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2005 की तरह क्राइम कंट्रोल के लिए अपनाना होगा ये फॉर्मूला, सुनिए पूर्व DGP के सुझाव - बिहार पुलिस

बिहार में लगातार बढ़ रहे क्राइम के ग्राफ के मद्देनजर ईटीवी संवाददाता ने बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद से बात की. पूर्व डीजीपी ने क्राइम कंट्रोल को लेकर सीनियर पुलिस ऑफिसर से लेकर स्टेट गवर्मेंट तक को कई सुझाव दिए.

Former DGP Abhayanand interview
Former DGP Abhayanand interview
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Published : Feb 14, 2021, 8:04 PM IST

पटना: बिहार में दिन प्रतिदिन बढ़ रहे अपराध को लेकर पुलिस की कार्यशैली लगातार सवालों के घेरे में है. लिहाजा कहा जा रहा है कि अब 2005 वाला 'पुलिस मॉडल' अपनाने में जुट गई है. 2005 'पुलिस मॉडल' का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि राज्य की जनता इस बात को मानती है कि उस वक्त बहुत हद तक अपराध पर लगाम लगा था. ईटीवी संवाददाता ने बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद से बात की. जिसमें उन्होंने उस समय के पुलिस के काम करने के तौर तरीके से लेकर आदतन अपराधियों के बेल कैंसिलेशन तक कई बातें की. वहीं पूर्व डीजीपी ने क्राइम कंट्रोल को लेकर सीनियर पुलिस ऑफिसर से लेकर सरकार तक को कई सुझाव दिए.

ये भी पढ़ें:- सब गोलमाल है! 38 में से 26 जिलों में चल रही जांच, 12 टीमें कर रही पड़ताल

'क्राइम कंट्रोल का एक ही मॉडल है, और वह है कानून. कानून की प्रक्रिया के तहत अगर पुलिस अधिकारी कार्य करती है तो आसानी से क्राइम कंट्रोल किया जा सकता है. किसी भी अपराध में कानून के प्रावधानों को निकालना और उसके सही क्रिर्यान्वयन की युक्ति बनना. यह एक सीनियर पुलिस ऑफिसर से अपेक्षित है. बेल पर छूटकर सिमिलर ऑफेंस करने को 'एब्यूज ऑफ द प्रिविलेज ऑफ बेल' कहा जाता है. अगर इसका एवीडेंस है तो कोर्ट उसपर कॉग्निजेंस लेगा. उस समय स्टेट पुलिस ने पीटिशन दिया. हाई कोर्ट में इसके केसस फाइल हुए. जिसकी प्रक्रिया फॉलो की गई. शो कॉज हुआ, जवाब आया और फिर ऑर्डर पास हुआ. जिससे इस तरह के अपराधियों को बेल मिलने से रोका गया. इससे एक इम्पैक्ट होता है.' -अभयानंद, पूर्व डीजीपी.

देखें पूरा इंटरव्यू

घटित घटनाओं की समीक्षा कर कार्ययोजना बनाएं पुलिस ऑफिसर
पूर्व डीजीपी अभयानंद के अनुसार उस समय फिरौती के लिए अपहरण का मामला सबसे ज्यादा हुआ करता था. फिलहाल इन दिनों हत्या की वारदातें ज्यादा हो रही हैं. उन्होंने कहा कि पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों को इन दिनों घटित घटनाओं की समीक्षा करनी चाहिए. उन्हें यह पता लगाना चाहिए कि किस क्षेत्र में किस तरह की घटना को अंजाम दिया जा रहा है. फिर यथासंगत कानून के प्रावधानों की युक्ति निकालकर उसपर काम करने से अपराध पर काबू पाया जाया सकता है.

ये भी पढ़ें:- 2005 में क्राइम कंट्रोल का नीतीश मॉडल था हिट, अब कैसे हो गया फ्लॉप?

इंटरव्यू की प्रमुख बातें-

  • क्राइम कंट्रोल का सिर्फ एक ही मॉडल है- कानून
  • कानून में सभी प्रक्रियाएं हैं जिससे बढ़ते क्राइम को रोका जा सकता है.
  • कानून के प्रावधानों का किस तरह इस्तेमाल कर क्राइम पर कंट्रोल किया जाए यह पता लगाना सीनियर पुलिस ऑफिसर और सरकार का रोल है.
  • एक सिटिजन होने के नाते सीनियर पुलिस ऑफिसर से मैं किसी क्राइम को लेकर उनके प्रजेंस ऑफ माइंड देखना चाहता हूं.
  • किसी क्राइम को लेकर कानून के प्रावधानों को निकालना और उसके सही क्रिर्यान्वयन की युक्ति बनना. यह एक सिनीयर पुलिस ऑफिसर से अपेक्षित है.
  • क्राइम कंट्रोल का कोई मॉडल नहीं है. हर परिस्थिति में अपराध पर काबू पाने के लिए कानून में प्रावधान होते हैं. जरुरत है उन प्रावधानों को निकालकर सही से एग्जीक्यूट करने की.
  • बेल पर छूटकर सिमिलर ऑफेंस करने को 'एब्यूज ऑफ द प्रिविलेज ऑफ बेल' कहा जाता है. अगर इसका एवीडेंस है तो कोर्ट उसपर कॉग्निजेंस लेगा.
  • बेल पर छूटकर रिपीटेड क्राइम करने वालों के खिलाफ स्टेट पुलिस पिटीशन दे सकती है. जिसमें कोर्ट से ऑर्डर पास होने पर इस तरह के क्राइम पर काबू पाया जा सकता है.

