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20 मार्च को LJD का RJD में होगा विलय! इन शर्तों पर लालू से हाथ मिला सकते हैं शरद यादव - नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव

समाजवादी नेता शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का आरजेडी में विलय (Lokatantrik Janata Dal Merged With RJD) होगा. उन्होंने कहा कि देश में मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बिखरे हुए जनता परिवार को एक साथ लाने के मेरे नियमित प्रयासों की पहल के रूप में यह कदम जरूरी हो गया है. जेडीयू से अलग होने के बाद मई 2018 में एलजेडी (LJD) का गठन किया था.

शरद यादव की पार्टी का आरजेडी में विलय
शरद यादव की पार्टी का आरजेडी में विलय
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Published : Mar 17, 2022, 10:19 PM IST

पटना: पूर्व सांसद शरद यादव (Former MP Sharad Yadav) 20 मार्च को अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का आरजेडी में विलय (Lokatantrik Janata Dal Merged With RJD) करेंगे. साल 2018 में उन्होंने जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी का गठन किया था. चर्चा है कि आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव (RJD President Lalu Yadav) उनको राज्यसभा भेज सकते हैं. कुछ दिनों पहले ही नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) ने उनसे दिल्ली में मुलाकात की थी.

ये भी पढ़ें: स्टालिन के बाद आज शरद यादव से मिले तेजस्वी, कहा- 'जिम्मेदारी के साथ-साथ आशीर्वाद भी चाहिए'

आरजेडी में एलजेडी का विलय: समाजवादी नेता शरद यादव इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं. जिस वजह से वे राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं हैं. उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी बहुत कम ही किसी मुद्दे पर सड़कों पर नजर आते हैं. माना जा रहा है कि वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते उन्होंने ये फैसला लिया है ताकि बिखरे हुए जनता परिवार को फिर एकजुट किया जा सके. पिछले दिनों जब तेजस्वी ने उनसे दिल्ली स्थिति उनके सरकारी आवास पर मुलाकात की थी, तभी ही उन्होंने संकेत दे दिए थे कि वे आरजेडी के साथ जाने वाले हैं. तेजस्वी से मुलाकात के बाद शरद यादव ने कहा था, 'मैंने और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने जो राजनीति की है, उसकी कमान हमलोगों ने अब तेजस्वी को सौंप दी है. वे ही अब हमारी विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे. तेजस्वी ही आरजेडी के तमाम फैसले लेंगे. वे पार्टी को आगे ले जाने में पूरी तरह से सक्षम हैं.'

ये भी पढ़ें: शरद यादव से मिलकर बोले लालू- 'जनता परिवार फिर से होगा एकजुट, नीतीश के लिए कोई जगह नहीं'

दिल्ली में शरद यादव से मिले लालू: इससे पहले 3 अगस्त 2021 को लालू यादव और शरद यादव की मुलाकात हुई थी. जिसके बाद कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थी. हालांकि मीडिया से बात करने के दौरान लालू ने कहा था, 'शरद यादव पार्लियामेंट में नहीं हैं. इसके कारण संसद में उनकी कमी खल रही है. वे हर मुद्दे पर मजबूती से सरकार को घेरते थे. मैं, शरद यादव और मुलायम सिंह यादव फिर से एकजुट होने की कोशिश में लगे हुए हैं.'

2018 में नीतीश से अलग हुए थे: दरअसल नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक मनमुटाव के चलते शरद यादव ने 2018 में जेडीयू से बगावत कर लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी का गठन किया था. शरद यादव के साथ अली अनवर सहित कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी. इसके बाद शरद यादव 2019 लोकसभा चुनाव में आरजेडी के टिकट पर मधेपुरा से चुनाव भी लड़े लेकिन जेडीयू के दिनेशचंद्र यादव से एक लाख वोटों से हार गए.

2018 में बनाई थी अलग पार्टी: शरद यादव ने 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया था. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तकनीकी कठिनाईयों की वजह से उन्होंने आरजेडी के सिंबल पर ही मधेपुरा से चुनाव लड़ा था. उनके एक अन्य साथी और पूर्व सांसद अर्जुन राय ने भी आरजेडी के सिंबल पर सीतामढ़ी से चुनाव लड़ा लेकिन दोनों को शिकस्त हाथ लगी थी. उसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा सीट से उनकी बेटी सुभाषिनी यादव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन उनको भी जीत नसीब नहीं हुई.

