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Bihar Politics: लालू प्रसाद की वतन वापसी होगी चुनौतियों से भरी, सियासी गलियारे में बढ़ी हलचल - राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के सिंगापुर से लौटने की चर्चा शुरू हो गई है. फरवरी के दूसरे सप्ताह में उनके लौटने की बात कही जा रही है. ऐसे में चर्चा आम हो गई है कि लौटने पर लालू यादव के सामने कई चुनौतियां (Lalu Yadav big challenges after coming) मुंह बाए खड़ी होंगी. इन पर उनका फैसला और मंतव्य काफी महत्व रखता है. इसलिए भी सियासी गलियारे में लालू यादव के लौटने को लेकर हलचल बढ़ गई है. उनका लौटना सीएम नीतीश कुमार की मुश्किलें भी बढ़ा सकता है. वहीं राजद के कुछ अटके पड़े मामले पर भी फैसला लिया जा सकेगा. पढ़ें पूरी खबर..

लालू यादव के आने के बाद बड़ी चुनौती
लालू यादव के आने के बाद बड़ी चुनौती
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Published : Feb 7, 2023, 8:22 PM IST

लालू यादव के आने के बाद क्या होगी उनके समक्ष चुनौतियां

पटना: बिहार में सत्तासीन महागठबंधन की सरकार के सामने नित नई चुनौतियां आ खड़ी हो रही है. इस बीच अब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (RJD supremo Lalu Prasad Yadav) के वतन वापसी की चर्चा भी होनी शुरू हो गई है. छपरा कांड, जनता दल यूनाइटेड में जारी सियासी नूरा कुश्ती, सुधाकर सिंह, मंत्रिमंडल विस्तार समेत कई अन्य मुद्दे अभी गरमाए हुए हैं. इन सबके बीच लालू यादव के आने की खबर से सियासी हलचल बढ़ गई है. वह फरवरी के दूसरे सप्ताह में घर लौट सकते हैं.


ये भी पढ़ेंः Lalu Yadav Latest Photo: 10 फरवरी को वतन लौटेंगे लालू, सिंगापुर में RJD सुप्रीमो से मिलकर बोले फातमी

कई मुद्दों पर लालू के मंतव्य का हो रहा इंतजारः लालू की वतन वापसी की खबर पर सबकी निगाहें टिकी हुई है, लेकिन लालू की वतन वापसी के साथ ही अब यह सवाल भी उठ रहे हैं कि उनकी वतन वापसी क्या चुनौतियों से भरी होगी? करीब ढाई महीने के बाद वतन वापसी कर रहे लालू प्रसाद के सामने कई अहम चुनौतियां हैं. इनमें उन्हीं के पार्टी के विधायक और राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह का मामला प्रमुख तौर पर है? इसके अलावा महागठबंधन सरकार में मंत्रिमंडल का विस्तार, जदयू में आंतरिक कलह के बीच सरकार के साथ सामंजस्य बैठाना, पूर्वोत्तर में होने वाले चुनाव तथा राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश कार्यकारिणी का गठन जैसे कई अहम मुद्दे लालू के सामने होंगे.

सुधाकर सिंह का मामला अहमः सभी मामलों में अगर किसी मामले की सबसे ज्यादा चर्चा है तो वह सुधाकर सिंह का मामला है. कृषि मंत्री के पद की शपथ लेने के बाद से लेकर अब तक सुधाकर सिंह लगातार अपनी बयानबाजी के कारण चर्चा में है. इससे सत्तारूढ़ सरकार में कई बार असहज स्थिति भी पैदा हो चुकी है. कुछ दिनों पहले पार्टी के हाईकमान की तरफ से सुधाकर सिंह को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था. इसका वह जवाब भी दे चुके हैं. वहीं डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव खुद यह कह चुके हैं कि निर्णय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लेंगे. ऐसे में सबकी नजरें लालू यादव की वतन वापसी पर टिकी हुई है.

मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चाः लालू प्रसाद के घर आने के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार पर हो रही चर्चा का भी पटाक्षेप होने की बात कही जा रही है. मंत्रिमंडल में राजद के दो विधायकों की तरफ से मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद लगातार चर्चा हो रही है. कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि लालू के पटना आने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है. ऐसे में लालू यादव के सामने एक बड़ी चुनौती उस चेहरे का चयन करने को लेकर भी होगी, जो राजद के कोटे से मंत्री पद की शपथ लेंगे.

दोहरा सकते हैं रंजन यादव वाला निर्णयः सबकी नजरें सुधाकर सिंह के मामले पर टिकी रहेगी. लालू प्रसाद इसके पहले भी लीक से हटकर फैसला लेते रहे हैं. इसमें सबसे बड़ा उदाहरण कभी राष्ट्रीय जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष रहे और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के सबसे करीबी नेताओं में शुमार रंजन यादव का मामला भी शामिल है. तब रंजन यादव के साथ कुछ ऐसी ही परिस्थिति बनी, जिसके कारण उन्होंने राजद को छोड़ दिया था और बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके बाद फिर वह जदयू में चले गए थे.

लालू के खास थे रंजनः 1990 में रंजन यादव राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे और 1996 में वह दोबारा राज्यसभा के लिए चुने गए थे. रंजन यादव की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजद की स्थापना के समय से लेकर 2001 तक राजद के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके थे. इसी दौरान वह राज्यसभा में राजद के नेता भी रहे. कालांतर में लालू यादव से उनकी राजनीतिक सहभागिता इस कदर बदली कि वह 2015 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके बाद उन्होंने 2022 में जदयू का दामन थाम लिया था.

चुनौतियों से निपटने में माहिर हैं लालूः राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव कहते हैं कि हर रोज चुनौतियों से निपटना लालू प्रसाद की कला रही है. विकट परिस्थितियों में देश को संदेश देना, देश को सही राह दिखाना, समाज को सही दिशा में ले जाना लालू प्रसाद के कौशल का हिस्सा है. अभी सिंगापुर में इलाजरत हैं. जल्द घर लौटेंगे. यह सारी चीजें कोई बड़ा सवाल नहीं है. उन सवालों का हल वह कहीं से कर लेते हैं. राजद कठोर निर्णय लेने के लिए भी जाना जाता है. जब पानी सिर से ऊपर निकल जाए तो राजद परवाह भी नहीं करती है.

'कोई पार्टी को आंख दिखाए यह स्वीकर नहीं होगा': शक्ति कहते हैं कि प्रयास रहता है कि जिनका पार्टी के अंदर योगदान रहा है, उनको एक हद तक देखा जाता है. लेकिन अगर कोई नहीं मानेंगे तो निर्णय भी लिया जाता है. लालू प्रसाद उदार और डेमोक्रेटिक लीडर हैं. वह माफ करना भी जानते हैं और कार्रवाई करना भी जानते हैं, जो चीजें माफ करने के लायक है. उसे माफ भी कर देते हैं, लेकिन जो चीजें माफी लायक नहीं है तो लालू प्रसाद सिद्धांत से समझौता नहीं करते हैं. रंजन यादव, अली अशरफ फातमी जैसे कई नाम है. पार्टी के सिद्धांतों को तिलांजलि देकर कोई पार्टी को आंख दिखाएं यह पार्टी नेतृत्व स्वीकार नहीं करता है.


