पटना: पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने या घटने का असर सीधा आम इंसान की पॉकेट पर पड़ता है. इसलिए ये राजनीतिक मुद्दों में खूब भुनाया जाता है और हमेशा ही सुर्खियों में बना रहता है. कुछ दिन पहले के दामों पर नजर डालें तो जुलाई के शुरुआती दिनों में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों को लेकर देशभर में हायतौबा मची रही. वहीं कोरोना के इस दौर में अब तक के इतिहास में पहली दफा ऐसा हुआ कि डीजल ने पेट्रोल को पीछे छोड़ते हुए रेट में ऊंची छलांग लगाई और दिल्ली में ये सारे आंकड़ों को पार कर गया.
हर दिन बदलती है कीमत
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हर दिन सुबह 6 बजे बदलाव होता है और नई दरें लागू हो जाती हैं. तेल की कीमतों का तय होना मुख्यता दो चीजों पर निर्भर करता है- अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल की कीमत और दूसरा सरकारी टैक्स. कच्चे तेल के दाम पर इंडियन गवर्नमेंट का कोई नियंत्रण नहीं है. लेकिन सरकार चाहे तो टैक्स बढ़ा कर ज्यादा कर वसूल सकती है या फिर घटा कर जनता को राहत दे सकती है. ये पूरी तरह दोनों सरकार पर निर्भर करता है.
चार चरणों में निर्धारित होती है कीमत
हमारे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत चार चरणों में निर्धारित होती है- रिफाइनरी, ऑयल कंपनी, डीलर और उपभोक्ता. हर राज्य में पेट्रोल और डीजल के अलग-अलग दाम हैं. इसकी वजह ये है कि राज्यों में वैट दर अलग-अलग है. रिफाइनरी में कच्चे तेल से पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम पदार्थ निकाले जाते हैं, जिसके बाद से तेल कंपनियों तक पहुंचते हैं जहां ये अपना मुनाफा बनाती हैं और पेट्रोल पंप तक तेल पहुंचाती हैं. इसके बाद आती है डीलरों की बारी जहां पेट्रोल पंप मालिक अपना तयशुदा कमीशन बनाता है. अंतिम चरण में ये उपभोक्ता के पास पहुंचता है, जहां वो केंद्र और राज्य सरकार के लिए एक्साइज ड्यूटी और वैट देकर तेल लेता है.
हमारे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत चार चरणों में निर्धारित होती है-
- रिफाइनरी
- ऑयल कंपनी
- डीलर
- उपभोक्ता
क्यों हो जाता तेल दोगुने से भी महंगा?
पेट्रोल व डीजल की कीमत में एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और अन्य चीजें जोड़ने के बाद इसका दाम लगभग दोगुना या कभी उससे भी ज्यादा हो जाता है. विदेशी मुद्रा दरों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें क्या हैं. इसको हम नीचे दिए गए चार्ट से समझ सकते हैं. तेल के दाम हर दिन ऊपर नीचे होते हैं. इसे देखते हुए हम पिछले कुछ आंकड़ों को देखें तो इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल का दाम 1 जनवरी को 67 डॉलर प्रति बैरल तो 1 जुलाई को 42 डॉलर जो इंडियन करेंसी में 4784 रुपए और अब 3190 रुपए है. तब कच्चे तेल का दाम 30 रुपए 8 पैसे प्रति लीटर था जो अब 20 रुपए 6 पैसे प्रति ली. हो गया है. इसके बावजूद 1 जनवरी की अपेक्षा 1 जुलाई को पेट्रोल और डीजल की कीमत ज्यादा रही. इसका मतलब सरकार ने 30 % टैक्स बढ़ा दिया. इसी तरह इन्हीं मानकों के आधार पर रोज रेट तय होता है और अंतिम फैसला तेल कंपनियां करती हैं.
- तेल पर लगती है एक्साइज ड्यूटी
- डीलर कमीशन भी जुड़ता है
- दोगुने से ज्यादा हो जाता है रेट
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों से तय होता है भारत में दाम
- विदेशी मुद्रा दरों पर निर्भर करता है रेट
डीलर जोड़ते हैं अपना कमीशन
पहले देश में तेल कंपनियां खुद दाम तय नहीं करती थीं, इसका फैसला सरकारी स्तर से होता था. लेकिन जून 2017 से सरकार ने इस पर से अपना नियंत्रण हटा लिया. कहा गया कि इंटरनेशनल मार्केट में प्रतिदिन उतार-चढ़ाव के हिसाब से कीमतें तय होंगी. तो अतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की खरीद बैरल के हिसाब से होती है. एक बैरल में करीब 159 लीटर तेल होता है. अमूमन जिस रेट पर हम तेल खरीदते हैं उसमें करीब पचास प्रतिशत से ज्यादा टैक्स होता है. इसमें करीब 35 % एक्साइज ड्यूटी और 15 % राज्यों का वैट या सेल्स टैक्स. 2 % कस्टम ड्यूटी और डीलर कमीशन भी जुड़ता है.
