पटना: विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में विधान का परिषद चुनाव होना है. विधान परिषद चुनाव को लेकर राजनीतिक दल मंथन कर रहे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अंदर जातिगत समीकरण को लेकर प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा चल रही है. मिशन 2020 के पहले एनडीए के सामने जातिगत समीकरण मजबूत करने के लिहाज से यह बड़ी चुनौती है.
जातिगत आधार पर बीजेपी और जेडीयू विधायक मिशन 2020 से पहले प्रदेश में एनडीए के लिए विधान परिषद चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह है. पार्टी नेता प्रत्याशियों के नाम और जातिगत समीकरण पर लगातार मंथन कर रहे हैं. जेडीयू कोटे में तीन विधान परिषद की सीटें हैं और बीजेपी के कोटे में दो विधान परिषद की सीटें जाएगी.
भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी का नाम तय
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रत्याशियों के नाम पर लगातार मंथन कर रहे हैं. भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी का विधान परिषद जाना तय है. इसके अलावा एक उम्मीदवार अत्यंत पिछड़ा वर्ग का होगा. वहीं, तीसरी सीट कुशवाहा या अल्पसंख्यक समुदाय के खाते में जा सकती है. बीजेपी कोटे से प्रदेश महामंत्री देवेश कुमार का नाम तय माना जा रहा है. इसके अलावा संजय मयूख, राधा मोहन शर्मा और कृष्ण कुमार दावेदारों की दौड़ में शामिल हैं.
कौन जा सकते हैं विधान परिषद
नीतीश कुमार अगर कुशवाहा जाति के उम्मीदवार को नहीं भेजते हैं, तो ऐसी स्थिति में बीजेपी पूर्व विधान पार्षद दिवंगत सूरज नंदन कुशवाहा की पत्नी या सम्राट चौधरी को विधान परिषद भेज सकती है. वहीं, नीतीश कुमार अगर कुशवाहा समाज से किसी को विधान परिषद भेजते हैं तो ऐसी स्थिति में संजय मयूख या राजेंद्र सिंह की लॉटरी लग सकती है.
क्या है पार्टी की राय?
बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को ही विधान परिषद भेजेगी. उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता और उनकी जाति एक दूसरे से जुड़े हैं, इसलिए पार्टी किसी कार्यकर्ता को ही विधान परिषद भेजेगी. वहीं, जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है कि पार्टी वैसे उम्मीदवार को विधान परिषद भेजेगी, जो पार्टी का कार्यकर्ता हो. साथ ही उसकी छवि अच्छी हो. हम जातिगत आधार पर फैसला नहीं लेते हैं.