"हर रोज चुनौतियों से निपटना लालू प्रसाद की कला रही है. विकट परिस्थितियों में देश को संदेश देना, देश को सही राह दिखाना, समाज को सही दिशा में ले जाना लालू प्रसाद के कौशल का हिस्सा है. अभी सिंगापुर में इलाजरत हैं. ह सारी चीजें कोई बड़ा सवाल नहीं है. उन सवालों का हल वह कहीं से कर लेते हैं" - शक्ति सिंह यादव, प्रवक्ता, राजद

नीतीश कुमार की बढ़ेगी परेशानीः इस मसले पर बीजेपी के प्रवक्ता विनोद शर्मा कहते हैं कि महागठबंधन अभी काफी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है. अंतर्विरोध काफी उभर रहा है. चाहे उपेंद्र कुशवाहा हो, जीतन राम मांझी हो या फिर घटक दल के दूसरे साथी. सब एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. निश्चित रूप से लालू प्रसाद जब आएंगे तो प्रयास करेंगे कि अपने पुत्र को ताज सौंपे, जो वादा नीतीश कुमार ने किया था कि साल के शुरू में तेजस्वी को ताज देंगे, लेकिन अब वह टालमटोल कर रहे हैं.

तेजस्वी को ताज सौंपने में हो रही आनाकानीः विनोद शर्मा का मानना है कि निश्चित रूप से राजद अपने साथियों के साथ बैठकर विचार करेगा. उनका कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा जिस डील की बात कर रहे हैं, वह मुख्यमंत्री नहीं बता पा रहे हैं. क्योंकि सच्चाई यही है कि मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था कि हम ताज तेजस्वी को दे देंगे और पूरे देश का भ्रमण करेंगे. लेकिन अब उनकी मंशा ठीक नहीं लग रही है. राजद के मंत्री बेलगाम हो गए हैं. लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. सीएम के आदेश के बाद भी बयान को वापस नहीं ले रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि इसका हिस्सा कहीं न कहीं उपेंद्र कुशवाहा भी हो गए हैं.

"महागठबंधन अभी काफी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है. अंतर्विरोध काफी उभर रहा है. चाहे उपेंद्र कुशवाहा हो, जीतन राम मांझी हो या फिर घटक दल के दूसरे साथी. सब एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. निश्चित रूप से लालू प्रसाद जब आएंगे तो प्रयास करेंगे कि अपने पुत्र को ताज सौंपे. उपेंद्र कुशवाहा जिस डील की बात कर रहे हैं, वह मुख्यमंत्री नहीं बता पा रहे हैं. क्योंकि सच्चाई यही है कि मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था कि हम ताज तेजस्वी को दे देंगे और पूरे देश का भ्रमण करेंगे. लेकिन अब उनकी मंशा ठीक नहीं लग रही है"- विनोद शर्मा, प्रवक्ता, बीजेपी

उपेंद्र कुशवाहा से हो सकती है राजद की डीलः बीजेपी को लग रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा कुछ विधायकों को तोड़कर राजद के साथ मिल जाएंगे और उपेंद्र कुशवाहा डिप्टी सीएम होंगे और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री. इसकी संभावना पूरी है. यह सरकार कभी भी गिर सकती है और फिर से प्रयास हो सकता है. तेजस्वी यादव को सीएम बनाना लालू प्रसाद का सपना है. वह डिप्टी सीएम पहले भी रह चुके हैं और अभी भी हैं, लेकिन इससे अच्छा मौका उनको नहीं मिलेगा. क्योंकि उनको चार-पांच विधायकों की जरूरत है. चार-पांच विधायक उपेंद्र कुशवाहा प्रभावित कर सकते हैं. बीजेपी के अनुसार उपेंद्र कुशवाहा कहीं न कहीं राजद और लालू प्रसाद के संपर्क में है.

सुधाकर सिंह और मंत्रिमंडल विस्तार की होगी लालू के समक्ष चुनौतीः वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक व्यालोक कहते हैं कि लालू के सामने पहली चुनौती यह होगी कि वह सुधाकर सिंह के मामले को निपटाएं. दूसरी चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार में समायोजन और संयोजन की होगी. सुधाकर सिंह उनके बहुत पुराने मित्र के बेटे हैं. जगदानंद सिंह जगदा बाबू के नाम से जाने जाते हैं. जगदानंद सिंह उन नेताओं में शुमार होते हैं जिनकी राजद में काफी इज्जत है और उनको काफी सम्मान के साथ देखा जाता है. जगदानंद सिंह लालू प्रसाद को कुछ कहने की हैसियत भी रखते हैं. उन्होंने कई बार नाराजगी दिखाई है तो लालू ने खुद चलकर उनको मनाया भी है.

