पटना : देश में लोकसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. राजनीतिक दलों में बेचैनी साफ तौर पर दिख रही है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सामने कुनबे को बढ़ाने की चुनौती है. इसीलिए भाजपा तमाम पुराने साथियों पर डोरे भी डाल रही है. बिहार में भाजपा की नजर दलित वोट बैंक पर है. ऐसे में युवा दलित नेता चिराग पासवान को भाजपा एनडीए में शामिल कराना चाहती है. लेकिन इसमें एक 'अड़चन' बीजेपी की राहों में रोड़े डाल रही है.
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चिराग सिर्फ बीजेपी के लिए फील्डिंग करेंगे? : चिराग पासवान एनडीए के लिए फील्डिंग सजाने में मदद कर रहे हैं, लेकिन मैदान में बल्लेबाजी के लिए नहीं उतर पा रहे हैं. इसके पीछे की वजह 'चाचा' केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस हैं. उन्ही की वजह से चिराग एनडीए में शामिल नहीं हो पा रहे हैं. बीजेपी के लिए दिक्कत ये है कि चिराग अपनी शर्तों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा बनना चाहते हैं. इन शर्तों के बीच में चाचा खड़े हैं.
बीजेपी के लिए मुश्किल है 'मिशन LJP': दरअसल, चिराग पासवान की राजनीतिक राहें आसान नहीं है. एक और तो चिराग नीतीश कुमार को अपना दुश्मन नंबर वन मानते हैं, तो दूसरी तरफ चाचा पशुपति पारस के साथ नहीं रहना चाहते हैं. पशुपति पारस फिलहाल केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं. भाजपा चिराग को भी मंत्रिमंडल में शामिल कराना चाहती है. मानसून सत्र से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार होना है और भाजपा मंत्रिमंडल विस्तार में सहयोगी दलों को हिस्सेदारी देकर एनडीए में शामिल कराना चाहती है. बिहार में पार्टी की नजर रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान पर है.
चहां चाचा वहां नहीं रहेगा 'चिराग': बिहार में दलित वोट बैंक के 6 से 7 प्रतिशत हिस्से पर चिराग अपना वाजिब हक मानते हैं. उपचुनाव में जमुई सांसद चिराग पासवान अपनी उपयोगिता साबित करके भी दिखाया है. चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस के बीच दूरी बहुत बढ़ चुकी है. पारिवारिक लड़ाई ने राजनीतिक लड़ाई का रूप अख्तियार कर लिया है. चिराग पासवान का मानना है कि चाचा पशुपति पारस जिस मंत्रिमंडल में होंगे इसमें वह शामिल नहीं होंगे.
सब क्लियर करना चाहते हैं चिराग? : भाजपा के समक्ष चुनौती खड़ी है, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय को चिराग पासवान से बातचीत के लिए अधिकृत किया गया है. दोनों नेताओं के बीच कई दौर की मुलाकातें भी हो चुकीं हैं. चाचा और भतीजे के बीच विवाद को पाटने की कोशिश में नित्यानंद राय जुटे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का सैद्धांतिक रूप से हिस्सा होने से पहले चिराग पासवान अपनी हिस्सेदारी को लेकर सब चीज स्पष्ट कर लेना चाहते हैं.
चिराग और चाचा एक हो पाएंगे? : चिराग पासवान लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, राज्यसभा चुनाव और विधान परिषद चुनाव को लेकर भी बातचीत को मुकाम तक पहुंचाना चाहते हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का मानना है कि चिराग पासवान अपने चाचा से आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं. चिराग मानते हैं कि रामविलास पासवान के वोटों की विरासत उनके पास है. ऐसे में पशुपति पारस की कीमत पर वह कोई समझौता करना नहीं चाहते. भाजपा प्रयासों में जरूर लगी है कि दोनों नेताओं को मिला दिया जाएगा और दूरी को पाटा जाए.
पशोपेश में बीजेपी : लोजपा रामविलास पार्टी के प्रवक्ता विनीत सिंह का मानना है कि चाचा पशुपति पारस ने अपने व्यवहार से दूरियां बहुत बढ़ा ली है. दोनों नेताओं के बीच समझौते के आसार ना के बराबर हैं. जहां तक केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार का सवाल है, तो वह प्रधानमंत्री का स्वविवेक है जिसे चाहे शामिल कर सकते हैं. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच पारिवारिक लड़ाई है. लोकसभा चुनाव से पहले दोनों नेता मिल बैठकर आपसी विवाद को सुलझा लेंगे.
क्या होगा गठबंधन में शामिल होने का फार्मूला : चिराग बीजेपी के फेवरेट हैं तो पशुपति पारस गठबंधन धर्म की मजबूरी. ऐसे में बीजेपी के लिए चिराग की शर्त पर पशुपति पारस के रहते हुए एक नाव में सवार करना बड़ी उपलब्धि होगी. फिलहाल ये दूर दूर तक होता नहीं दिख रहा है. क्योंकि दोनों तरफ अपनी-अपनी सियासी लक्ष्मण रेखा खींची जा चुकी है. जिसे पार कर पाना दोनों के लिए कठिन और चुनौतीपूर्ण है.