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बिहार में विनोबा भावे के सपने को अब तक नहीं लगे पंख, गरीबों को वाजिब हक न दिला सकी सरकार - etv bharat bihar

आचार्य विनोबा भावे ने भूमिहीन किसानों को जमीन दिलाने के लिए भूदान आंदोलन चलाया था. बिहार में लाखों एकड़ जमीन दान में मिली थी, लेकिन इन जमीनों पर भूमिहीन किसानों को कब्जा नहीं मिला. पढ़ें पूरी खबर...

Acharya Vinoba Bhave
विनोवा भावे
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Published : Oct 9, 2021, 6:50 PM IST

Updated : Oct 9, 2021, 7:50 PM IST

पटना: अविभाजित बिहार में 1950 के दशक में भूदान आंदोलन (Bhoodan Movement) चला था. स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी आचार्य विनोबा भावे (Vinoba Bhave) की अगुवाई में चले आंदोलन से 6.5 लाख एकड़ भूमि दान में मिली थी. 70 साल बीत जाने के बाद भी सरकार गरीबों को उनका वाजिब हक नहीं दिला सकी. आंदोलन मूल उद्देश्यों को हासिल करने से दूर रह गया.

यह भी पढ़ें- बालिका गृह की लड़कियां भरेंगी सपनों की नई उड़ान, स्टार होटलों में मिली नौकरी

बिहार में भूमि का असमान वितरण है. लैंड रिफॉर्म की वकालत अक्सर की जाती है. 18 अप्रैल 1951 को संत विनोबा भावे ने समाज में असमानता दूर करने के लिए भूदान आंदोलन चलाया था. आंदोलन को व्यापक समर्थन भी मिला था. भूदान आंदोलन सफल बनाने के लिए विनोबा भावे ने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को प्रयोग में लाया था. उन्होंने बाद में सर्वोदय समाज की स्थापना भी की. आंदोलन को राष्ट्रव्यापी समर्थन मिला.

देखें रिपोर्ट

विनोबा भावे को सबसे पहला दान तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव में मिला. यह विनोबा भावे के भूदान आंदोलन की शुरुआत थी. आंदोलन के शुरुआती दिनों में विनोबा भावे ने तेलंगाना क्षेत्र के करीब 200 से अधिक गांव की यात्रा की. इस दौरान 12200 एकड़ भूमि दान में मिली. हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने भूमिहीन किसानों के बीच वितरण के लिए अपनी व्यक्तिगत संपत्ति में से 1400 एकड़ जमीन दान में दी. इसके बाद आंदोलन पूरे देश में फैल गया. 1956 तक कुल मिलाकर 40 लाख एकड़ से अधिक जमीन दान में मिली.

विनोबा भावे ने गांव-गांव की पदयात्रा की. भू स्वामियों से अपनी जमीन का कम से कम छठा हिस्सा भूदान के रूप में भूमिहीनों के बीच बांटने के लिए अनुरोध किया. समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण भूदान आंदोलन का हिस्सा रहे. बिहार में भी भूदान आंदोलन शुरुआती दौर में बहुत हद तक सफल रहा. बिहार में 232140 दान पत्रों के द्वारा 648593 एकड़ जमीन मिले. प्राप्त जमीन में से 386147 एकड़ जमीन अयोग्य और 262446 एकड़ जमीन योग्य पाए गए. 262446 एकड़ योग्य जमीन में से 256381 एकड़ जमीन बांट दी गई. 5387 एकड़ जमीन संपुष्ट नहीं हो पाई और 678 एकड़ जमीन अभी बांटा जाना बाकी है.

महत्वपूर्ण यह है कि 386147 एकड़ अयोग्य जमीन में से 1 लाख 3561 एकड़ जमीन संपुष्ट हो गई थी. इस जमीन के कागजात सरकार के पास हैं. इतने जमीन को भी गरीबों के बीच वितरित नहीं किया जा सका है. कुल मिलाकर 256381 एकड़ जमीन 353377 लोगों के बीच वितरित किए गए लेकिन 50 से 60% लोगों को अब तक कब्जा नहीं मिला. जिन्हें जमीन मिली उन्हें भी सरकार अब बेदखल करना चाहती है. उनका दाखिल खारिज नहीं किया जा रहा है. हथुआ स्टेट द्वारा दिए गए जमीन से ऐसी शिकायतें मिल रहीं हैं. बिहार में अब तक 40-42 हजार एकड़ जमीन पर अवैध दखल है. अब तक मात्र 40% लोगों के जमीन का ही दाखिल खारिज हो सका है.