सुधाकर सिंह पर कार्रवाई के लिए निकाल सकते हैं अलग रास्ताः व्यालोक कहते हैं कि सुधाकर उसी जगदा बाबू के पुत्र हैं, जिन्होंने बयानबाजी की और उनको शो कॉज नोटिस जारी किया गया. लालू यादव बहुत मंझे हुए राजनेता हैं. वह दो तरह से इसका उपाय कर सकते हैं. पहले वह जगदानंद सिंह को भरोसे में ले सकते हैं और सुधाकर सिंह पर छोटी-मोटी कार्रवाई करके उनको कुछ दिनों के लिए चुप रहने को कह सकते हैं और बाद में उनको वापस ले सकते हैं.

राजपूतों काे नाराज करना नहीं चाहेंगे लालूः व्यालोक का मानना है कि लालू यादव को राजपूतों का समर्थन भी बचा कर रखना है. क्योंकि राजपूत कई जगहों पर आरजेडी का समर्थन भी करते हैं. इसलिए लालू नहीं चाहेंगे कि वह इस कम्युनिटी को नाराज करें. सुधाकर सिंह राजपूतों के एक बड़े नेता हैं, लेकिन लालू जो भी करेंगे वह जगदानंद सिंह को भरोसे में लेकर ही करेंगे. मंत्रिमंडल विस्तार की जहां तक बात है इसके लिए लालू जदयू की जो अंदरूनी कलह है, उसका इंतजार करेंगे. अगर जदयू में दो फाड़ हो जाता है, जिसकी पूरी संभावना है तो फिर लालू अलग रणनीति अपना सकते हैं.

"लालू के सामने पहली चुनौती यह होगी कि वह सुधाकर सिंह के मामले को निपटाएं. दूसरी चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार में समायोजन और संयोजन की होगी. लालू यादव को राजपूतों का समर्थन भी बचा कर रखना है. क्योंकि राजपूत कई जगहों पर आरजेडी का समर्थन भी करते हैं. इसलिए लालू नहीं चाहेंगे कि वह इस कम्युनिटी को नाराज करें. लालू जदयू की जो अंदरूनी कलह है, उसका इंतजार करेंगे. अगर जदयू में दो फाड़ हो जाता है, जिसकी पूरी संभावना है तो फिर लालू अलग रणनीति अपना सकते हैं" - व्यालोक, वरिष्ठ पत्रकार

लालू यादव के आने के बाद क्या होगी उनके समक्ष चुनौतियां

पटना: बिहार में सत्तासीन महागठबंधन की सरकार के सामने नित नई चुनौतियां आ खड़ी हो रही है. इस बीच अब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (RJD supremo Lalu Prasad Yadav) के वतन वापसी की चर्चा भी होनी शुरू हो गई है. छपरा कांड, जनता दल यूनाइटेड में जारी सियासी नूरा कुश्ती, सुधाकर सिंह, मंत्रिमंडल विस्तार समेत कई अन्य मुद्दे अभी गरमाए हुए हैं. इन सबके बीच लालू यादव के आने की खबर से सियासी हलचल बढ़ गई है. वह फरवरी के दूसरे सप्ताह में घर लौट सकते हैं.


ये भी पढ़ेंः Lalu Yadav Latest Photo: 10 फरवरी को वतन लौटेंगे लालू, सिंगापुर में RJD सुप्रीमो से मिलकर बोले फातमी

कई मुद्दों पर लालू के मंतव्य का हो रहा इंतजारः लालू की वतन वापसी की खबर पर सबकी निगाहें टिकी हुई है, लेकिन लालू की वतन वापसी के साथ ही अब यह सवाल भी उठ रहे हैं कि उनकी वतन वापसी क्या चुनौतियों से भरी होगी? करीब ढाई महीने के बाद वतन वापसी कर रहे लालू प्रसाद के सामने कई अहम चुनौतियां हैं. इनमें उन्हीं के पार्टी के विधायक और राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह का मामला प्रमुख तौर पर है? इसके अलावा महागठबंधन सरकार में मंत्रिमंडल का विस्तार, जदयू में आंतरिक कलह के बीच सरकार के साथ सामंजस्य बैठाना, पूर्वोत्तर में होने वाले चुनाव तथा राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश कार्यकारिणी का गठन जैसे कई अहम मुद्दे लालू के सामने होंगे.