पटना: बिहार में दिन प्रतिदिन बढ़ रहे अपराध को लेकर पुलिस की कार्यशैली लगातार सवालों के घेरे में है. लिहाजा कहा जा रहा है कि अब 2005 वाला 'पुलिस मॉडल' अपनाने में जुट गई है. 2005 'पुलिस मॉडल' का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि राज्य की जनता इस बात को मानती है कि उस वक्त बहुत हद तक अपराध पर लगाम लगा था. ईटीवी संवाददाता ने बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद से बात की. जिसमें उन्होंने उस समय के पुलिस के काम करने के तौर तरीके से लेकर आदतन अपराधियों के बेल कैंसिलेशन तक कई बातें की. वहीं पूर्व डीजीपी ने क्राइम कंट्रोल को लेकर सीनियर पुलिस ऑफिसर से लेकर सरकार तक को कई सुझाव दिए.

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'क्राइम कंट्रोल का एक ही मॉडल है, और वह है कानून. कानून की प्रक्रिया के तहत अगर पुलिस अधिकारी कार्य करती है तो आसानी से क्राइम कंट्रोल किया जा सकता है. किसी भी अपराध में कानून के प्रावधानों को निकालना और उसके सही क्रिर्यान्वयन की युक्ति बनना. यह एक सीनियर पुलिस ऑफिसर से अपेक्षित है. बेल पर छूटकर सिमिलर ऑफेंस करने को 'एब्यूज ऑफ द प्रिविलेज ऑफ बेल' कहा जाता है. अगर इसका एवीडेंस है तो कोर्ट उसपर कॉग्निजेंस लेगा. उस समय स्टेट पुलिस ने पीटिशन दिया. हाई कोर्ट में इसके केसस फाइल हुए. जिसकी प्रक्रिया फॉलो की गई. शो कॉज हुआ, जवाब आया और फिर ऑर्डर पास हुआ. जिससे इस तरह के अपराधियों को बेल मिलने से रोका गया. इससे एक इम्पैक्ट होता है.' -अभयानंद, पूर्व डीजीपी.

देखें पूरा इंटरव्यू

घटित घटनाओं की समीक्षा कर कार्ययोजना बनाएं पुलिस ऑफिसर
पूर्व डीजीपी अभयानंद के अनुसार उस समय फिरौती के लिए अपहरण का मामला सबसे ज्यादा हुआ करता था. फिलहाल इन दिनों हत्या की वारदातें ज्यादा हो रही हैं. उन्होंने कहा कि पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों को इन दिनों घटित घटनाओं की समीक्षा करनी चाहिए. उन्हें यह पता लगाना चाहिए कि किस क्षेत्र में किस तरह की घटना को अंजाम दिया जा रहा है. फिर यथासंगत कानून के प्रावधानों की युक्ति निकालकर उसपर काम करने से अपराध पर काबू पाया जाया सकता है.

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इंटरव्यू की प्रमुख बातें-

  • क्राइम कंट्रोल का सिर्फ एक ही मॉडल है- कानून
  • कानून में सभी प्रक्रियाएं हैं जिससे बढ़ते क्राइम को रोका जा सकता है.
  • कानून के प्रावधानों का किस तरह इस्तेमाल कर क्राइम पर कंट्रोल किया जाए यह पता लगाना सीनियर पुलिस ऑफिसर और सरकार का रोल है.
  • एक सिटिजन होने के नाते सीनियर पुलिस ऑफिसर से मैं किसी क्राइम को लेकर उनके प्रजेंस ऑफ माइंड देखना चाहता हूं.
  • किसी क्राइम को लेकर कानून के प्रावधानों को निकालना और उसके सही क्रिर्यान्वयन की युक्ति बनना. यह एक सिनीयर पुलिस ऑफिसर से अपेक्षित है.
  • क्राइम कंट्रोल का कोई मॉडल नहीं है. हर परिस्थिति में अपराध पर काबू पाने के लिए कानून में प्रावधान होते हैं. जरुरत है उन प्रावधानों को निकालकर सही से एग्जीक्यूट करने की.
  • बेल पर छूटकर सिमिलर ऑफेंस करने को 'एब्यूज ऑफ द प्रिविलेज ऑफ बेल' कहा जाता है. अगर इसका एवीडेंस है तो कोर्ट उसपर कॉग्निजेंस लेगा.
  • बेल पर छूटकर रिपीटेड क्राइम करने वालों के खिलाफ स्टेट पुलिस पिटीशन दे सकती है. जिसमें कोर्ट से ऑर्डर पास होने पर इस तरह के क्राइम पर काबू पाया जा सकता है.
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