पटना: बिहार में 2 सीटों पर हो रहा उपचुनाव (By-elections) बिहार की राजनीति में कई शब्दों के मायने और उसका पर्याय बदल दिया है. दल एक होना, अलग होना, साथ रहना और न रहना इसकी सियासत करते रहे हैं और इसी की लड़ाई भी करते रहे. दल की सियासत में जो लड़ाई की, उसमें राजनीतिक दलों की दबंगई भी दिखी और उसमें ऐसी भाषा भी, जो अपने दल की दबंगई को राजनीति में बता भी सके लेकिन जब सामाजिक ताने-बाने में लोकतंत्र की दुहाई देने वाले लोगों ने उसके फायदे नुकसान को जोड़ना शुरू किया तो अब उन शब्दों के मायने की दुहाई भी आनी शुरू हो गई है.
उपचुनाव का सरकार पर असर!
बिहार में 2 सीटों पर हो रहा उपचुनाव सरकार को कितना बदल पाएगा, यह कहना मुश्किल है. हालांकि मतदाताओं में तो बातें यहां तक आ गई हैं कि दोनों सीट अगर कोई एक पार्टी जीत गई तो बिहार में सरकार बदल जाएगी लेकिन बिहार में जो कुछ सरकार बदलने के लिए बदल रहा है, उसमें दलों में एकजुटता की प्रासंगिकता तो पूरे तौर पर भटक गई, जो महागठबंधन के साथ चल रही थी. अगर बिहार में नीतीश के विरोध वाले दल की बात करें तो जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी को छोड़ दें तो बाकी जितने भी राजनीतिक दल हैं उनके विरोध में खड़े हैं.
दबंगई में कौन कितना मजबूत?
बात आरजेडी के तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव की करें या बात एलजेपी (रामविलास) के चिराग पासवान की करें या फिर बात कांग्रेस के कन्हैया कुमार की करें या फिर पुष्पम प्रिया चौधरी सरीखे तमाम वैसे नेताओं की, जो लोग चुनाव में किस्मत आजमाने के लिए अपनी पार्टी को मैदान में उतारे हुए हैं. अब पार्टी जिनकी मैदान में नहीं है, वह भी विरोध में उनके साथ हैं. चाहे पूर्व मंत्री नागमणि की बात की जाए या फिर जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव की, सभी दल लड़ाई में नीतीश कुमार को साथ रखे हुए हैं लेकिन जब मुद्दे की सियासत राजनीतिक दलों के साथ आती है तो यह लड़ाई दलों के बीच शुरू हो जा रही है. हालत तो यहां तक पहुंच जा रही है कि कौन सा दल दबंगई में कितना मजबूत है, अब इसकी भी नई नई परिभाषा लिखी जानी शुरू हो गई है.
लालू के बयान पर विवाद
लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) दिल्ली से पटना के लिए चले थे तो उन्होंने कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास पर टिप्पणी की. अब उसने जब सियासी रंग लिया तो आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कह दिया कि लोग उसके मायने गलत निकाल रहे हैं. भक्त चरण दास को लालू यादव ने जो कहा, उससे उनकी मंशा उन्हें नीचा दिखाने की नहीं थी. साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि भक्त चरणदास तो लालू के पुराने मित्रों में है, लिहाजा लालू उन्हें ऐसा कह ही नहीं सकते. अब सवाल सियासत में फिर यही शुरू हो रहा है कि जब कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल सियासत में काफी पुराने समय से हैं और भक्त चरणदास उनके मित्र में है तो फिर यह विरोध वाली लड़ाई शुरू कैसे हो गई. आखिर इस विभेद के पीछे खड़ा कौन है और इसकी बुनियाद बन कैसे रही है. यह कई ऐसे सवाल हैं जो इस उपचुनाव में कई अपनों को बेगाना बना गए और कई बेगानों को अपने जैसा दिखा रहे हैं. हालांकि लालू यादव के लिए मुश्किल सिर्फ बयान ही नहीं है. लालू यादव के लिए मुश्किल उनका परिवार भी है, क्योंकि तेजस्वी और तेजप्रताप में जिस तरीके का विरोध चल रहा है उससे माना यह जा रहा था कि लालू यादव के आने के बाद बहुत कुछ बदल जाएगा लेकिन बदला नहीं. अगर कुछ बदला तो सिर्फ बयानों की वह भाषा, जो दल वाले पक्ष में दबंगई लिए खड़ी है.
लड़ाई, दबंगई और दुहाई
लालू यादव के बिहार आने और पहले बयान के बाद ही बिहार की राजनीति ने जिस तरीके से शब्दों में उत्तर देने वाली सियासत को बदला है, उससे एक बात तो साफ है कि बिहार में यह बातें चर्चा में हो गई है कि लालू यादव पटना पहुंच गए हैं. राजनीतिक दल अपनी लड़ाई के लिए तरकश से तीर निकालना शुरू कर दिए हैं और कौन दल कितना मजबूत है, इस की दबंगई भी जमीन पर दिखाने की कोशिश हो रही है लेकिन उसमें चीजें बराबर बनी रहे इसको लेकर एक शक्ल बिहार में जरूर शुरू हुआ है कि राजनीति दुहाई देने लगी है. अब देखने वाली बात यह होगी कि जो भी लोग भाषा की मर्यादा के आगे जा रहे हैं, वह कहां जाकर रुकते हैं लेकिन 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में दल लड़ाई, दबंगई और दुहाई सब कुछ जमीन पर उतर आई है.
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