वहीं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से लेकर संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा तक बीजेपी और केंद्र सरकार को दोषी बता रही है. जदयू नेताओं का यह भी तर्क है कि बिहार में तो पहले से आरक्षण दिया जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला बाद में आया है. इसलिए अति पिछड़ों के आरक्षण के फैसला के बाद ही अब चुनाव होगा.
बीजेपी के खिलाफ पोल खोल अभियान: जदयू के लोग बीजेपी को दोहरा चरित्र वाला भी बता रहे हैं. जदयू जिला में आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ पोल खोल अभियान चलाने वाली है. दूसरी तरफ बीजेपी भी नीतीश कुमार पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी आयोग नहीं बनाने को लेकर निशाना साध रही है. नीतीश कुमार के खिलाफ चरणबद्ध ढंग से आंदोलन चलाने की घोषणा कर दी है.
"जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश था, आयोग का गठन कर उसके हिसाब से आरक्षण देना तो बिना आयोग के गठन के ही चुनाव कराने की घोषणा करना इनकी मंशा साफ बताता है. जब तक हम लोग के साथ नीतीश कुमार थे आरक्षण लागू हुआ. लालू प्रसाद के समय आरक्षण लागू नहीं हुआ था. फिर से नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव के साथ गए हैं और आरक्षण पर रोक लग गई है."- प्रेम रंजन पटेल, प्रवक्ता बीजेपी
"नीतीश कुमार वोट की नहीं वोटर की चिंता करते हैं. शुरू से पिछड़ा अति पिछड़ा महिला दलित को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की है. एकल पदों पर भी पंचायतों में आरक्षण देने के कारण राजनीतिक रूप से उनकी भागीदारी बढ़ी है. बीजेपी मुगालते में है. बीजेपी के लोगों को दिन-रात नीतीश कुमार सपने में आते हैं. यह तो नीतीश कुमार का विजन था कि पिछड़ों को आगे लाया जाए."- अरविंद निषाद, प्रवक्ता जदयू
"जब नगर विकास मंत्री तारकिशोर प्रसाद थे, नगर निकाय का चुनाव का मामला उसी समय का है. बीजेपी इससे भाग नहीं सकती है. जब क्रेडिट लेने का मामला होता है तो आगे आ जाती है. लेकिन जब विफलता की बात होती है रण छोड़ चली जाती है. नीतीश कुमार की सरकार आरक्षण देती रही है लेकिन बीजेपी की नीतियां चाहे केंद्र में हो या दूसरे राज्यों में साफ दिखता है. हम लोग सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे और जो पहले से आरक्षण दिया हुआ है उसी आधार पर चुनाव होगा."- एजाज अहमद, प्रवक्ता आरजेडी
"पिछड़ा वर्ग का आरक्षण हमेशा से सेंसिटिव मुद्दा रहा है. सभी दल चाहती है कि इस मामले में सुलझी दिखे. इसलिए सत्ता पक्ष भी और विपक्ष भी उसी तरह रिएक्ट कर रहा है."- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में जदयू: नीतीश कुमार ने अति पिछड़ा वर्ग को लुभाने के लिए पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ वरिष्ठ मंत्रियों को भी मैदान में उतार दिया है. अब सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वाली है तो वहीं दूसरी तरफ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर वरिष्ठ नेता अलग अलग तरीके से तर्क दे रहे हैं. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट में जब बिहार सरकार अपील करती है तो क्या कुछ फैसला होता है. क्योंकि बीजेपी लगातार कह रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही निर्देश दे रखा है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट जाने का कोई लाभ नहीं मिलेगा. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से यदि फैसला सरकार के खिलाफ आता है तो बीजेपी को फिर से सरकार पर हमला करने का एक और मौका मिल जाएगा.