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लालू-रघुवंश की अनुपस्थिति से कांग्रेस-राजद के बीच दिखी समन्वय की कमी - Grand Alliance

आखिरकार महागठबंधन में सीटों का बंटवारा हो गया लेकिन आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह की मौत और पार्टी अध्यक्ष लालू यादव के जेल में रहने की वजह से इस बार कांग्रेस-आरजेडी में तालमेल की कमी दिखी.

लालू-रघुवंश
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Published : Oct 4, 2020, 3:11 AM IST

पटना: महागठबंधन में आखिरकार कांग्रेस और राजद के बीच की दोस्ती बरकरार रही. लेकिन जितनी तल्खी इस बार रिश्तों में दिखी. उससे दोनों दलों के नेताओं को एहसास हुआ कि राजद के बड़े नेताओं की अनुपस्थिति से कैसे दोनों दलों का रास्ता टूटते-टूटते बचा. समन्वय की कमी के पीछे बड़ी लालू यादव और रघुवंश प्रसाद सिंह की अनुपस्थिति वजह रही.

कांग्रेस के नेताओं को इस बार यह एहसास हुआ कि अगर लालू यादव अगर बाहर होते तो बात इतनी नहीं बढ़ती. जिस हद तक कांग्रेस और राजद की तरफ से बयानबाजी शुरू हो गई थी. उससे ऐसा लग रहा था कि इस बार दोनों पार्टियों को दोस्ती टूट जाएगी. पिछले करीब 22 सालों से राजद और कांग्रेस कभी मिलते कभी बिछड़ते रहे हैं. कांग्रेस नेता मानते हैं कि लालू यादव का जेल में होना उनके लिए इस बार बड़ी परेशानी का सबब बना. रघुवंश प्रसाद सिंह की मौत भी बड़ी वजह रही. लालू के सिपहसालारों में नंबर वन रहने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह कांग्रेस और राजद के रिश्ते की एक महत्वपूर्ण कड़ी थे. तेजस्वी यादव के कद के मुताबिक बिहार प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाल रहे नेताओं को उनसे बातचीत के लिए आगे किया गया था. जिसका खामियाजा आखिर तक देखने को मिला. आखिरकार जब राहुल और तेजस्वी ने बात की तब मामला सुलझा और सीटों पर सहमति बनी. इस दौरान शक्ति सिंह गोहिल ने बयान भी दिया कि अगर लालू जेल से बाहर होते तो यह नौबत नहीं आती.

लंबे समय से आरजेडी-कांग्रेस की दोस्ती
बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के रिश्ते की बात करें तो शुरुआत 1998 के लोकसभा चुनाव से हुई. हालांकि वर्ष 2000 में जब बिहार अलग हुआ. उससे पहले दोनों दलों की दोस्ती टूट गई. तब कांग्रेस संयुक्त बिहार की 324 सीटों पर लड़ी. लेकिन महज 23 सीटें जीत पाई. उसी साल राष्ट्रीय जनता दल ने 293 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए और 124 पर जीत हासिल की. चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ जिसके बाद लालू यादव सीएम बने. झारखंड बनने के बाद वर्ष 2005 में दो बार विधानसभा चुनाव हुए. फरवरी में हुए चुनाव में दोस्ती बरकरार रही लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरी. 2010 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियां अलग-अलग थी. जिसमें दोनों को नुकसान उठाना पड़ा. लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में बिल्कुल अलग तरह का समीकरण बना. जब कांग्रेस और राजद को जदयू का साथ मिल गया और तीनों दलों का प्रदर्शन काफी बेहतर हुआ.

लालू-रघुवंश की अनुपस्थिति का दिखा असर
पिछली बार के चुनाव में लालू यादव भी थे और रघुवंश प्रसाद सिंह भी थे. लेकिन इस बार लालू यादव जेल में हैं और रघुवंश प्रसाद सिंह दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. कांग्रेस और राजद के रिश्तों में अहम भूमिका निभाने वाले इन दोनों प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति का खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा. जब बातचीत के कांग्रेसी नेताओं को बार-बार तेजस्वी यादव से गुहार लगानी पड़ी. हालांकि आखिरकार महागठबंधन में सुलह हो चुकी है और इस बार वामदलों के आने से राजद और कांग्रेस के दिग्गज अपने आप को काफी मजबूत महसूस कर रहे हैं. अब देखना है यह महा गठजोड़ चुनाव में क्या करिश्मा दिखाता है.