सुधाकर सिंह का मामला अहमः सभी मामलों में अगर किसी मामले की सबसे ज्यादा चर्चा है तो वह सुधाकर सिंह का मामला है. कृषि मंत्री के पद की शपथ लेने के बाद से लेकर अब तक सुधाकर सिंह लगातार अपनी बयानबाजी के कारण चर्चा में है. इससे सत्तारूढ़ सरकार में कई बार असहज स्थिति भी पैदा हो चुकी है. कुछ दिनों पहले पार्टी के हाईकमान की तरफ से सुधाकर सिंह को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था. इसका वह जवाब भी दे चुके हैं. वहीं डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव खुद यह कह चुके हैं कि निर्णय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लेंगे. ऐसे में सबकी नजरें लालू यादव की वतन वापसी पर टिकी हुई है.

मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चाः लालू प्रसाद के घर आने के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार पर हो रही चर्चा का भी पटाक्षेप होने की बात कही जा रही है. मंत्रिमंडल में राजद के दो विधायकों की तरफ से मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद लगातार चर्चा हो रही है. कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि लालू के पटना आने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है. ऐसे में लालू यादव के सामने एक बड़ी चुनौती उस चेहरे का चयन करने को लेकर भी होगी, जो राजद के कोटे से मंत्री पद की शपथ लेंगे.

दोहरा सकते हैं रंजन यादव वाला निर्णयः सबकी नजरें सुधाकर सिंह के मामले पर टिकी रहेगी. लालू प्रसाद इसके पहले भी लीक से हटकर फैसला लेते रहे हैं. इसमें सबसे बड़ा उदाहरण कभी राष्ट्रीय जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष रहे और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के सबसे करीबी नेताओं में शुमार रंजन यादव का मामला भी शामिल है. तब रंजन यादव के साथ कुछ ऐसी ही परिस्थिति बनी, जिसके कारण उन्होंने राजद को छोड़ दिया था और बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके बाद फिर वह जदयू में चले गए थे.

लालू के खास थे रंजनः 1990 में रंजन यादव राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे और 1996 में वह दोबारा राज्यसभा के लिए चुने गए थे. रंजन यादव की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजद की स्थापना के समय से लेकर 2001 तक राजद के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके थे. इसी दौरान वह राज्यसभा में राजद के नेता भी रहे. कालांतर में लालू यादव से उनकी राजनीतिक सहभागिता इस कदर बदली कि वह 2015 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके बाद उन्होंने 2022 में जदयू का दामन थाम लिया था.

चुनौतियों से निपटने में माहिर हैं लालूः राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव कहते हैं कि हर रोज चुनौतियों से निपटना लालू प्रसाद की कला रही है. विकट परिस्थितियों में देश को संदेश देना, देश को सही राह दिखाना, समाज को सही दिशा में ले जाना लालू प्रसाद के कौशल का हिस्सा है. अभी सिंगापुर में इलाजरत हैं. जल्द घर लौटेंगे. यह सारी चीजें कोई बड़ा सवाल नहीं है. उन सवालों का हल वह कहीं से कर लेते हैं. राजद कठोर निर्णय लेने के लिए भी जाना जाता है. जब पानी सिर से ऊपर निकल जाए तो राजद परवाह भी नहीं करती है.