23 अगस्त 2016 को सरकार द्वारा जारी किया गया एक पत्र किसानों के लिए परेशानी का सबब है. उसी के आधार पर अधिकारी दाखिल खारिज करने से मना कर रहे हैं. पत्र में कहा गया था कि जमींदारी उन्मूलन के पश्चात भूतपूर्व जमींदारों ने गैरमजरूआ खास जमीन भूदान यज्ञ समिति अथवा विनोबा भावे को दान स्वरूप दिया था ऐसे दान पत्रों की वैधानिकता मान्य नहीं होगी. क्योंकि जमींदारी उन्मूलन खास भूमि सरकार में ही निहित है.

अतः ऐसी गैरमजरूआ खास जमीन जो जमींदारी उन्मूलन के पश्चात भूतपूर्व जमींदारों के द्वारा दान स्वरूप दी गई हो एवं जिसे तत्कालीन भूमि सुधार उप समाहर्ता द्वारा संतुष्ट किया गया है. उसे भी वैधानिक नहीं माना जा सकता है. उक्त जमीन का स्वामित्व भूतपूर्व जमींदार को प्राप्त नहीं था. तदनुसार उसकी बंदोबस्ती करना अवैध कार्रवाई के श्रेणी में आएगा. उसके द्वारा की गई बंदोबस्ती अवैध मानी जाएगी.

''भूदान में मिले जमीन को लेकर सरकार गंभीर नहीं है. बड़ी संख्या में लोगों को दखल कब्जा नहीं मिला है. अतिक्रमणकारियों का भी बोलबाला है. इस मुद्दे को मैं विधानसभा में उठाऊंगा.' अर्थशास्त्री डॉ विद्यार्थी विकास ने कहा, 'सरकार के पास जो जमीन है उसे भूमिहीनों के बीच शीघ्र वितरित किया जाना चाहिए. अधिकारियों को दाखिल खारिज के लिए निर्देशित करना चाहिए.''- रामानुज प्रसाद, राजद प्रवक्ता

"भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग भूदान से मिले जमीन को लेकर गंभीर है. फिलहाल मानव बल की कमी थी, लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. जल्द हम भूदान से मिले जमीन को लेकर कार्य योजना बनाने जा रहे हैं."- रामसूरत राय, मंत्री, भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग

बता दें कि बिहार के कई जिलों से पिछले दिनों भूदान आंदोलन में मिली जमीन की लूट-खसोट की खबर आई है. पूर्णिया जिले में निबंधन कार्यालय के सहायक रजिस्ट्रार ने भूदान की 9 कट्टा डेढ़ धूर जमीन का निबंधन 4 नवम्बर 2020 को कर दिया. यह भूदान की वह जमीन है, जिसे लेने के लिए बैलोरी के अनूप लाल यादव के दरवाजे पर विनोबा भावे खुदे आए थे और 1952 में उन्हें लगभग दो एकड़ जमीन अनूप लाल यादव ने भूदान में दान दिया था.

सहरसा में सैकड़ों एकड़ भूदान की जमीन का अबतक अता-पता नहीं है. जिले के 6338 लोगों ने दानपत्र के माध्यम से विनोबा .को 3477 एकड़ 62 डिसमल जमीन दान दी थी. जिले के 1956 भूमिहीनों के बीच 3133 एकड़ 61 डिसमल जमीन वितरित की गई. शेष 344 एकड़ एक डिसमल जमीन अवशेष बचा हुआ है.

बिहार में भूदान की ज़मीनों से संबंधित अररिया जैसे या इससे मिलते-जुलते मामले कई जिलों में चल रहे हैं. ऐसे लगभग दो हजार मामले हाईकोर्ट और बिहार भूमि न्यायाधिकरण से लेकर जिला न्यायालयों में आज भी लंबित हैं. भागलपुर के तिलका मांझी इलाके में दान पर यह कहते हुए आपत्ति दर्ज की गई है कि दानकर्ता ने अपनी पत्नी के हिस्से की भी जमीन दान में दे दी थी. पटना जिले के विक्रम में बन रहे एक शराब फैक्ट्री के कारण भूदान वाली जमीन की कीमत अब आसमान छू रही है और मामला अब अदालत में है.

