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Bihar Caste Census: हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर SC में अब 3 अक्टूबर को सुनवाई - बिहार में जातिगत गणना

बिहार में जातीय जनगणना पर 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जाएगी. जातीय जनगणना को लेकर पटना उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. पढ़ें पूरी खबर...

बिहार में जातीय जनगणना पर सुनवाई
बिहार में जातीय जनगणना पर सुनवाई
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 6, 2023, 10:44 PM IST

नयी दिल्ली/पटना : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत गणना जारी रखने संबंधी पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई बुधवार को तीन अक्टूबर के लिए टाल दी. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी ने यह उल्लेख किया कि मामले में एक पक्षकार ने स्थगन के लिए अनुरोध किया है.

यह भी पढ़ेंः Bihar Politics: 'नरेंद्र मोदी पिछड़ा विरोधी.. मुंह में राम बगल में छुरी, यही उनका चरित्र' - ललन सिंह

उच्च न्यायालय हटाया था रोकः शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय के संबद्ध आदेश के खिलाफ गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका अन्य याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध कर दी. शीर्ष न्यायालय ने सात अगस्त को, बिहार में जातिगत गणना जारी रखने संबंधी पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, और इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 14 अगस्त के लिए टाल दी थी.

संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ? गैर सरकारी संगठन की याचिका के अलावा, एक अन्य याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने दायर की थी, जिन्होंने दलील दी कि जातिगत गणना के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ है. अखिलेश कुमार की याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधान के तहत केवल केंद्र सरकार को जनगणना करने की शक्ति दी गई है. मौजूदा मामले में, बिहार राज्य ने गजट पत्र में अधिसूचना प्रकाशित कर भारत संघ की शक्तियों को हड़पने की कोशिश की.

अधिनियम 1948 के दायरे से बाहरः अधिवक्ता वरुण कुमार सिन्हा के जरिये दायर याचिका के अनुसार, 'यह दलील दी जाती है कि 6 जून, 2022 की अधिसूचना, संविधान की सातवीं अनुसूची के साथ पढ़े जाने पर अनुच्छेद 246 के तहत प्रदत्त राज्य और केंद्रीय विधानमंडल के बीच शक्तियों के बंटवारे के संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ है और जनगणना नियम, 1990 के साथ पढ़े जाने पर जनगणना अधिनियम, 1948 के दायरे से बाहर है. इसलिए यह प्रारंभ से ही अमान्य है.'

हाईकोर्ट ने वैध बताया थाः याचिका में दलील दी गई है कि बिहार सरकार द्वारा कराये जा रहे इस सर्वेक्षण की पूरी कवायद बगैर प्राधिकार और विधायी क्षमता के है, तथा दुर्भावना का संकेत देता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि राज्य जातिगत गणना नहीं कर रहा है, बल्कि यह लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति के बारे में केवल सूचना एकत्र कर रहा है, ताकि उनकी बेहतर सेवा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा कदम उठाया जा सके. उच्च न्यायालय ने 101 पन्नों के अपने फैसले में कहा था, 'हमने राज्य की कवायद को पूरी तरह से वैध पाया है, जो न्याय के साथ विकास करने के औचित्यपूर्ण लक्ष्य के साथ शुरू की गई है.'

अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन का विरोधः जातिगत गणना को उच्च न्यायालय के 'वैध' करार देने के एक दिन बाद राज्य सरकार हरकत में आ गई और शिक्षकों के लिए जारी सभी प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थगित कर दिये, ताकि उन्हें इस कवायद को शीघ्र पूरा करने के काम में लाया जा सके. नीतीश ने 25 अगस्त को कहा था कि सर्वेक्षण पूरा हो गया है और आंकड़े जल्द ही सार्वजनिक किये जाएंगे. वहीं, मामले में एक याचिकाकार्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने आंकड़े सार्वजनिक किये जाने का विरोध करते हुए दलील दी थी कि यह लोगों की निजता के अधिकार का हनन करेगा.

सोर्स : पीटीआई (भाषा)

नयी दिल्ली/पटना : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत गणना जारी रखने संबंधी पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई बुधवार को तीन अक्टूबर के लिए टाल दी. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी ने यह उल्लेख किया कि मामले में एक पक्षकार ने स्थगन के लिए अनुरोध किया है.

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उच्च न्यायालय हटाया था रोकः शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय के संबद्ध आदेश के खिलाफ गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका अन्य याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध कर दी. शीर्ष न्यायालय ने सात अगस्त को, बिहार में जातिगत गणना जारी रखने संबंधी पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, और इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 14 अगस्त के लिए टाल दी थी.

संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ? गैर सरकारी संगठन की याचिका के अलावा, एक अन्य याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने दायर की थी, जिन्होंने दलील दी कि जातिगत गणना के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ है. अखिलेश कुमार की याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधान के तहत केवल केंद्र सरकार को जनगणना करने की शक्ति दी गई है. मौजूदा मामले में, बिहार राज्य ने गजट पत्र में अधिसूचना प्रकाशित कर भारत संघ की शक्तियों को हड़पने की कोशिश की.

अधिनियम 1948 के दायरे से बाहरः अधिवक्ता वरुण कुमार सिन्हा के जरिये दायर याचिका के अनुसार, 'यह दलील दी जाती है कि 6 जून, 2022 की अधिसूचना, संविधान की सातवीं अनुसूची के साथ पढ़े जाने पर अनुच्छेद 246 के तहत प्रदत्त राज्य और केंद्रीय विधानमंडल के बीच शक्तियों के बंटवारे के संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ है और जनगणना नियम, 1990 के साथ पढ़े जाने पर जनगणना अधिनियम, 1948 के दायरे से बाहर है. इसलिए यह प्रारंभ से ही अमान्य है.'

हाईकोर्ट ने वैध बताया थाः याचिका में दलील दी गई है कि बिहार सरकार द्वारा कराये जा रहे इस सर्वेक्षण की पूरी कवायद बगैर प्राधिकार और विधायी क्षमता के है, तथा दुर्भावना का संकेत देता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि राज्य जातिगत गणना नहीं कर रहा है, बल्कि यह लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति के बारे में केवल सूचना एकत्र कर रहा है, ताकि उनकी बेहतर सेवा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा कदम उठाया जा सके. उच्च न्यायालय ने 101 पन्नों के अपने फैसले में कहा था, 'हमने राज्य की कवायद को पूरी तरह से वैध पाया है, जो न्याय के साथ विकास करने के औचित्यपूर्ण लक्ष्य के साथ शुरू की गई है.'

अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन का विरोधः जातिगत गणना को उच्च न्यायालय के 'वैध' करार देने के एक दिन बाद राज्य सरकार हरकत में आ गई और शिक्षकों के लिए जारी सभी प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थगित कर दिये, ताकि उन्हें इस कवायद को शीघ्र पूरा करने के काम में लाया जा सके. नीतीश ने 25 अगस्त को कहा था कि सर्वेक्षण पूरा हो गया है और आंकड़े जल्द ही सार्वजनिक किये जाएंगे. वहीं, मामले में एक याचिकाकार्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने आंकड़े सार्वजनिक किये जाने का विरोध करते हुए दलील दी थी कि यह लोगों की निजता के अधिकार का हनन करेगा.

सोर्स : पीटीआई (भाषा)

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