'कोई पार्टी को आंख दिखाए यह स्वीकर नहीं होगा': शक्ति कहते हैं कि प्रयास रहता है कि जिनका पार्टी के अंदर योगदान रहा है, उनको एक हद तक देखा जाता है. लेकिन अगर कोई नहीं मानेंगे तो निर्णय भी लिया जाता है. लालू प्रसाद उदार और डेमोक्रेटिक लीडर हैं. वह माफ करना भी जानते हैं और कार्रवाई करना भी जानते हैं, जो चीजें माफ करने के लायक है. उसे माफ भी कर देते हैं, लेकिन जो चीजें माफी लायक नहीं है तो लालू प्रसाद सिद्धांत से समझौता नहीं करते हैं. रंजन यादव, अली अशरफ फातमी जैसे कई नाम है. पार्टी के सिद्धांतों को तिलांजलि देकर कोई पार्टी को आंख दिखाएं यह पार्टी नेतृत्व स्वीकार नहीं करता है.


"हर रोज चुनौतियों से निपटना लालू प्रसाद की कला रही है. विकट परिस्थितियों में देश को संदेश देना, देश को सही राह दिखाना, समाज को सही दिशा में ले जाना लालू प्रसाद के कौशल का हिस्सा है. अभी सिंगापुर में इलाजरत हैं. ह सारी चीजें कोई बड़ा सवाल नहीं है. उन सवालों का हल वह कहीं से कर लेते हैं" - शक्ति सिंह यादव, प्रवक्ता, राजद

नीतीश कुमार की बढ़ेगी परेशानीः इस मसले पर बीजेपी के प्रवक्ता विनोद शर्मा कहते हैं कि महागठबंधन अभी काफी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है. अंतर्विरोध काफी उभर रहा है. चाहे उपेंद्र कुशवाहा हो, जीतन राम मांझी हो या फिर घटक दल के दूसरे साथी. सब एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. निश्चित रूप से लालू प्रसाद जब आएंगे तो प्रयास करेंगे कि अपने पुत्र को ताज सौंपे, जो वादा नीतीश कुमार ने किया था कि साल के शुरू में तेजस्वी को ताज देंगे, लेकिन अब वह टालमटोल कर रहे हैं.

तेजस्वी को ताज सौंपने में हो रही आनाकानीः विनोद शर्मा का मानना है कि निश्चित रूप से राजद अपने साथियों के साथ बैठकर विचार करेगा. उनका कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा जिस डील की बात कर रहे हैं, वह मुख्यमंत्री नहीं बता पा रहे हैं. क्योंकि सच्चाई यही है कि मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था कि हम ताज तेजस्वी को दे देंगे और पूरे देश का भ्रमण करेंगे. लेकिन अब उनकी मंशा ठीक नहीं लग रही है. राजद के मंत्री बेलगाम हो गए हैं. लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. सीएम के आदेश के बाद भी बयान को वापस नहीं ले रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि इसका हिस्सा कहीं न कहीं उपेंद्र कुशवाहा भी हो गए हैं.

"महागठबंधन अभी काफी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है. अंतर्विरोध काफी उभर रहा है. चाहे उपेंद्र कुशवाहा हो, जीतन राम मांझी हो या फिर घटक दल के दूसरे साथी. सब एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. निश्चित रूप से लालू प्रसाद जब आएंगे तो प्रयास करेंगे कि अपने पुत्र को ताज सौंपे. उपेंद्र कुशवाहा जिस डील की बात कर रहे हैं, वह मुख्यमंत्री नहीं बता पा रहे हैं. क्योंकि सच्चाई यही है कि मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था कि हम ताज तेजस्वी को दे देंगे और पूरे देश का भ्रमण करेंगे. लेकिन अब उनकी मंशा ठीक नहीं लग रही है"- विनोद शर्मा, प्रवक्ता, बीजेपी

