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आंध्र-बंगाल से आई 2000 करोड़ की मछली खा जा रहा बिहार, फिशरीज में उत्पादन बढ़ा लेकिन खपत भी धुआंधार

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Published : Jun 14, 2022, 7:59 PM IST

बीते कुछ सालों में बिहार में मछली उत्पादन बढ़ा है. लेकिन इसके बाद भी अभी भी बिहार मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर (Bihar is self-sufficient in fish production) नहीं हो पाया है. अभी भी आंध्र प्रदेश और पश्रिच बंगाल से मछलियों का आयात हो रहा है. बाहर से करीब 2 हजार करोड़ की मछली बिहार में आयात होती है. पढ़ें पूरी खबर..

बिहार में बढ़ा मछली उत्पान
बिहार में बढ़ा मछली उत्पान

पटना: बिहार में पिछले कई सालों से आंध्र प्रदेश और बंगाल की मछलियों को आयात किया जा रहा है. बिहार की बड़ी राशि इन राज्यों में जा रही है. अभी भी 2 हजार करोड़ से अधिक की राशि मछली आयात पर बिहार का जा रहा है. पिछले 15 सालों में ऐसे मछली का उत्पादन बढ़ा है. मत्स्य विभाग के सचिव एन सरवन कुमार (Fisheries Department Secretary N Sarvan Kumar) के अनुसार 2007-8 में मछली का उत्पादन केवल 2.8 लाख मीट्रिक टन था. जो अब बढ़कर 7.62 लाख मीट्रिक टन हो गया है. लेकिन इसके बावजूद अभी भी मछली उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर नहीं हुआ है.

ये भी पढ़ें-मछली उत्पादन में बढ़ी आत्मनिर्भरता, जल्द ही बिहार दूसरे राज्यों को बेचेगा मछली

बिहार में बढ़ा मछली उत्पादन: मछली क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी बिहार में केवल 6:50 लाख मीट्रिक टन ही उत्पादन हो रहा है और जरूरत 8:50 लाख मीट्रिक टन की है. मछली उत्पादन बढ़ने के बावजूद दो लाख मीट्रिक टन मछली आंध्र प्रदेश और बंगाल से मंगाकर बिहार के लोगों की जरूरत को पूरा करना पड़ रहा है. जबकि, बिहार में सालों भर बहने वाली नदियां और बड़े पोखर-तालाब हैं. जलवायु मछली के अनुकूल है. मछली उत्पादन के लिए जलवायु पर्याप्त पानी और सस्ता मजदूर भी है, लेकिन इसके बावजूद तीन कृषि रोड मैप लागू होने के बाद भी अब तक मछली उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है.

चौथे स्थान पर है बिहार: देश में मछली उत्पादन में भले बिहार चौथे स्थान पर है, लेकिन अभी भी जरूरत को पूरा करने के लिए आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मछलियों पर बिहार के लोगों को निर्भर रहना पड़ रहा है. मछली क्षेत्र के विशेषज्ञ और कोफेड के एमडी ऋषिकेश का कहना है कि सरकार की गलत पॉलिसी के कारण ही ऐसा हुआ है. उन्होंने कहा कि बिहार में अभी भारत सरकार का जो आकर है. उसके अनुसार कार्य छह लाख मैट्रिक टन ही उत्पादन हो रहा है. जबकि, जरूरत 8:30 लाख मीट्रिक टन की है. दो लाख मैट्रिक टन मछली आंध्र प्रदेश और बंगाल से मनाया जा रहा है. आंध्र प्रदेश से मरी हुई मछली आ रही है. जबकि, जिंदा मछली बंगाल से आती है.

बिहार में रोहू मछली की बढ़ी डिमांड: कोफेड के एमडी ऋषिकेश ने कहा कि बिहार का कम से कम 2 हजार से लेकर 4 हजार करोड़ रुपये आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जा रहा है. उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार ने 19 रोजगार देने का वादा किया है और मत्स्य संसाधन क्षेत्र में ही इतनी क्षमता है कि आसानी से 20 लाख रोजगार पैदा किया जा सकता है. बिहार में सबसे ज्यादा रोहू, कतला मछलियों की डिमांड है. ऐसे में यहां मछली उत्पादन में बहुंत संभावनाएं हैं.

