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नवरात्रि के मौके पर मां वनदेवी महाधाम में श्रद्धालुओं की उमड़ रही भीड़, यहां सभी मुरादें होती हैं पूरी

आज नवरात्रि के सातवें दिन पटना स्थित मां वन देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. मान्यता है कि यहां मांगी गई सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है. तो आइये जानते हैं इस मंदिर का इतिहास...

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Published : Oct 12, 2021, 2:34 PM IST

पटना: आज नवरात्रि (Shardiya Navratri 2021) के सातवें दिन मां काली (Maa Kali Puja) की पूजा का विधि-विधान है. नवरात्रि के दिनों में सभी देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जाती है. वहीं, बिहार की राजधानी पटना से 35 किमी दूर बिहटा के राघोपुर कंचपुर मिश्रीचक में स्थित ऐतिहासिक मां वन देवी (Maa Vandevi) या कनखा मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. मान्यता है कि इस मंदिर में आकर सच्चे मन से मांगी गई सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं.

इसे भी पढ़ें: Navratri 2021: छठे दिन होती है मां कात्यायनी की पूजा, जानें पूजन विधि, मंत्र और भोग

इस मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो लगभग 400 वर्ष पूर्व मां विंध्यावासिनी के पिंड का अंश लाकर उनके भक्त और सिद्ध पुरुष विद्यानंद मिश्र ने स्थापना करायी थी. चूंकि, तब मिश्रीचक काफी जंगली इलाका था. इसलिये इसका नाम वनदेवी रखा गया. ऐसे तो इस मंदिर को लेकर कई किंवदंतियां हैं.

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें: बिहार में भी गूंजने लगा बंगाल के ढाक का ताल, अलग-अलग तरीकों से हो रही मां दुर्गा की पूजा

बता दें कि विद्यानंदजी मिश्र कालांतर में मां के बहुत बड़े भक्त थे. उन्हें लोग अद्भुत सिद्धि के कारण आज भी जानते हैं. विद्यानंद उन दिनों भी मां विंध्यावासिनी, वैष्णोदेवी और मैहर में जाकर पूजा अर्चना किया करते थे. वृद्धावस्था में जब उन्हें चलने में परेशानी होने लगी, तो एक रात मां विंध्यावासिनी उनके स्वप्न में आई. उन्होनें कहा की हमारे पिंड का कुछ अंश लेकर चलो मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. विद्यानंद इस स्वप्न के बाद विंध्याचल गए और पिंड का अंश लेकर बिहटा के मिश्रीचक स्थित जंगल में पहुंचे. जहां उन्होंने एक जगह पर उनकी स्थापना कर प्रतिदिन पूजन करने लगे.

उन दिनों बनारस के एक सन्यासी विद्यानंद की परीक्षा लेने के लिए भेड़ों का झुंड लेकर पहुंचते थे. विद्यानंद वन देवी मंदिर में ध्यान में लिन थे. सन्यासी ने अपने भेड़ों से कई सवाल कराकर उनके ध्यान तोड़ने की कोशिश करने लगा. इसपर विद्यानंद ने अपने आगे रखे कलश पर त्रिपुंड से स्पर्श किया, तो भेड़ों के सवाल के जवाब उस कलश से निकलने लगा.

सन्यासी को इस बात पर क्रोध आ गया और उसने कलश पर प्रहार कर दिया. जिससे उसका एक कनखा टूटकर अशोक के वृक्ष पर टंग गया. कहा जाता है की मां वनदेवी अपने भक्त विद्यानंद के साथ सन्यासी के माध्यम से की जा रही धृष्टता पर क्रोधित हो गयी. जिसके बाद उस टूटे कनखे से सन्यासी को दंड देना शुरू कर दिया. मां के क्रोध को शांत करने के लिए विद्यानंद ने अपना ध्यान तोड़कर क्षमा की अपील की. तब जाकर उस सन्यासी की जान बची.