पटना: महागठबंधन में आखिरकार कांग्रेस और राजद के बीच की दोस्ती बरकरार रही. लेकिन जितनी तल्खी इस बार रिश्तों में दिखी. उससे दोनों दलों के नेताओं को एहसास हुआ कि राजद के बड़े नेताओं की अनुपस्थिति से कैसे दोनों दलों का रास्ता टूटते-टूटते बचा. समन्वय की कमी के पीछे बड़ी लालू यादव और रघुवंश प्रसाद सिंह की अनुपस्थिति वजह रही.

कांग्रेस के नेताओं को इस बार यह एहसास हुआ कि अगर लालू यादव अगर बाहर होते तो बात इतनी नहीं बढ़ती. जिस हद तक कांग्रेस और राजद की तरफ से बयानबाजी शुरू हो गई थी. उससे ऐसा लग रहा था कि इस बार दोनों पार्टियों को दोस्ती टूट जाएगी. पिछले करीब 22 सालों से राजद और कांग्रेस कभी मिलते कभी बिछड़ते रहे हैं. कांग्रेस नेता मानते हैं कि लालू यादव का जेल में होना उनके लिए इस बार बड़ी परेशानी का सबब बना. रघुवंश प्रसाद सिंह की मौत भी बड़ी वजह रही. लालू के सिपहसालारों में नंबर वन रहने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह कांग्रेस और राजद के रिश्ते की एक महत्वपूर्ण कड़ी थे. तेजस्वी यादव के कद के मुताबिक बिहार प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाल रहे नेताओं को उनसे बातचीत के लिए आगे किया गया था. जिसका खामियाजा आखिर तक देखने को मिला. आखिरकार जब राहुल और तेजस्वी ने बात की तब मामला सुलझा और सीटों पर सहमति बनी. इस दौरान शक्ति सिंह गोहिल ने बयान भी दिया कि अगर लालू जेल से बाहर होते तो यह नौबत नहीं आती.

लंबे समय से आरजेडी-कांग्रेस की दोस्ती
बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के रिश्ते की बात करें तो शुरुआत 1998 के लोकसभा चुनाव से हुई. हालांकि वर्ष 2000 में जब बिहार अलग हुआ. उससे पहले दोनों दलों की दोस्ती टूट गई. तब कांग्रेस संयुक्त बिहार की 324 सीटों पर लड़ी. लेकिन महज 23 सीटें जीत पाई. उसी साल राष्ट्रीय जनता दल ने 293 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए और 124 पर जीत हासिल की. चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ जिसके बाद लालू यादव सीएम बने. झारखंड बनने के बाद वर्ष 2005 में दो बार विधानसभा चुनाव हुए. फरवरी में हुए चुनाव में दोस्ती बरकरार रही लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरी. 2010 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियां अलग-अलग थी. जिसमें दोनों को नुकसान उठाना पड़ा. लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में बिल्कुल अलग तरह का समीकरण बना. जब कांग्रेस और राजद को जदयू का साथ मिल गया और तीनों दलों का प्रदर्शन काफी बेहतर हुआ.

लालू-रघुवंश की अनुपस्थिति का दिखा असर
पिछली बार के चुनाव में लालू यादव भी थे और रघुवंश प्रसाद सिंह भी थे. लेकिन इस बार लालू यादव जेल में हैं और रघुवंश प्रसाद सिंह दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. कांग्रेस और राजद के रिश्तों में अहम भूमिका निभाने वाले इन दोनों प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति का खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा. जब बातचीत के कांग्रेसी नेताओं को बार-बार तेजस्वी यादव से गुहार लगानी पड़ी. हालांकि आखिरकार महागठबंधन में सुलह हो चुकी है और इस बार वामदलों के आने से राजद और कांग्रेस के दिग्गज अपने आप को काफी मजबूत महसूस कर रहे हैं. अब देखना है यह महा गठजोड़ चुनाव में क्या करिश्मा दिखाता है.

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