"सरकार के नजरिए से अगर हम देखते हैं तो बिहार में मछली का डिमांड साढ़े आठ लाख मीट्रिक टन है और उत्पादन साढ़े छह लाख मेट्रिक टन है. यानि सीधे तौर पर दो लाख मेट्रिक टन का अंतर है और ये आज भी ये जो दो लाख मेट्रिक टन का अंतर है उसकी पूर्ति हो रही है आंद्र प्रदेश से और कुछ जिंदा मछली का जो आयात पश्चिम बंगाल से हो रहा है. लगभग 100 रुपये ही मछली का रेट रखते हैं, तो दो हजार करोड़ रुपए और एवरेज चार हजार करोड़ रुपए का प्रति वर्ष बिहार मछली खरीदता है. बिहार में कतला, रेहू और नैनी मछली की डिमांड ज्यादा है."- ऋषिकेश, एमडी, कोफेड

"जल्द ही मछली उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर हो जाएगा. वर्ष 2007-8 में बिहार में केवल 2.88 लाख मैट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था. जो अब बढ़कर 7.62 लाख मैट्रिक टन हो गया है. पहले बाहर से मछली बहुत आता था. जिसमें अब कमी आई है. बिहार में केवल 67500 मेट्रिक टन ही अब मछली बाहर से मंगाया जा रहा है और 37 हजार मैट्रिक टन बिहार से बाहर भी जा रहा है, बहुत जल्द ही बारह से मछली आना बंद हो जाएगा और यहां से ही हम लोग बाहर भेजेंगे."-एन सरवन, सचिव, मत्स्य संसाधन विभाग

मत्स्य उत्पादन की अपार संभावनाएं: बिहार में सालों भर बहने वाली नदियां हैं. उत्तर बिहार में तो बड़े पैमाने पर पोखर भी हैं. जिसमें पर्याप्त पानी मछली उत्पादन के लिए है. सरकार ने जल जीवन हरियाली अभियान के तहत पुराने पोखर और तालाबों का जीर्णोद्धार भी किया है और उसका असर भी दिख रहा है. लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में बहुत काम होना है. मछली क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि बिहार में लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने वाला यह क्षेत्र बन सकता है. बता दें कि मछली उत्पादन को लेकर कृषि रोडमैप के तहत सरकार कई तरह का अनुदान भी दे रही है. लेकिन अनुदान की राशि मिलने में काफी समय लगता है और इसके कारण भी मत्स्य उत्पादक परेशान रहते हैं. अगर समय से अनुदान मिल जाए तो मत्स्य पालकों को बड़ी राहत मिलेगी.

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पटना: बिहार में पिछले कई सालों से आंध्र प्रदेश और बंगाल की मछलियों को आयात किया जा रहा है. बिहार की बड़ी राशि इन राज्यों में जा रही है. अभी भी 2 हजार करोड़ से अधिक की राशि मछली आयात पर बिहार का जा रहा है. पिछले 15 सालों में ऐसे मछली का उत्पादन बढ़ा है. मत्स्य विभाग के सचिव एन सरवन कुमार (Fisheries Department Secretary N Sarvan Kumar) के अनुसार 2007-8 में मछली का उत्पादन केवल 2.8 लाख मीट्रिक टन था. जो अब बढ़कर 7.62 लाख मीट्रिक टन हो गया है. लेकिन इसके बावजूद अभी भी मछली उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर नहीं हुआ है.

ये भी पढ़ें-मछली उत्पादन में बढ़ी आत्मनिर्भरता, जल्द ही बिहार दूसरे राज्यों को बेचेगा मछली

बिहार में बढ़ा मछली उत्पादन: मछली क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी बिहार में केवल 6:50 लाख मीट्रिक टन ही उत्पादन हो रहा है और जरूरत 8:50 लाख मीट्रिक टन की है. मछली उत्पादन बढ़ने के बावजूद दो लाख मीट्रिक टन मछली आंध्र प्रदेश और बंगाल से मंगाकर बिहार के लोगों की जरूरत को पूरा करना पड़ रहा है. जबकि, बिहार में सालों भर बहने वाली नदियां और बड़े पोखर-तालाब हैं. जलवायु मछली के अनुकूल है. मछली उत्पादन के लिए जलवायु पर्याप्त पानी और सस्ता मजदूर भी है, लेकिन इसके बावजूद तीन कृषि रोड मैप लागू होने के बाद भी अब तक मछली उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है.

