पटना : पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि, शराबबंदी कानून के तहत केवल ब्रेथ एनालाइजर रिपोर्ट के आधार पर दर्ज हुई प्राथमिकी अवैध है. कोर्ट ने यह भी कहा कि एनालाइजर मशीन की रिपोर्ट किसी व्यक्ति के मद्यपान करने का कोई ठोस प्रमाण नहीं देता. इसलिए केवल सांस की दुर्गंध जांच कर दर्ज हुई प्राथमिकी शराब बंदी कानून में अमान्य होगी.
शराब बंदी कानून में FIR को लेकर बड़ा फैसला : पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि, ब्रेथ एनालाइजर मशीन की रिपोर्ट का समर्थन किसी प्राथमिकी में दर्ज हुई आरोपी के असामान्य व्यवहार जैसे लड़खड़ाती जुबान या चढ़ी हुई आंखे जैसे हालात से समर्थित होनी चाहिए. इसके अलावा उसके खून और पेशाब जांच की रिपोर्ट, जो इस बात की पुष्टि करे कि आरोपी के शरीर में अल्कोहोल की मात्रा है. तभी वैसी प्राथमिकी शराब बंदी कानून के तहत मान्य व वैध होगी.
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होमियोपैथी दवा खाने पर मिला अल्कोहल : जस्टिस विवेक चौधरी ने नरेंद्र कुमार राम की आपराधिक रिट याचिका को स्वीकार करते हुए उसके खिलाफ किशनगंज एक्साइज थाने में पिछले वर्ष दर्ज हुई प्राथमिकी को रद्द कर दिया. कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता पेट के संक्रमण का इलाज होमियोपैथी दवाओं से करीब एक पखवाड़े से कर रहा था.
क्या रखी गई दलील ? : याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि ब्रेथ एनालाइजर ने होमियोपैथी दवाओं में अल्कोहोल की मात्राओं को संवेदन कर पेट में शराब होने की रिपोर्ट दिया. एक्साइज अधिकारियों ने आरोपी के खून पेशाब जांच कराए बगैर ही प्राथमिकी दर्ज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता के असामान्य व्यवहार या उसकी चढ़ी हुई आंखे वगैरह का जिक्र भी नहीं है.
2016 से बिहार में शराबबंदी : बता दें कि पिछले 9 साल से बिहार में पूर्ण शराबबंदी है. कई लोगों के खिलाफ मामला दर्ज है. कई लोग सलाखों के पीछे है. इसको लेकर बीच-बीच में राजनीति भी होती है. शराबबंदी कानून पर सवाल भी उठाते रहते हैं.
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