उपेंद्र कुशवाहा से हो सकती है राजद की डीलः बीजेपी को लग रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा कुछ विधायकों को तोड़कर राजद के साथ मिल जाएंगे और उपेंद्र कुशवाहा डिप्टी सीएम होंगे और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री. इसकी संभावना पूरी है. यह सरकार कभी भी गिर सकती है और फिर से प्रयास हो सकता है. तेजस्वी यादव को सीएम बनाना लालू प्रसाद का सपना है. वह डिप्टी सीएम पहले भी रह चुके हैं और अभी भी हैं, लेकिन इससे अच्छा मौका उनको नहीं मिलेगा. क्योंकि उनको चार-पांच विधायकों की जरूरत है. चार-पांच विधायक उपेंद्र कुशवाहा प्रभावित कर सकते हैं. बीजेपी के अनुसार उपेंद्र कुशवाहा कहीं न कहीं राजद और लालू प्रसाद के संपर्क में है.

सुधाकर सिंह और मंत्रिमंडल विस्तार की होगी लालू के समक्ष चुनौतीः वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक व्यालोक कहते हैं कि लालू के सामने पहली चुनौती यह होगी कि वह सुधाकर सिंह के मामले को निपटाएं. दूसरी चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार में समायोजन और संयोजन की होगी. सुधाकर सिंह उनके बहुत पुराने मित्र के बेटे हैं. जगदानंद सिंह जगदा बाबू के नाम से जाने जाते हैं. जगदानंद सिंह उन नेताओं में शुमार होते हैं जिनकी राजद में काफी इज्जत है और उनको काफी सम्मान के साथ देखा जाता है. जगदानंद सिंह लालू प्रसाद को कुछ कहने की हैसियत भी रखते हैं. उन्होंने कई बार नाराजगी दिखाई है तो लालू ने खुद चलकर उनको मनाया भी है.

सुधाकर सिंह पर कार्रवाई के लिए निकाल सकते हैं अलग रास्ताः व्यालोक कहते हैं कि सुधाकर उसी जगदा बाबू के पुत्र हैं, जिन्होंने बयानबाजी की और उनको शो कॉज नोटिस जारी किया गया. लालू यादव बहुत मंझे हुए राजनेता हैं. वह दो तरह से इसका उपाय कर सकते हैं. पहले वह जगदानंद सिंह को भरोसे में ले सकते हैं और सुधाकर सिंह पर छोटी-मोटी कार्रवाई करके उनको कुछ दिनों के लिए चुप रहने को कह सकते हैं और बाद में उनको वापस ले सकते हैं.

राजपूतों काे नाराज करना नहीं चाहेंगे लालूः व्यालोक का मानना है कि लालू यादव को राजपूतों का समर्थन भी बचा कर रखना है. क्योंकि राजपूत कई जगहों पर आरजेडी का समर्थन भी करते हैं. इसलिए लालू नहीं चाहेंगे कि वह इस कम्युनिटी को नाराज करें. सुधाकर सिंह राजपूतों के एक बड़े नेता हैं, लेकिन लालू जो भी करेंगे वह जगदानंद सिंह को भरोसे में लेकर ही करेंगे. मंत्रिमंडल विस्तार की जहां तक बात है इसके लिए लालू जदयू की जो अंदरूनी कलह है, उसका इंतजार करेंगे. अगर जदयू में दो फाड़ हो जाता है, जिसकी पूरी संभावना है तो फिर लालू अलग रणनीति अपना सकते हैं.

"लालू के सामने पहली चुनौती यह होगी कि वह सुधाकर सिंह के मामले को निपटाएं. दूसरी चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार में समायोजन और संयोजन की होगी. लालू यादव को राजपूतों का समर्थन भी बचा कर रखना है. क्योंकि राजपूत कई जगहों पर आरजेडी का समर्थन भी करते हैं. इसलिए लालू नहीं चाहेंगे कि वह इस कम्युनिटी को नाराज करें. लालू जदयू की जो अंदरूनी कलह है, उसका इंतजार करेंगे. अगर जदयू में दो फाड़ हो जाता है, जिसकी पूरी संभावना है तो फिर लालू अलग रणनीति अपना सकते हैं" - व्यालोक, वरिष्ठ पत्रकार

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