शरद का सियासी सफर: एक जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में जन्मे शरद यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत जबलपुर से की थी. जब जेपी आंदोलन अपने चरम पर था, तब उन्होंने 70 के दशक में जबलपुर उपचुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया. लालू प्रसाद यादव के साथ उनकी दोस्ती 1970 के दशक की है, जब आपातकाल के बाद जनता दल का गठन किया गया था. हालांकि 90 के दशक में दोनों के बीच मतभेद इतना बढ़ा कि दोनों अलग हो गए. बाद के दिनों में वे नीतीश कुमार के साथ चले गए.

जब एक-दूसरे के खिलाफ लड़े दोनों: इस बीच मधेपुरा लोकसभा सीट पर दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ा. 1999 में शरद ने लालू प्रसाद को करीब 30 हजार वोटों से हराया था. हालांकि, 1998 और 2004 में उनको लालू से मात भी मिल चुकी है. मधेपुरा से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड शरद यादव के नाम है. वे यहां से चार बार सांसद चुने गए हैं. इसके अलावे वे तीन बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं. वहीं केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं.

शरद की मदद से बने सीएम: 1990 में शरद यादव की मदद से लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह तब राम सुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे लेकिन शरद यादव और नीतीश कुमार चाहते थे कि लालू यादव मुख्यमंत्री बनें. शरद यादव ने चंद्रशेखर सिंह को इस बात के लिए मना लिया कि अगड़ी जाति से एक कैंडिडेट को खड़ा किया जाए. जिसके बाद रणनीति के तहत रघुनाथ झा को मैदान में उतारा गया और वोटों का बंटवारा हुआ. नतीजा ये हुआ कि लालू यादव 4 वोट से जीत गए.

राज्यसभा जाना पक्का: शरद यादव ने हालांकि ऐलान किया है कि वे बिना शर्त अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करेंगे लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि विलय होने के बाद आरजेडी उन्हें राज्यसभा भेज सकता है. शरद यादव को हाइकोर्ट ने 15 दिनों में उन्हें आवंटित सरकारी बंगला खाली करने का आदेश दे दिया है. बिहार में जुलाई महीने में राज्यसभा की पांच सीटें खाली होंगी. जिनमें दो सीटें बीजेपी, एक सीट जेडीयू के पास जाएगी. दो सीटें आरजेडी के पास आएगी और शरद यादव के राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई माह 2022 में ही समाप्त हो रहा है. वैसे ये भी चर्चा हो रही है कि बेटी सुभाषिनी यादव को आरजेडी विधान परिषद भी भेज सकती है.

विलय से आरजेडी उत्साहित: शरद यादव के विलय के फैसले से आरजेडी के नेता काफी खुश हैं. विधायक सुदय यादव का कहना है कि शरद यादव समाजवादी नेता हैं और लालू प्रसाद यादव से उनके करीबी रिश्ते रहे हैं. दोनों दलों का विलय होने से सकारात्मक संदेश जाएगा. जिसका आने वाले दिनों में हमें जरूर राजनीतिक लाभ होगा.

कांग्रेस ने किया स्वागत: वहीं, कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने कहा कि तमाम धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ आना चाहिए. शरद यादव और लालू यादव एक साथ आएंगे तो यह एक सकारात्मक कदम होगा और बीजेपी को हराने में सहूलियत होगी.

साथ आने से कुछ नहीं होगा-बीजेपी: हालांकि बीजेपी विधायक पवन जायसवाल ने कहा कि दोनों दलों के विलय से बिहार की राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. उन्होंने कहा कि शरद यादव की पार्टी नाम मात्र की बची है. सिर्फ चर्चा में बने रहने के लिए आरजेडी के लोग इस तरह के क्रियाकलाप करते हैं.

