पटनाः बिहार की राजधानी पटना में एक मूर्तिकार गुरु-शिष्य परंपरा की अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं. इस मूर्तिकार का नाम सुभाष (Patna sculptor Subhash) है. वह अपने गुरु की मूर्ति सामने रखकर ही अपनी कला को मूर्त रूप देते हैं. पटना के राजवंशीनगर में इनका मूर्ति कला केंद्र है. इसमें महाभारत काल के गुरु शिष्य परम्परा का पालन किया जाता है. इस कलाकेंद्र को अभी मूर्तिकार सुभाष चलाते हैं, लेकिन कभी इस केंद्र के संचालक देश के नामी गिरामी मूर्तिकार जय नारायण सिंह हुआ करते थे. उनके निधन के बाद उनके शिष्य सुभाष ने सबसे पहले अपने गुरु की प्रतिमा बनायी और उसी केंद्र से मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किया.
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खुद को कर्ण और अपने गुरु गो द्रोणाचार्ण मानते हैं सुभाषः सुभाष अपने गुरु जय नारायण सिंह को दोणाचार्य मानते हैं और खुद को कर्ण. शायह यही वजह है कि सुभाष जहां बैठते हैं, वहां अपने गुरु की बड़ी सी प्रतिमा लगा रखी है. साथ ही वो जब कार्य करते हैं तो जिसकी भी तस्वरी बनती है उसकी तस्वीर के साथ अपने गुरु की तस्वीर रखते हैं और तस्वीर बनाते समय सुभाष का ध्यान दोनों तस्वीर पर रहती है. यही सुभाष मूर्ति बनाते समय सामने वाली की तस्वीर की कल्पना नहीं कर पाते हैं तो अपने गुरु की तस्वीर को ध्यान से देखते हैं और उनका काम आसान हो जाता है.
पटना के चौक-चौराहों पर लगी 95 प्रतिशत प्रतिमाएं यहीं तराशी गईः पटना के तामम चौक चौराहों पर दिखने वाली आदमकद प्रतिमाओं में 95 फीसदी प्रतिमाओं का निर्माण यहीं हुआ है. जेपी, राजेंद्र प्रसाद, राम मनोहर लोहिया, बाबू वीर कुंवर सिंह, रामनंद तिवारी, बीपी मंडस सहित पटना में दिखने वाली लगभग सभी प्रतिमओं का निर्माण यहीं हुआ है. इसके अलाावा यहां से झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में मूर्तियां जाती ही है. अमेरिका में रहने वाले कुछ अप्रवासी भारतीयों ने भी यहां से मूर्ति निर्माण कराया है. कबाड़खाना की तरह दिखने वाले इस मूर्ति कला केंद्र से हीरे की तहर मूर्तियां तराशी जाती है. यहां सिर्फ कांसे की मूर्तियां बनायी जाती है. यहां के खरीदार देश विदेश में फैलें हैं.
सुभाष के गुरु थे जय नारायण सिंहः जय नारायण सिंह 1980 के दशक में ही बड़् मूर्तिकार के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे. इन्होंने मूर्तिकला के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किया. लालू प्रसाद यादव जब बिहार के मुख्यमंत्री थे तो इन्हीं से पास आकर गांधी मैदान के पास स्थित जेपी की मूर्ति का निर्माण करवाया था. जेपी की मूर्ति निर्माण के दौरान लालू प्रसाद कई बार स्व. जय नारायण के इसी मूर्ति कला केंद्र पर आये थे. जय नारायण सिंह का बिहार सरकार सहित कई राज्यों और राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा गया था. इन्हें पद्म श्री पुरस्कार मिले इसके लिए बिहार सरकार और कई सामाजिक संगठनों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा था लेकिन उन्हें पद्म श्री तो नहीं मिल पाया, लेकिन दर्जनों पुरस्करों से इन्हें नवाजा गया.
अपने गुरु की विरासत को आगे बढ़ा रहे सुभाषः ऐसे तो जय नारायण सिंह के कई शिष्य थे, लेकिन उसमें सुभाष सबसे खास रहे. प्रिय शिष्य होने की वजह से जय नारायण सिंह ने न केवल गुरु के गुर सिखाये, बल्कि इन्हें अपनी विरासत सौंप कर इस दुनिया से अलविदा हो गये. सुभाष ने भी अपने गुरु के आदर्शों पर चलकर अपना पूरा जीवन मूर्ति कला को समार्पित करने का फैसला लिया. और तब से अब तक सुभाष के लिये उनके गुरु ही जीवन हैं. सुभाष का यही अंदाज उन्हें खास बनाता है और सुभाष को अपने गुरु द्रोण के कर्ण होने पर गर्व है.
"मैंने अपने गुरु से यही मूलमंत्र लिया है कि कैसे तस्वीर देखकर जीवंत मूर्ति बनाना है. यहां से मूर्ति बनकर विदेश भी गया है. एक महिला ने यहां से मूर्ति बनवाकर अमेरिका ले गई हैं. यहां से मूर्तियां बनवाकर लोग झारखंड, दिल्ली और अन्य जगह भी ले गए हैं. यहां ब्रोंज की मूर्तियां बनाई जाती है" - सुभाष, मूर्तिकार