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विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में होते हैं निर्दलीय उम्मीदवार, अधिकांश की जमानत होती है जब्त

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Published : Oct 2, 2020, 5:56 PM IST

राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है कि अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवार वोट कटवा ही साबित होते हैं. दूसरे उम्मीदवार को हराने के लिए उन्हें खड़ा करवाया जाता है.

पटना
पटना

पटनाः बिहार में विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं. हर चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या पिछले चुनाव से ज्यादा होती है. की संख्या हर बार बढ़ जाती है. हालांकि अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत जब्त होती रही है, लेकिन कई सीटों पर जीत-हार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं.

कई बार पार्टी में टिकट नहीं मिलने के कारण सीटिंग उम्मीदवार बागी हो जाते हैं और पार्टी के लिए ही चुनौती पेश कर देते हैं. ऐसे प्रत्याशियों को कई बार जीत भी मिलती है. कई बार किसी कैंडिडेट को हराने के लिए भी निर्दलीय उम्मीदवार को उतारा जाता है. वो कई बार वोट कटवा ही साबित होते हैं.

महिलाएं भी उतरती हैं निर्दलीय
ऐसे तो हर विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे हैं. कई विधानसभा सीटों पर एक से अधिक निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में होते हैं. चुनाव में उनकी संख्या हजारों में होती है. निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या से साफ है कि चुनाव के जीत हार में कई सीटों पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं.

2015 में हुए विधानसभा चुनाव में रमई राम को भी बोचहां से बेबी देवी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पराजित किया था. ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें बागी उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं. जबकि अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत जब्त होती रही है.

1952 में 14 निर्दलीय प्रत्याशियों को मिली थी जीत
राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है कि अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवार वोट कटवा ही साबित होते हैं. दूसरे उम्मीदवार को हराने के लिए उन्हें खड़ा करवाया जाता है. 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव केवल 14 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. हर विधानसभा चुनाव के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती गई. चुनाव में 100 से भी अधिक निर्दलीय प्रत्याशी खड़े होने लगे. हालांकि चुनाव आयोग ने जमानत राशि बढ़ा दी तो उसका असर भी दिखा, लेकिन बाद में फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने लगी.

ईटीवी भारत से बात करते राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर
ईटीवी भारत से बात करते राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर

डीएम दिवाकर ने कहा कि 2005 की ही बात करें तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या 1,493 पहुंच गया और इसमें से केवल 17 को ही जीत नसीब हुई. 2010 के विधानसभा चुनाव में 1,342 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव में उतरे थे. जबकि 6 प्रत्याशियों को ही जीत मिली सकी. अधिकांश की जमानत भी नहीं बच पाई. लेकिन 1,342 निर्दलीय प्रत्याशियों ने 13.22 फीसदी वोट पर अपना कब्जा जमाया था. 2015 में 1,150 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में अपना किस्मत जमाया था. इसमें से चार को ही जीत का स्वाद मिल सका. अधिकांश की जमानत जब्त हो गयी.

निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 6 महिला को मिली जीत
1952 से लेकर अब तक छह महिला प्रत्याशियों ने भी निर्दलीय जीत हासिल की है. 1952 में मनोरमा सिन्हा कतरा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीती थी. 1985 में मालती देवी बोधगया से, 2000 में बीमा भारती रुपौली से, 2005 में अरुणा देवी वारिसलीगंज से और 2005 में ही पूर्णिमा देवी नवादा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीती थी. 2010 में ज्योति रश्मि डिहरी से और 2015 में बेबी कुमारी बोचहां से चुनाव जीती थीं. कई निर्दलीय उम्मीदवार बाद में पार्टियों में भी शामिल हो जाते हैं या फिर सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.

पेश है रिपोर्ट
सालनिर्दलीय प्रत्याशीजीते
2005 1,493 17
2010 1,342 6
2015 1,1504

2020 में भी बड़ी संख्या में होंगे निर्दलीय प्रत्याशी
2010 और 2015 के आंकड़ों को भी देखें तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. 2020 विधानसभा चुनाव के लिए नॉमिनेशन शुरू हो चुका है. कोरोना काल में 3 फेज में होने वाले चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या काफी रहने की संभावना है.