ऐसे जुड़ता है टैक्स
दरअसल, डीलर्स को तो पेट्रोल और डीजल बहुत कम कीमतों पर मिलता है, लेकिन सेंट्रल एक्साइज, वैट और डीलर कमीशन के बाद इसकी कीमत दोगुनी से अधिक हो चुकी होती है. इसको इस ग्राफ से समझिए.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत 20 रुपए 6 पैसे प्रति लीटर रही और डीजल की भी. रिफाइनरी प्रोसेस, मार्जिन, ओएमसी मार्जिन, ढुलाई लागत और लॉजिस्टिक का टैक्स मिलाकर पेट्रोल पर 4 रूपए 86 पैसे तो डीजल 6 रुपए 97 पैसे प्रति लीटर बैठा. प्रोसेस के बाद पेट्रोल पंप पर भेजने के लिए पेट्रोल 24 रुपए 92 पैसे तो डीजल 27 रुपए 3 पैसे प्रति लीटर तैयार रहा. लेकिन ये उपभोक्ता तक लगभग दोगुने से ज्यादा दाम पर पहुंचेगा. इसका कारण ये है कि केंद्र की एक्साइज ड्यूटी, रोड सेस चार्ज मिलाकर इसका प्राइस 32 रुपए 98 पैसे तो 31 रुपए 83 पैसे डीजल पर लग टैक्स लग गया. अब डीलर कमीशन की बात आती है. पेट्रोल पर 3 रुपए 64 पैसे तो डीजल पर 2 रुपए 54 पैसे प्रति डीलर कमीशन लगा. इसके बाद राज्यों के 30 प्रतिशत वैट पेट्रोल और डीजल पर लगा इसके अलावा डीजल पर एडिशनल सेस चार्ज लगने की वजह से ये पेट्रोल से ज्यादा महंगा हो गया.
ईंधन की कीमत में 50 फीसदी टैक्स
एक्साइजज ड्यूटी वो टैक्स है, जिसे कंपनियां देश में बनी चीजों पर सरकार को देती हैं. वहीं, वैट उत्पादन के अलग-अलग चरण पर चुकाना होता है. एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार के पास जाती है और वैट राज्य सरकारें लेती हैं. दोनों ही टैक्स, सरकारों के लिए रेवेन्यू का बड़ा जरिया हैं. जब कच्चे तेल के दाम कम हों लेकिन टैक्स अधिक हों तो इसकी खुदरा कीमत का ज्यादा होना तय है. अभी भारत में यही हो रहा है. सीधे शब्दों में कहें तो पेट्रोल और डीजल के लिए हम जो कीमत चुकाते हैं उसमें 50 फीसदी के लगभग टैक्स होता है और कुछ नहीं.
व्यावसायिक जगत पर असर
वहीं, इनकी कीमत अप्रत्यक्ष बढ़ती महंगाई का कारण बनती है. डीजल की कीमत बढ़ने से व्यावसायिक जगत पर असर पड़ता है. अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत और पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का असर लोगों की जेबों पर निश्चित रूप से पड़ेगा. अब तक ईंधन को GST में शामिल नहीं किया गया है. इस वजह से इस पर एक्साइज ड्यूटी भी लगती है और वैट भी.
खाड़ी देशों से तेल इंपोर्ट करता है भारत
भारत अमूमन कच्चा तेल खाड़ी देशों से आयात करता है, जिसमें सऊदी अरब, ईरान और इराक जैसे देश शामिल हैं. अंदाजा है कि भारत तेल खपत की 80 फीसदी जरूरतों की पूर्ति आयात से करता है.
कितना लगता है टैक्स?
पेट्रोल और डीजल के भाव वास्तव में आयल मार्केटिंग कंपनियों द्वारा पेट्रोल पंप को दिए जाने वाले रेट के बाद टैक्स और उनका कमीशन जोड़ने के बाद बनने वाली रकम है. अगर इस समय एक औसत के हिसाब से बात करें तो डीजल पर सरकार 66 फीसदी से अधिक और पेट्रोल पर 100 फीसदी से अधिक टैक्स लगाती है.
क्रूड ऑयल सस्ता होने पर भी भारत में तेल महंगा क्यों?
कई बार ऐसा होता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता होने के बाद भी भारत में उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं मिलती थी. इसका मुख्य कारण है ज्यादा टैक्स होना. साथ ही दूसरी तरफ अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल सस्ता है लेकिन तब रुपया कमजोर है तब भी तेल मंहगा होगा. जब रुपया मजबूत रहेगा और तेल रेट भी तब आपको कोई फायदा नहीं मिलेगा. यह फायदा तब मिलेगा जब रुपया मजबूत हो और अतंर्रराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल कमजोर साथ ही टैक्स में राहत दी गई हो तब आम नागरिक को फायदा पहुंचेगा.
लॉकडाउन के दौरान देश भर में पेट्रोल और डीजल की मांग घटने के कारण रेवेन्यू में भी तेजी से गिरावट आई है. इससे राष्ट्रीय खजाना बुरी तरह प्रभावित हुआ है. विशेषज्ञ मानते हैं कि तेल के दाम बढ़ाना अभी सरकार के लिए दोधारी तलवार जैसा है.
हालांकि अब दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने डीजल पर टैक्स घटा दिया है. अब 16 प्रतिशत ही वैट लगेगा. लेकिन बाकी राज्यों में स्थिति स्थिर है.
सरकारी तेल कंपनियों द्वारा आजकल पेट्रोल और डीजल की कीमत में कोई बदलाव नहीं किया गया है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगरों में पेट्रोल और डीजल के दाम पहले के तरह ही हैं. हालांकि 30 जुलाई को दिल्ली सरकार ने डीजल के दाम में 8.36 रुपये की कटौती थी, जिससे दिल्ली में डीजल का दाम बाजार में 73.56 रुपए प्रति लीटर हो गया था.
प्रमुख महानगरों में 1 अगस्त तक कीमत
दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 80.43 रुपए प्रति लीटर रही. वहीं, डीजल की कीमत 73.56 रुपए प्रति लीटर. आईओसीएल की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार कोलकाता में मुंबई और चेन्नई में एक लीटर पेट्रोल की कीमत क्रमश: 82.10, 87.19 और 83.63 रुपए प्रति लीटर है. डीजल की बात करें तो इन महानगरों में इसका दाम क्रमश: 77.04, 80.11 और 78.86 रुपए है.