पटना: राजधानी समेत पूरे बिहार में इन दिनों हत्या, लूट, अपहरण, बैंक लूट, दुष्कर्म जैसी वारदातों में लगातार वृद्धि हो रही है. कुछ मामलों में पुलिस को कामयाबी हासिल हो रही है, तो कुछ मामलों में पुलिस ना ही अपराधी को पकड़ने में सफलता पा रही है और ना ही किस मकसद से अपराध को अंजाम दिया गया है, उसका पता लगा पा रही है.
हालांकि पुलिस मुख्यालय द्वारा अपराध पर अंकुश लगाया जा सके, इसको लेकर लगातार जिलों के एसपी से समीक्षा की जा रही है. जिन थानों में विगत दिनों में ज्यादा आपराधिक वारदातों में बढ़ोतरी हुई है, उन्हें चिन्हित कर मामले को जल्द से जल्द निपटारा किया जा रहा है.
फर्जी लाइसेंस का गोरखधंधा
पुलिस मुख्यालय ने सभी जिले के एसपी को निर्देश दिया है कि उनके जिले के थाने में संगीन अपराध में फरार अपराधी की गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए. अपराध पर लगाम के लिए गश्ती पर खास ध्यान दिया जा रहा है. हत्या और बैंक डकैती जैसे वारदातों में इन दिनों बढ़ोतरी हुई है. पुलिस मुख्यालय से मिल रही जानकारी के अनुसार कुछ आपराधिक वारदातों में 'फर्जी आर्म्स लाइसेंस' के द्वारा लिए गए हथियार से अपराधी घटना को अंजाम दे रहे हैं.
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बिहार सरकार के गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय द्वारा समय-समय पर विशेष अभियान चलाकर हथियार धारकों का लाइसेंस की जांच भी करवाई जाती है. इसके बाद भी बिहार में दूसरे राज्यों से बने अवैध ढंग से फर्जी लाइसेंस का गोरखधंधा रुकने का नाम नहीं ले रहा है.
नागालैंड से बन रहे लाइसेंस
नागालैंड समेत उत्तर पूर्व और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों से बने हथियार के लाइसेंस ने सरकार और पुलिस विभाग की चिंता बढ़ा दी है. बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी गृह विभाग के निर्देश पर बिहार के सभी जिले के एसपी और डीएम को निर्देश दिया गया था कि हथियारधारकों के लाइसेंस का सत्यापन करवाया जाए. हालांकि फिर से पुलिस मुख्यालय द्वारा इस बात की छानबीन की जा रही है कि बिहार में जो अपराध की वारदात में वृद्धि हुई है, क्या उसमें इन्हीं फर्जी लाइसेंस हथियार का उपयोग तो नहीं हो रहा है.
राज्य में बड़ी संख्या में नागालैंड, जम्मू कश्मीर से लाइसेंस बनवा कर हथियार लिए गए हैं. इस पर रोक लगाने और फर्जी लाइसेंसधारियों की पहचान करने के लिए भी सभी जिले में सशस्त्र लाइसेंस की जांच करवाई जाएगी.
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कई मामले विभिन्न थानों में दर्ज
पुलिस ने चिंता प्रकट की है कि हथियार तस्करों के राष्ट्रव्यापी गिरोह के माध्यम से या लाइसेंस हासिल कर अच्छी किस्म के हथियार खरीदे जा रहे हैं. इन हथियारों का इस्तेमाल संगठित अपराध और आपराधिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए किया जा सकता है. राजधानी पटना के व्यवसायी गुंजन खेमका हत्याकांड में शामिल कुख्यात अभिषेक कुमार ने भी हथियार का लाइसेंस ले रखा था.
उसके पास से पुलिस को .32 बोर की लाइसेंस मिली थी. जिसका लाइसेंस नागालैंड से बना था. उसके खिलाफ एक-दो नहीं बल्कि कई मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं. बावजूद उसने नागालैंड से हथियार का लाइसेंस बनवाया और पिस्टल भी खरीदा. इसी प्रकार कई ऐसे और आपराधिक घटनाएं हुई हैं, जिनमें नागालैंड या जम्मू-कश्मीर के बने लाइसेंस हथियार से अपराध की घटना को अंजाम दिया गया था.