वैसे आपको बता दें कि नवरात्रि के महीने में मंदिर में पूजा करने दूरदराज से भक्त हर दिन आते हैं. अन्य दिनों में मंगलवार और रविवार को काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जाती है. जिले के पुराने और सिद्ध मंदिरों में मां वन देवी महाधाम भी काफी प्रसिद्ध है. जिसके कारण पटना मुख्यालय में बैठे तमाम आईएएस, आईपीएस अधिकारी भी इस मंदिर में पूजा करने आते हैं.

वहीं, स्थानीय श्रद्धालु पवन पटेल बताते हैं कि मंदिर का इतिहास काफी गौरवशाली है और मां वनदेवी माहाधाम की विशेषता यह है कि मां विंध्यवासिनी का पिंड की स्थापना गांव के ही युगपुरुष विद्यानंद मिश्र के माध्यम से किया गया था. जो भी भक्त सच्चे दिल से मां के मंदिर में आते हैं उनकी मुरादे जरूर पूरी होती है. नवरात्रि के मौके पर वन देवी का विशेष श्रृंगार किया जाता है. जिसे देखने और पूजा करने के लिए लोग दूर दराज से आते हैं. नवरात्रि में नौ दिन मां की विशेष आरती भी होती है.



'1600. ई. में इस मंदिर में राघोपुर मिश्रीचक के युगपुरुष विद्यानंद मिश्र के द्वारा मां विंध्यवासिनी के पिण्ड की स्थापना किया गया था. विद्यानंद मिश्र मां विंध्यवासिनी के परम भक्त थे और प्रतिदिन वे मिश्रीचक से अष्टभुजी मां विंध्यवासिनी के दरबार में पूजा करने जाया करते थे. उम्र ढलने के बाद मां उनके सपने में आई और मां के माध्यम से ही उन्होंने मां विंध्यवासिनी के पिण्ड की स्थापना मिश्रीचक में की. जिसके बाद गांव के सभी लोग पूजा करने लगे और आज इस मंदिर का इतिहास और शक्ति सभी लोग को पता है. जिसके कारण प्रतिदिन मंदिर में लोगों की भीड़ होती है. खासकर नवरात्रि के पावन महीने में नौ दिन अखंड दीप जलता है. साथ ही विशेष सिंगार के अलावा भजन भी होता है.' -सितलेश्वर मिश्र, प्रधान पुजारी, वनदेवी मंदिर

पटना: आज नवरात्रि (Shardiya Navratri 2021) के सातवें दिन मां काली (Maa Kali Puja) की पूजा का विधि-विधान है. नवरात्रि के दिनों में सभी देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जाती है. वहीं, बिहार की राजधानी पटना से 35 किमी दूर बिहटा के राघोपुर कंचपुर मिश्रीचक में स्थित ऐतिहासिक मां वन देवी (Maa Vandevi) या कनखा मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. मान्यता है कि इस मंदिर में आकर सच्चे मन से मांगी गई सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं.

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इस मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो लगभग 400 वर्ष पूर्व मां विंध्यावासिनी के पिंड का अंश लाकर उनके भक्त और सिद्ध पुरुष विद्यानंद मिश्र ने स्थापना करायी थी. चूंकि, तब मिश्रीचक काफी जंगली इलाका था. इसलिये इसका नाम वनदेवी रखा गया. ऐसे तो इस मंदिर को लेकर कई किंवदंतियां हैं.

देखें रिपोर्ट.

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बता दें कि विद्यानंदजी मिश्र कालांतर में मां के बहुत बड़े भक्त थे. उन्हें लोग अद्भुत सिद्धि के कारण आज भी जानते हैं. विद्यानंद उन दिनों भी मां विंध्यावासिनी, वैष्णोदेवी और मैहर में जाकर पूजा अर्चना किया करते थे. वृद्धावस्था में जब उन्हें चलने में परेशानी होने लगी, तो एक रात मां विंध्यावासिनी उनके स्वप्न में आई. उन्होनें कहा की हमारे पिंड का कुछ अंश लेकर चलो मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. विद्यानंद इस स्वप्न के बाद विंध्याचल गए और पिंड का अंश लेकर बिहटा के मिश्रीचक स्थित जंगल में पहुंचे. जहां उन्होंने एक जगह पर उनकी स्थापना कर प्रतिदिन पूजन करने लगे.