यह भी पढ़ें- पंडा घरानों ने गया में संजोकर रखी है 'ठुमरी' की मिठास.. 200 साल पुराना है इतिहास

पटना: अविभाजित बिहार में 1950 के दशक में भूदान आंदोलन (Bhoodan Movement) चला था. स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी आचार्य विनोबा भावे (Vinoba Bhave) की अगुवाई में चले आंदोलन से 6.5 लाख एकड़ भूमि दान में मिली थी. 70 साल बीत जाने के बाद भी सरकार गरीबों को उनका वाजिब हक नहीं दिला सकी. आंदोलन मूल उद्देश्यों को हासिल करने से दूर रह गया.

यह भी पढ़ें- बालिका गृह की लड़कियां भरेंगी सपनों की नई उड़ान, स्टार होटलों में मिली नौकरी

बिहार में भूमि का असमान वितरण है. लैंड रिफॉर्म की वकालत अक्सर की जाती है. 18 अप्रैल 1951 को संत विनोबा भावे ने समाज में असमानता दूर करने के लिए भूदान आंदोलन चलाया था. आंदोलन को व्यापक समर्थन भी मिला था. भूदान आंदोलन सफल बनाने के लिए विनोबा भावे ने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को प्रयोग में लाया था. उन्होंने बाद में सर्वोदय समाज की स्थापना भी की. आंदोलन को राष्ट्रव्यापी समर्थन मिला.

देखें रिपोर्ट

विनोबा भावे को सबसे पहला दान तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव में मिला. यह विनोबा भावे के भूदान आंदोलन की शुरुआत थी. आंदोलन के शुरुआती दिनों में विनोबा भावे ने तेलंगाना क्षेत्र के करीब 200 से अधिक गांव की यात्रा की. इस दौरान 12200 एकड़ भूमि दान में मिली. हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने भूमिहीन किसानों के बीच वितरण के लिए अपनी व्यक्तिगत संपत्ति में से 1400 एकड़ जमीन दान में दी. इसके बाद आंदोलन पूरे देश में फैल गया. 1956 तक कुल मिलाकर 40 लाख एकड़ से अधिक जमीन दान में मिली.

विनोबा भावे ने गांव-गांव की पदयात्रा की. भू स्वामियों से अपनी जमीन का कम से कम छठा हिस्सा भूदान के रूप में भूमिहीनों के बीच बांटने के लिए अनुरोध किया. समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण भूदान आंदोलन का हिस्सा रहे. बिहार में भी भूदान आंदोलन शुरुआती दौर में बहुत हद तक सफल रहा. बिहार में 232140 दान पत्रों के द्वारा 648593 एकड़ जमीन मिले. प्राप्त जमीन में से 386147 एकड़ जमीन अयोग्य और 262446 एकड़ जमीन योग्य पाए गए. 262446 एकड़ योग्य जमीन में से 256381 एकड़ जमीन बांट दी गई. 5387 एकड़ जमीन संपुष्ट नहीं हो पाई और 678 एकड़ जमीन अभी बांटा जाना बाकी है.

महत्वपूर्ण यह है कि 386147 एकड़ अयोग्य जमीन में से 1 लाख 3561 एकड़ जमीन संपुष्ट हो गई थी. इस जमीन के कागजात सरकार के पास हैं. इतने जमीन को भी गरीबों के बीच वितरित नहीं किया जा सका है. कुल मिलाकर 256381 एकड़ जमीन 353377 लोगों के बीच वितरित किए गए लेकिन 50 से 60% लोगों को अब तक कब्जा नहीं मिला. जिन्हें जमीन मिली उन्हें भी सरकार अब बेदखल करना चाहती है. उनका दाखिल खारिज नहीं किया जा रहा है. हथुआ स्टेट द्वारा दिए गए जमीन से ऐसी शिकायतें मिल रहीं हैं. बिहार में अब तक 40-42 हजार एकड़ जमीन पर अवैध दखल है. अब तक मात्र 40% लोगों के जमीन का ही दाखिल खारिज हो सका है.