पटनाः बिहार में विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं. हर चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या पिछले चुनाव से ज्यादा होती है. की संख्या हर बार बढ़ जाती है. हालांकि अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत जब्त होती रही है, लेकिन कई सीटों पर जीत-हार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं.

कई बार पार्टी में टिकट नहीं मिलने के कारण सीटिंग उम्मीदवार बागी हो जाते हैं और पार्टी के लिए ही चुनौती पेश कर देते हैं. ऐसे प्रत्याशियों को कई बार जीत भी मिलती है. कई बार किसी कैंडिडेट को हराने के लिए भी निर्दलीय उम्मीदवार को उतारा जाता है. वो कई बार वोट कटवा ही साबित होते हैं.

महिलाएं भी उतरती हैं निर्दलीय
ऐसे तो हर विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे हैं. कई विधानसभा सीटों पर एक से अधिक निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में होते हैं. चुनाव में उनकी संख्या हजारों में होती है. निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या से साफ है कि चुनाव के जीत हार में कई सीटों पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं.

2015 में हुए विधानसभा चुनाव में रमई राम को भी बोचहां से बेबी देवी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पराजित किया था. ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें बागी उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं. जबकि अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत जब्त होती रही है.

1952 में 14 निर्दलीय प्रत्याशियों को मिली थी जीत
राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है कि अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवार वोट कटवा ही साबित होते हैं. दूसरे उम्मीदवार को हराने के लिए उन्हें खड़ा करवाया जाता है. 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव केवल 14 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. हर विधानसभा चुनाव के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती गई. चुनाव में 100 से भी अधिक निर्दलीय प्रत्याशी खड़े होने लगे. हालांकि चुनाव आयोग ने जमानत राशि बढ़ा दी तो उसका असर भी दिखा, लेकिन बाद में फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने लगी.

ईटीवी भारत से बात करते राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर
ईटीवी भारत से बात करते राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर

डीएम दिवाकर ने कहा कि 2005 की ही बात करें तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या 1,493 पहुंच गया और इसमें से केवल 17 को ही जीत नसीब हुई. 2010 के विधानसभा चुनाव में 1,342 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव में उतरे थे. जबकि 6 प्रत्याशियों को ही जीत मिली सकी. अधिकांश की जमानत भी नहीं बच पाई. लेकिन 1,342 निर्दलीय प्रत्याशियों ने 13.22 फीसदी वोट पर अपना कब्जा जमाया था. 2015 में 1,150 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में अपना किस्मत जमाया था. इसमें से चार को ही जीत का स्वाद मिल सका. अधिकांश की जमानत जब्त हो गयी.

निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 6 महिला को मिली जीत
1952 से लेकर अब तक छह महिला प्रत्याशियों ने भी निर्दलीय जीत हासिल की है. 1952 में मनोरमा सिन्हा कतरा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीती थी. 1985 में मालती देवी बोधगया से, 2000 में बीमा भारती रुपौली से, 2005 में अरुणा देवी वारिसलीगंज से और 2005 में ही पूर्णिमा देवी नवादा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीती थी. 2010 में ज्योति रश्मि डिहरी से और 2015 में बेबी कुमारी बोचहां से चुनाव जीती थीं. कई निर्दलीय उम्मीदवार बाद में पार्टियों में भी शामिल हो जाते हैं या फिर सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.

पेश है रिपोर्ट
सालनिर्दलीय प्रत्याशीजीते
2005 1,493 17
2010 1,342 6
2015 1,1504

2020 में भी बड़ी संख्या में होंगे निर्दलीय प्रत्याशी
2010 और 2015 के आंकड़ों को भी देखें तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. 2020 विधानसभा चुनाव के लिए नॉमिनेशन शुरू हो चुका है. कोरोना काल में 3 फेज में होने वाले चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या काफी रहने की संभावना है.

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