संदेश देना चाहेंगे लालू: वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अशोक मिश्रा का कहना है कि शरद यादव एक तरह से लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक गुरु रहे हैं. उनकी मदद से ही लालू पहली बार मुख्यमंत्री बने थे. ऐसे में शरद यादव को राज्यसभा भेजकर लालू यादव एक सकारात्मक संदेश दे सकते हैं. ऐसा वह पहले कई बार कर चुके हैं. दूसरा यह भी हो सकता है कि शरद यादव की बेटी को आरजेडी कोटे से विधान परिषद भेजा जा सकता है.

ये भी पढ़ें: पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव को खाली करना पड़ेगा सरकारी बंगला, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया 15 दिन का वक्त

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पटना: पूर्व सांसद शरद यादव (Former MP Sharad Yadav) 20 मार्च को अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का आरजेडी में विलय (Lokatantrik Janata Dal Merged With RJD) करेंगे. साल 2018 में उन्होंने जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी का गठन किया था. चर्चा है कि आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव (RJD President Lalu Yadav) उनको राज्यसभा भेज सकते हैं. कुछ दिनों पहले ही नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) ने उनसे दिल्ली में मुलाकात की थी.

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आरजेडी में एलजेडी का विलय: समाजवादी नेता शरद यादव इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं. जिस वजह से वे राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं हैं. उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी बहुत कम ही किसी मुद्दे पर सड़कों पर नजर आते हैं. माना जा रहा है कि वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते उन्होंने ये फैसला लिया है ताकि बिखरे हुए जनता परिवार को फिर एकजुट किया जा सके. पिछले दिनों जब तेजस्वी ने उनसे दिल्ली स्थिति उनके सरकारी आवास पर मुलाकात की थी, तभी ही उन्होंने संकेत दे दिए थे कि वे आरजेडी के साथ जाने वाले हैं. तेजस्वी से मुलाकात के बाद शरद यादव ने कहा था, 'मैंने और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने जो राजनीति की है, उसकी कमान हमलोगों ने अब तेजस्वी को सौंप दी है. वे ही अब हमारी विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे. तेजस्वी ही आरजेडी के तमाम फैसले लेंगे. वे पार्टी को आगे ले जाने में पूरी तरह से सक्षम हैं.'

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दिल्ली में शरद यादव से मिले लालू: इससे पहले 3 अगस्त 2021 को लालू यादव और शरद यादव की मुलाकात हुई थी. जिसके बाद कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थी. हालांकि मीडिया से बात करने के दौरान लालू ने कहा था, 'शरद यादव पार्लियामेंट में नहीं हैं. इसके कारण संसद में उनकी कमी खल रही है. वे हर मुद्दे पर मजबूती से सरकार को घेरते थे. मैं, शरद यादव और मुलायम सिंह यादव फिर से एकजुट होने की कोशिश में लगे हुए हैं.'

2018 में नीतीश से अलग हुए थे: दरअसल नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक मनमुटाव के चलते शरद यादव ने 2018 में जेडीयू से बगावत कर लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी का गठन किया था. शरद यादव के साथ अली अनवर सहित कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी. इसके बाद शरद यादव 2019 लोकसभा चुनाव में आरजेडी के टिकट पर मधेपुरा से चुनाव भी लड़े लेकिन जेडीयू के दिनेशचंद्र यादव से एक लाख वोटों से हार गए.

2018 में बनाई थी अलग पार्टी: शरद यादव ने 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया था. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तकनीकी कठिनाईयों की वजह से उन्होंने आरजेडी के सिंबल पर ही मधेपुरा से चुनाव लड़ा था. उनके एक अन्य साथी और पूर्व सांसद अर्जुन राय ने भी आरजेडी के सिंबल पर सीतामढ़ी से चुनाव लड़ा लेकिन दोनों को शिकस्त हाथ लगी थी. उसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा सीट से उनकी बेटी सुभाषिनी यादव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन उनको भी जीत नसीब नहीं हुई.