23 अगस्त 2016 को सरकार द्वारा जारी किया गया एक पत्र किसानों के लिए परेशानी का सबब है. उसी के आधार पर अधिकारी दाखिल खारिज करने से मना कर रहे हैं. पत्र में कहा गया था कि जमींदारी उन्मूलन के पश्चात भूतपूर्व जमींदारों ने गैरमजरूआ खास जमीन भूदान यज्ञ समिति अथवा विनोबा भावे को दान स्वरूप दिया था ऐसे दान पत्रों की वैधानिकता मान्य नहीं होगी. क्योंकि जमींदारी उन्मूलन खास भूमि सरकार में ही निहित है.

अतः ऐसी गैरमजरूआ खास जमीन जो जमींदारी उन्मूलन के पश्चात भूतपूर्व जमींदारों के द्वारा दान स्वरूप दी गई हो एवं जिसे तत्कालीन भूमि सुधार उप समाहर्ता द्वारा संतुष्ट किया गया है. उसे भी वैधानिक नहीं माना जा सकता है. उक्त जमीन का स्वामित्व भूतपूर्व जमींदार को प्राप्त नहीं था. तदनुसार उसकी बंदोबस्ती करना अवैध कार्रवाई के श्रेणी में आएगा. उसके द्वारा की गई बंदोबस्ती अवैध मानी जाएगी.

''भूदान में मिले जमीन को लेकर सरकार गंभीर नहीं है. बड़ी संख्या में लोगों को दखल कब्जा नहीं मिला है. अतिक्रमणकारियों का भी बोलबाला है. इस मुद्दे को मैं विधानसभा में उठाऊंगा.' अर्थशास्त्री डॉ विद्यार्थी विकास ने कहा, 'सरकार के पास जो जमीन है उसे भूमिहीनों के बीच शीघ्र वितरित किया जाना चाहिए. अधिकारियों को दाखिल खारिज के लिए निर्देशित करना चाहिए.''- रामानुज प्रसाद, राजद प्रवक्ता

"भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग भूदान से मिले जमीन को लेकर गंभीर है. फिलहाल मानव बल की कमी थी, लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. जल्द हम भूदान से मिले जमीन को लेकर कार्य योजना बनाने जा रहे हैं."- रामसूरत राय, मंत्री, भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग

बता दें कि बिहार के कई जिलों से पिछले दिनों भूदान आंदोलन में मिली जमीन की लूट-खसोट की खबर आई है. पूर्णिया जिले में निबंधन कार्यालय के सहायक रजिस्ट्रार ने भूदान की 9 कट्टा डेढ़ धूर जमीन का निबंधन 4 नवम्बर 2020 को कर दिया. यह भूदान की वह जमीन है, जिसे लेने के लिए बैलोरी के अनूप लाल यादव के दरवाजे पर विनोबा भावे खुदे आए थे और 1952 में उन्हें लगभग दो एकड़ जमीन अनूप लाल यादव ने भूदान में दान दिया था.

सहरसा में सैकड़ों एकड़ भूदान की जमीन का अबतक अता-पता नहीं है. जिले के 6338 लोगों ने दानपत्र के माध्यम से विनोबा .को 3477 एकड़ 62 डिसमल जमीन दान दी थी. जिले के 1956 भूमिहीनों के बीच 3133 एकड़ 61 डिसमल जमीन वितरित की गई. शेष 344 एकड़ एक डिसमल जमीन अवशेष बचा हुआ है.

बिहार में भूदान की ज़मीनों से संबंधित अररिया जैसे या इससे मिलते-जुलते मामले कई जिलों में चल रहे हैं. ऐसे लगभग दो हजार मामले हाईकोर्ट और बिहार भूमि न्यायाधिकरण से लेकर जिला न्यायालयों में आज भी लंबित हैं. भागलपुर के तिलका मांझी इलाके में दान पर यह कहते हुए आपत्ति दर्ज की गई है कि दानकर्ता ने अपनी पत्नी के हिस्से की भी जमीन दान में दे दी थी. पटना जिले के विक्रम में बन रहे एक शराब फैक्ट्री के कारण भूदान वाली जमीन की कीमत अब आसमान छू रही है और मामला अब अदालत में है.

यह भी पढ़ें- पंडा घरानों ने गया में संजोकर रखी है 'ठुमरी' की मिठास.. 200 साल पुराना है इतिहास

Last Updated : Oct 9, 2021, 7:50 PM IST
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