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जातीय जनगणना पर माइलेज ले रहे थे तेजस्वी, JDU ने RJD को अपने अंदाज में चेताया - जातीय जनगणना पर सियासत

बिहार में जातीय जनगणना को लेकर कैबिनेट से प्रस्ताव पारित हो गया है. इस पर सहमति बनने के बाद से पार्टियों में श्रेय लेने की ओड़ शुरू हो गई है. राजद इसे खुद की जीत बता रही है. वहीं, राजद के इस बयान पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा (JDU State President Umesh Singh Kushwaha) ने निशाना साधा है. पढ़ें पूरी खबर..

नीतीश कुमार
JDU State President Umesh Singh Kushwaha
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Published : Jun 2, 2022, 9:15 PM IST

पटना: बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census In Bihar) पर सहमति बन गई है और इसको लेकर कैबिनेट से प्रस्ताव भी पास हो गया है. जातीय जनगणना होने को लेकर राजद ने इसे अपनी जीत बताई है. वहीं, इसको लेकर जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने राजद पर निशाना साधा है. उमेश कुशवाहा ने कहा कि राजद जातीय भावना भड़का कर इसका राजनीतिक लाभ लेना चाहती है, जिसे जदयू कभी सफल नहीं होने देगी.

ये भी पढ़ें-नीतीश कैबिनेट ने जातीय जनगणना पर लगायी मुहर, कुल 12 प्रस्ताव पास

जदयू प्रेदश अध्यक्ष का रादज पर निशाना: उमेश कुशवाहा ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इससे गांधी, लोहिया, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी जी के सामाजिक न्याय के सपने को साकार किया है. उन्होंने कहा कि उनके नेता नीतीश कुमार के विकास और सुशासन का आधार शुरू से ही समतामूलक समाज की स्थापना रहा है. जदयू नेता ने इतिहास, परंपरा और समाजिक और आर्थिक स्थिति की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर विकास की प्रक्रिया में पिछड़ चुके समुदाय को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए सतत प्रयास किया है. उनके प्रयास और फैसले सभी वर्गों का विकास सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

नीतीश शुरू से करते रहे जातीय जनगनणा की मांग: जदयू प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व 1931 में जातिगत जनगणना होने के समय बिहार और उड़ीसा में 23 से अधिक जातियां निवास करती थी. स्वतंत्र के बाद 1951 की जनगणना में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के आकड़े तो आए पर ओबीसी और अन्य जातियों की वास्तविक संख्या सामने नहीं आया. मंडल आयोग की सिफारिश भी 1931 की जनगणना के आधार पर ही हुई. उन्होंने कहा कि उनके नेता नीतीश कुमार शुरू से ही जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं. ताकि, सभी जाति और उपजाति की संख्या, उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों की वास्तविक जानकारी प्राप्त हो सके और उसके अनुरूप विकास की प्रभावी नीति क्रियान्वित की जा सके.

पहले पारित हो चुका है प्रस्ताव: जदयू के संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार द्वारा 18 फरवरी 2019 को रखे गए जाति आधारित जनगणना संबंधी प्रस्ताव को बिहार विधान मंडल ने पारित किया था ओर पुनः जदयू नेतृत्व द्वारा 27 फरवरी 2020 को भी बिहार विधानसभा द्वारा प्रस्ताव पारित करा कर केंद्र सरकार को भेजा गया. प्रदेश अध्यक्ष ने राजद को आगाह किया कि जाति आधारित जनगणना को वो राजनीतिक एजेंडा नहीं बनाएं, क्योंकि इससे समाज में फुट उत्पन्न होने के साथ ही बिहार का विकास अवरुद्ध होगा.

राजद को नहीं कोई चिंता: जदयू नेता ने कहा कि यदि वास्तव में राजद को इतनी ही चिंता थी तो 2011 में यूपीए द्वारा कराए गए सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना की रिपोर्ट क्यों नहीं प्रकाशित कराया. जबकि, उस समय राजद यूपीए का एक महत्वपूर्ण घटक दल था. उन्होंने कहा कि राजद उनकी पार्टी द्वारा किए गए प्रयासों का क्रेडिट लेकर राजनीतिक रोटी सेकने का प्रयास कर ऐसे संवेदनशील मामले में भी राजनीतिक लाभ प्राप्त करना चाहती है. बिहार की जनता उसके इस प्रवृत्ति से अवगत है.

जातीय जनगणना विकास के आधार: प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उनके नेता नीतीश कुमार का मानना है कि जाति आधारित जनगणना को विकास के आधार और एजेंडे के रूप में देखा जाना चाहिए. इसका मकसद लोगों को आगे बढ़ाना है, ताकि सबका विकास ठीक ढंग से हो सके. उन्होंने स्पष्ट भी किया है की इस जनगणना में सभी जाति, उपजाति और सभी धर्म के लोगों की जनगणना पूर्ण पारदर्शिता के साथ कराई जाएगी. सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा संपादित कराए जाने वाले इस कार्य के संदर्भ में समय-समय पर सभी दलों को सूचना भी दी जाएगी.

