पटना: मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आम बजट 2022 (Union Budget 2022 ) पेश किया. सरकार का दावा है कि बजट ऐतिहासिक है लेकिन विपक्ष को बजट पसंद नहीं आया. सीपीआई ने आम बजट को निराशाजनक बताया (CPI Calls Union Budget Disappointing) है. सीपीआई नेता रामबाबू कुमार (CPI Leader Rambabu Kumar) ने इसे पूंजीपतियों का बजट बताते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार ने जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की है. इससे आम लोगों को कोई फायदा नहीं होने वाला है.
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सीबीआई के राज्य सचिव मंडल के सदस्य रामबाबू कुमार ने बताया कि मूलतः यह बजट कारपोरेट पक्षीय बजट है. उनको ज्यादा से ज्यादा सहूलियत इस बजट में दी गई है. देश में आम आदमी है मध्यम वर्गीय परिवार है खासकर जो सैलरीड क्लास है, उनके टैक्स सीमा में कोई छूट नहीं दी गई है. जबकि 2 वर्षों के कोरोना का असर सबसे अधिक इन पर पड़ा है. काफी संख्या में सैलरीड क्लास के लोगों का जॉब लॉस हुआ है और उनकी पेईंग कैपेसिटी घटी है. इनकी टैक्स की सीमा को यथावत रखा गया है. इनकी टैक्स स्लैब में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है और यह दर्शाता है कि सरकार मध्यमवर्गीय के प्रति क्या सोच रखती है. सरकार को इन लोगों की कोई फिक्र नहीं है. कारपोरेट घरानों के लिए जो सहूलियत है, उसमें कॉरपोरेट टैक्स को 18 फीसद से घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है. कोरोना के समय में यह एक पैकेज था लेकिन अब कोरोना के बाद भी अब जारी रहेगा.
सीपीआई नेता ने कहा कि सरकार कह रही है कि कोरोना से पहले की स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था आ गई है और विकास दर का एक्सपेक्टेड आकलन 9.2 परसेंट का है. इसके बाद भी सरकार यदि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कर रही है तो इसकी भरपाई कहां से होगी, सरकार इसका जवाब दे. सीपीआई नेता रामबाबू कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब देशभर में कोरोना टीका निशुल्क करने का निर्देश मिला, उसके बाद उसकी भरपाई सरकार पेट्रोल और डीजल ऊपर कीमतें बढ़ाकर कर रही है. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भी गिरावट का कोई संकेत नहीं मिला. सारे खर्चे का बोझ सरकार आम जनता के ऊपर खासकर मध्यम वर्गीय परिवारों पर डाल रही है और कारपोरेट घरानों को टैक्स में कटौती दे रहे हैं.
रामबाबू कुमार ने कहा कि डिजिटल ट्रांजैक्शन और डिजिटल कैपिटल गेन बड़े पूंजीपतियों और उद्योगपतियों का चोंचला है और वह कर रहे हैं. उसमें सरकार टैक्स लेने की बात करती है. कोई इसको कैलकुलेट नहीं कर सकता है कि यह टैक्स किस कैपिटल गेन पर लग रहा है और कितना लग रहा है. इसमें डिजिटल हेराफेरी की बहुत सारी गुंजाइश हैं. सरकार पहले कैशलेस को प्रमोट करती है और जब लोग इससे जुड़ गए हैं. अब जब लोग डिजिटल पेमेंट करने लगे हैं तो इस पर टैक्स लगा रहे हैं. बैंक खाते में लोगों के जो पैसे रखे हुए हैं, उस पर सरकार अब सालाना फिक्स्ड चार्ज काट रही है. एटीएम के इस्तेमाल पर चार्जेज काट रही है. डिजिटल ट्रांजेक्शन पर टैक्सेशन की व्यवस्था करके सरकार एक ऐसा सिस्टम डिवेलप कर रही है, जिसके माध्यम से वह बैक डोर के माध्यम से लोगों के पैसे खींच सकें. उन्होंने कहा कि यह सारे कार्यक्रम सरकार पक्षीय लोगों और खासकर सरकार के चंद पूंजीपतियों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार किए जा रहे हैं.
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