बड़े रैकेट का खुलासा
पुलिस मुख्यालय ने आशंका जताई है कि नागालैंड और जम्मू-कश्मीर से सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों फर्जी लाइसेंस बनाए गए हैं. जिनकी जांच की जाएगी. ज्यादातर लोग अपने स्टेटस सिंबल के लिए भी हथियार का लाइसेंस बनवाते हैं. विगत कुछ साल पहले बिहार के गया जिले में आर्म्स लाइसेंस दिलवाने वाले बड़े रैकेट का भी खुलासा हुआ था. इस रैकेट के जरिए कई लोग अवैध तरीके से दूसरे राज्य से बनवाए गए अवैध शस्त्र लाइसेंस लेकर हथियार खरीद रहे हैं.
ऐसे लाइसेंस धारकों की जानकारी बिहार पुलिस या गृह विभाग के पास नहीं है. पुलिस मुख्यालय से मिल रही जानकारी के अनुसार, इन दिनों बिहार के कटिहार जिले में अवैध ढंग से अस्थाई पते पर लाइसेंस निर्गत किया जा रहा हैं. विगत 5 दिन पहले कटिहार जिले से पटना के मनीष और पूर्णिया के मरंगा के रहने वाले संतोष को फर्जी अस्थाई पते पर लाइसेंस निर्गत किया है. इन दोनों आवेदकों ने ऑफिसर कॉलोनी के एक चिकित्सक के पते का उल्लेख अपने फर्जी स्थाई पते में किया था.
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दलालों का बड़ा खेल
पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार कटिहार से दूसरे जिले के जितने आवेदकों को हथियार का लाइसेंस निर्गत किया गया है, उनमें से 98 फीसदी लोगों का अस्थाई पता कटिहार में होने की बात तो दूर उस जिले से कोई नाता तक नहीं है. अस्थाई पते के फर्जीवाड़ा के इस खेल का पूरा राज हथियार का लाइसेंस पाने वाले आवेदकों के मोबाइल लोकेशन के सत्यापन से हो सकता है.
मिल रही जानकारी के अनुसार, कटिहार से हथियारों के लाइसेंस निर्गत कराने में दलालों को बड़ा खेल रहा है. हालांकि इन मामलों में पुलिस मुख्यालय खुलकर कुछ भी कहने से बच रही है. पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र कुमार की माने तो बहुत ही कम ऐसे मामले देखने को मिलते हैं कि दूसरे राज्यों के बने आर्म्स लाइसेंस का उपयोग बिहार में होता है.
"दूसरे राज्य से निर्गत आर्म्स लाइसेंस बिहार में अगर रजिस्टर नहीं होगा तो. वैसे लोगों पर भी कार्रवाई की गई है और आगे भी की जाएगी. चुनाव के दौरान आर्म्स लाइसेंस सत्यापन में कुछ दूसरे राज्यों से बने आर्म्स लाइसेंस पाए गए थे. जिन्हें जब्त कर उनके खिलाफ कार्रवाई भी की गई थी. समय-समय पर अभियान चलाकर लाइसेंस सत्यापन करवाया जाता है. इसी कड़ी में अभियान चलाया जा रहा है"- जितेंद्र कुमार, एडीजी, पुलिस मुख्यालय
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"अपराध की रोकथाम के लिए खुद पुलिस मुख्यालय के वरीय अधिकारियों को अपने स्तर से समीक्षा करनी पड़ेगी. अगर पुलिस मुख्यालय के वरीय अधिकारी या रेंज के अधिकारी खुद जिलों में जाकर थानों में जाकर कांड अनुसंधान से जुड़ी जानकारियां लेंगे तो, नीचे के अधिकारियों पर भी दबाव रहेगा और वह सही से काम करेंगे. अनुसंधानकर्ताओं की भी कमी होने की वजह से अनुसंधान विलंब होता है. जिस तरह से अपराध बढ़ रहा है और अनुसंधानकर्ता कम हैं, जिस वजह से प्रायरिटी वाले मामलों को ही प्राथमिकता दी जाती है, जिस वजह से अन्य मामले का अनुसंधान में विलंब होता है"- एसके भारद्वाज, पूर्वी डीजी
साल 2018 की तुलना में आई कमी
बिहार पुलिस के वेबसाइट पर साल 2020 के नवंबर माह तक के आपराधिक आंकड़ों को ही अब तक प्रकाशित किया गया है. तो वहीं साल 2021 के जनवरी माह का अब तक आंकड़ा प्रकाशित नहीं हुआ है. चोरी को छोड़कर सभी आपराधिक वारदातों में साल 2018 की तुलना में 2019 में कमी आई है.