उन दिनों बनारस के एक सन्यासी विद्यानंद की परीक्षा लेने के लिए भेड़ों का झुंड लेकर पहुंचते थे. विद्यानंद वन देवी मंदिर में ध्यान में लिन थे. सन्यासी ने अपने भेड़ों से कई सवाल कराकर उनके ध्यान तोड़ने की कोशिश करने लगा. इसपर विद्यानंद ने अपने आगे रखे कलश पर त्रिपुंड से स्पर्श किया, तो भेड़ों के सवाल के जवाब उस कलश से निकलने लगा.

सन्यासी को इस बात पर क्रोध आ गया और उसने कलश पर प्रहार कर दिया. जिससे उसका एक कनखा टूटकर अशोक के वृक्ष पर टंग गया. कहा जाता है की मां वनदेवी अपने भक्त विद्यानंद के साथ सन्यासी के माध्यम से की जा रही धृष्टता पर क्रोधित हो गयी. जिसके बाद उस टूटे कनखे से सन्यासी को दंड देना शुरू कर दिया. मां के क्रोध को शांत करने के लिए विद्यानंद ने अपना ध्यान तोड़कर क्षमा की अपील की. तब जाकर उस सन्यासी की जान बची.

वैसे आपको बता दें कि नवरात्रि के महीने में मंदिर में पूजा करने दूरदराज से भक्त हर दिन आते हैं. अन्य दिनों में मंगलवार और रविवार को काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जाती है. जिले के पुराने और सिद्ध मंदिरों में मां वन देवी महाधाम भी काफी प्रसिद्ध है. जिसके कारण पटना मुख्यालय में बैठे तमाम आईएएस, आईपीएस अधिकारी भी इस मंदिर में पूजा करने आते हैं.

वहीं, स्थानीय श्रद्धालु पवन पटेल बताते हैं कि मंदिर का इतिहास काफी गौरवशाली है और मां वनदेवी माहाधाम की विशेषता यह है कि मां विंध्यवासिनी का पिंड की स्थापना गांव के ही युगपुरुष विद्यानंद मिश्र के माध्यम से किया गया था. जो भी भक्त सच्चे दिल से मां के मंदिर में आते हैं उनकी मुरादे जरूर पूरी होती है. नवरात्रि के मौके पर वन देवी का विशेष श्रृंगार किया जाता है. जिसे देखने और पूजा करने के लिए लोग दूर दराज से आते हैं. नवरात्रि में नौ दिन मां की विशेष आरती भी होती है.



'1600. ई. में इस मंदिर में राघोपुर मिश्रीचक के युगपुरुष विद्यानंद मिश्र के द्वारा मां विंध्यवासिनी के पिण्ड की स्थापना किया गया था. विद्यानंद मिश्र मां विंध्यवासिनी के परम भक्त थे और प्रतिदिन वे मिश्रीचक से अष्टभुजी मां विंध्यवासिनी के दरबार में पूजा करने जाया करते थे. उम्र ढलने के बाद मां उनके सपने में आई और मां के माध्यम से ही उन्होंने मां विंध्यवासिनी के पिण्ड की स्थापना मिश्रीचक में की. जिसके बाद गांव के सभी लोग पूजा करने लगे और आज इस मंदिर का इतिहास और शक्ति सभी लोग को पता है. जिसके कारण प्रतिदिन मंदिर में लोगों की भीड़ होती है. खासकर नवरात्रि के पावन महीने में नौ दिन अखंड दीप जलता है. साथ ही विशेष सिंगार के अलावा भजन भी होता है.' -सितलेश्वर मिश्र, प्रधान पुजारी, वनदेवी मंदिर

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