शरद का सियासी सफर: एक जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में जन्मे शरद यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत जबलपुर से की थी. जब जेपी आंदोलन अपने चरम पर था, तब उन्होंने 70 के दशक में जबलपुर उपचुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया. लालू प्रसाद यादव के साथ उनकी दोस्ती 1970 के दशक की है, जब आपातकाल के बाद जनता दल का गठन किया गया था. हालांकि 90 के दशक में दोनों के बीच मतभेद इतना बढ़ा कि दोनों अलग हो गए. बाद के दिनों में वे नीतीश कुमार के साथ चले गए.

जब एक-दूसरे के खिलाफ लड़े दोनों: इस बीच मधेपुरा लोकसभा सीट पर दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ा. 1999 में शरद ने लालू प्रसाद को करीब 30 हजार वोटों से हराया था. हालांकि, 1998 और 2004 में उनको लालू से मात भी मिल चुकी है. मधेपुरा से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड शरद यादव के नाम है. वे यहां से चार बार सांसद चुने गए हैं. इसके अलावे वे तीन बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं. वहीं केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं.

शरद की मदद से बने सीएम: 1990 में शरद यादव की मदद से लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह तब राम सुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे लेकिन शरद यादव और नीतीश कुमार चाहते थे कि लालू यादव मुख्यमंत्री बनें. शरद यादव ने चंद्रशेखर सिंह को इस बात के लिए मना लिया कि अगड़ी जाति से एक कैंडिडेट को खड़ा किया जाए. जिसके बाद रणनीति के तहत रघुनाथ झा को मैदान में उतारा गया और वोटों का बंटवारा हुआ. नतीजा ये हुआ कि लालू यादव 4 वोट से जीत गए.

राज्यसभा जाना पक्का: शरद यादव ने हालांकि ऐलान किया है कि वे बिना शर्त अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करेंगे लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि विलय होने के बाद आरजेडी उन्हें राज्यसभा भेज सकता है. शरद यादव को हाइकोर्ट ने 15 दिनों में उन्हें आवंटित सरकारी बंगला खाली करने का आदेश दे दिया है. बिहार में जुलाई महीने में राज्यसभा की पांच सीटें खाली होंगी. जिनमें दो सीटें बीजेपी, एक सीट जेडीयू के पास जाएगी. दो सीटें आरजेडी के पास आएगी और शरद यादव के राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई माह 2022 में ही समाप्त हो रहा है. वैसे ये भी चर्चा हो रही है कि बेटी सुभाषिनी यादव को आरजेडी विधान परिषद भी भेज सकती है.

विलय से आरजेडी उत्साहित: शरद यादव के विलय के फैसले से आरजेडी के नेता काफी खुश हैं. विधायक सुदय यादव का कहना है कि शरद यादव समाजवादी नेता हैं और लालू प्रसाद यादव से उनके करीबी रिश्ते रहे हैं. दोनों दलों का विलय होने से सकारात्मक संदेश जाएगा. जिसका आने वाले दिनों में हमें जरूर राजनीतिक लाभ होगा.

कांग्रेस ने किया स्वागत: वहीं, कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने कहा कि तमाम धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ आना चाहिए. शरद यादव और लालू यादव एक साथ आएंगे तो यह एक सकारात्मक कदम होगा और बीजेपी को हराने में सहूलियत होगी.

साथ आने से कुछ नहीं होगा-बीजेपी: हालांकि बीजेपी विधायक पवन जायसवाल ने कहा कि दोनों दलों के विलय से बिहार की राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. उन्होंने कहा कि शरद यादव की पार्टी नाम मात्र की बची है. सिर्फ चर्चा में बने रहने के लिए आरजेडी के लोग इस तरह के क्रियाकलाप करते हैं.

संदेश देना चाहेंगे लालू: वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अशोक मिश्रा का कहना है कि शरद यादव एक तरह से लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक गुरु रहे हैं. उनकी मदद से ही लालू पहली बार मुख्यमंत्री बने थे. ऐसे में शरद यादव को राज्यसभा भेजकर लालू यादव एक सकारात्मक संदेश दे सकते हैं. ऐसा वह पहले कई बार कर चुके हैं. दूसरा यह भी हो सकता है कि शरद यादव की बेटी को आरजेडी कोटे से विधान परिषद भेजा जा सकता है.

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