राजद की मंशा राजनीतिक लाभ प्राप्त करना: जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने स्पष्ट किया की उनके नेता द्वारा जाति गणना कराने की मंशा सभी जाति उप जातियों और धर्म के लोगों का विकास सुनिश्चित करना है, जबकि राजद की मंशा मात्र राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है. क्योंकि, बिहार के लोगों के विकास से राजद को कोई लेना देना नहीं है. यह तो सिर्फ अपने परिवार के विकास की चिंता करती है. राजद जातीय भावना भड़का कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है. जनता दल यूनाइटेड राजद की इस मंशा को कभी सफल नहीं होने देगी.

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पटना: बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census In Bihar) पर सहमति बन गई है और इसको लेकर कैबिनेट से प्रस्ताव भी पास हो गया है. जातीय जनगणना होने को लेकर राजद ने इसे अपनी जीत बताई है. वहीं, इसको लेकर जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने राजद पर निशाना साधा है. उमेश कुशवाहा ने कहा कि राजद जातीय भावना भड़का कर इसका राजनीतिक लाभ लेना चाहती है, जिसे जदयू कभी सफल नहीं होने देगी.

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जदयू प्रेदश अध्यक्ष का रादज पर निशाना: उमेश कुशवाहा ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इससे गांधी, लोहिया, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी जी के सामाजिक न्याय के सपने को साकार किया है. उन्होंने कहा कि उनके नेता नीतीश कुमार के विकास और सुशासन का आधार शुरू से ही समतामूलक समाज की स्थापना रहा है. जदयू नेता ने इतिहास, परंपरा और समाजिक और आर्थिक स्थिति की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर विकास की प्रक्रिया में पिछड़ चुके समुदाय को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए सतत प्रयास किया है. उनके प्रयास और फैसले सभी वर्गों का विकास सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

नीतीश शुरू से करते रहे जातीय जनगनणा की मांग: जदयू प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व 1931 में जातिगत जनगणना होने के समय बिहार और उड़ीसा में 23 से अधिक जातियां निवास करती थी. स्वतंत्र के बाद 1951 की जनगणना में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के आकड़े तो आए पर ओबीसी और अन्य जातियों की वास्तविक संख्या सामने नहीं आया. मंडल आयोग की सिफारिश भी 1931 की जनगणना के आधार पर ही हुई. उन्होंने कहा कि उनके नेता नीतीश कुमार शुरू से ही जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं. ताकि, सभी जाति और उपजाति की संख्या, उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों की वास्तविक जानकारी प्राप्त हो सके और उसके अनुरूप विकास की प्रभावी नीति क्रियान्वित की जा सके.

पहले पारित हो चुका है प्रस्ताव: जदयू के संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार द्वारा 18 फरवरी 2019 को रखे गए जाति आधारित जनगणना संबंधी प्रस्ताव को बिहार विधान मंडल ने पारित किया था ओर पुनः जदयू नेतृत्व द्वारा 27 फरवरी 2020 को भी बिहार विधानसभा द्वारा प्रस्ताव पारित करा कर केंद्र सरकार को भेजा गया. प्रदेश अध्यक्ष ने राजद को आगाह किया कि जाति आधारित जनगणना को वो राजनीतिक एजेंडा नहीं बनाएं, क्योंकि इससे समाज में फुट उत्पन्न होने के साथ ही बिहार का विकास अवरुद्ध होगा.

राजद को नहीं कोई चिंता: जदयू नेता ने कहा कि यदि वास्तव में राजद को इतनी ही चिंता थी तो 2011 में यूपीए द्वारा कराए गए सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना की रिपोर्ट क्यों नहीं प्रकाशित कराया. जबकि, उस समय राजद यूपीए का एक महत्वपूर्ण घटक दल था. उन्होंने कहा कि राजद उनकी पार्टी द्वारा किए गए प्रयासों का क्रेडिट लेकर राजनीतिक रोटी सेकने का प्रयास कर ऐसे संवेदनशील मामले में भी राजनीतिक लाभ प्राप्त करना चाहती है. बिहार की जनता उसके इस प्रवृत्ति से अवगत है.

जातीय जनगणना विकास के आधार: प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उनके नेता नीतीश कुमार का मानना है कि जाति आधारित जनगणना को विकास के आधार और एजेंडे के रूप में देखा जाना चाहिए. इसका मकसद लोगों को आगे बढ़ाना है, ताकि सबका विकास ठीक ढंग से हो सके. उन्होंने स्पष्ट भी किया है की इस जनगणना में सभी जाति, उपजाति और सभी धर्म के लोगों की जनगणना पूर्ण पारदर्शिता के साथ कराई जाएगी. सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा संपादित कराए जाने वाले इस कार्य के संदर्भ में समय-समय पर सभी दलों को सूचना भी दी जाएगी.

राजद की मंशा राजनीतिक लाभ प्राप्त करना: जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने स्पष्ट किया की उनके नेता द्वारा जाति गणना कराने की मंशा सभी जाति उप जातियों और धर्म के लोगों का विकास सुनिश्चित करना है, जबकि राजद की मंशा मात्र राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है. क्योंकि, बिहार के लोगों के विकास से राजद को कोई लेना देना नहीं है. यह तो सिर्फ अपने परिवार के विकास की चिंता करती है. राजद जातीय भावना भड़का कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है. जनता दल यूनाइटेड राजद की इस मंशा को कभी सफल नहीं होने देगी.

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