चौथे स्थान पर है बिहार: देश में मछली उत्पादन में भले बिहार चौथे स्थान पर है, लेकिन अभी भी जरूरत को पूरा करने के लिए आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मछलियों पर बिहार के लोगों को निर्भर रहना पड़ रहा है. मछली क्षेत्र के विशेषज्ञ और कोफेड के एमडी ऋषिकेश का कहना है कि सरकार की गलत पॉलिसी के कारण ही ऐसा हुआ है. उन्होंने कहा कि बिहार में अभी भारत सरकार का जो आकर है. उसके अनुसार कार्य छह लाख मैट्रिक टन ही उत्पादन हो रहा है. जबकि, जरूरत 8:30 लाख मीट्रिक टन की है. दो लाख मैट्रिक टन मछली आंध्र प्रदेश और बंगाल से मनाया जा रहा है. आंध्र प्रदेश से मरी हुई मछली आ रही है. जबकि, जिंदा मछली बंगाल से आती है.

बिहार में रोहू मछली की बढ़ी डिमांड: कोफेड के एमडी ऋषिकेश ने कहा कि बिहार का कम से कम 2 हजार से लेकर 4 हजार करोड़ रुपये आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जा रहा है. उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार ने 19 रोजगार देने का वादा किया है और मत्स्य संसाधन क्षेत्र में ही इतनी क्षमता है कि आसानी से 20 लाख रोजगार पैदा किया जा सकता है. बिहार में सबसे ज्यादा रोहू, कतला मछलियों की डिमांड है. ऐसे में यहां मछली उत्पादन में बहुंत संभावनाएं हैं.

"सरकार के नजरिए से अगर हम देखते हैं तो बिहार में मछली का डिमांड साढ़े आठ लाख मीट्रिक टन है और उत्पादन साढ़े छह लाख मेट्रिक टन है. यानि सीधे तौर पर दो लाख मेट्रिक टन का अंतर है और ये आज भी ये जो दो लाख मेट्रिक टन का अंतर है उसकी पूर्ति हो रही है आंद्र प्रदेश से और कुछ जिंदा मछली का जो आयात पश्चिम बंगाल से हो रहा है. लगभग 100 रुपये ही मछली का रेट रखते हैं, तो दो हजार करोड़ रुपए और एवरेज चार हजार करोड़ रुपए का प्रति वर्ष बिहार मछली खरीदता है. बिहार में कतला, रेहू और नैनी मछली की डिमांड ज्यादा है."- ऋषिकेश, एमडी, कोफेड

"जल्द ही मछली उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर हो जाएगा. वर्ष 2007-8 में बिहार में केवल 2.88 लाख मैट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था. जो अब बढ़कर 7.62 लाख मैट्रिक टन हो गया है. पहले बाहर से मछली बहुत आता था. जिसमें अब कमी आई है. बिहार में केवल 67500 मेट्रिक टन ही अब मछली बाहर से मंगाया जा रहा है और 37 हजार मैट्रिक टन बिहार से बाहर भी जा रहा है, बहुत जल्द ही बारह से मछली आना बंद हो जाएगा और यहां से ही हम लोग बाहर भेजेंगे."-एन सरवन, सचिव, मत्स्य संसाधन विभाग

मत्स्य उत्पादन की अपार संभावनाएं: बिहार में सालों भर बहने वाली नदियां हैं. उत्तर बिहार में तो बड़े पैमाने पर पोखर भी हैं. जिसमें पर्याप्त पानी मछली उत्पादन के लिए है. सरकार ने जल जीवन हरियाली अभियान के तहत पुराने पोखर और तालाबों का जीर्णोद्धार भी किया है और उसका असर भी दिख रहा है. लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में बहुत काम होना है. मछली क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि बिहार में लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने वाला यह क्षेत्र बन सकता है. बता दें कि मछली उत्पादन को लेकर कृषि रोडमैप के तहत सरकार कई तरह का अनुदान भी दे रही है. लेकिन अनुदान की राशि मिलने में काफी समय लगता है और इसके कारण भी मत्स्य उत्पादक परेशान रहते हैं. अगर समय से अनुदान मिल जाए तो मत्स्य पालकों को बड़ी राहत मिलेगी.

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