पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर सेंसरशिप लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि देश में महिलाओं और बच्चों के साथ घटित दुष्कर्म और आपराधिक घटनाओं से पूरे देश के लोग गुस्सा होते हैं. इस तरह की घटनाएं सभी राज्यों में घटित हो रही हैं, जो अत्यंत दुख और चिंता का विषय है.
पहले भी पॉर्न साइट बंद करने की पीएम से की थी मांग
मुख्यमंत्री ने इस संबंध में प्रधानमंत्री को भेजे गए अपने पूर्व पत्र 11 दिसंबर 2019 का भी हवाला दिया है. जिसमें मुख्यमंत्री की ओर से इंटरनेट पर उपलब्ध ऐसी पॉर्नसाइट्स और अनुचित सामग्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए समुचित कार्रवाई करने के संबंध में अनुरोध किया गया था. वहीं, मुख्यमंत्री ने फिर से इसी विषय से संबंधित अहम बिंदु की ओर प्रधानमंत्री का ध्यान खींचा है. मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि फिलहाल कई सेवा प्रदाता अपनी-अपनी स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से उपभोक्ताओं को अलग-अलग कार्यक्रम, फिल्में और सीरियल दिखा रहे हैं. लेकिन स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर सेंसरशिप लागू नहीं होने के कारण अत्यधिक आपराधिक और सेक्स के खुले प्रदर्शन पर आधारित फिल्में और धारावाहिक इन चैनलों पर दिखाए जाते हैं.
'उपभोक्ताओं के बीच है प्रचलित'
ऐसे कार्यक्रम किसी दूसरे माध्यम से उपलब्ध नहीं होते हैं. केवल स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से उपभोक्ताओं को सीधे उपलब्ध होते हैं. साथ ही स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर जो कार्यक्रम आते हैं. उन पर नियमों और कानूनों की अस्पष्टता के कारण न तो सेंसरशिप लागू होती है और न ही किसी प्रकार के विज्ञापन आते हैं. इसके अतिरिक्त जब भी उपभोक्ता चाहे तब यह कार्यक्रम देख सकते हैं. इस तरह से यह सेवाएं एक ऑनलाइन वीडियो लाइब्रेरी के रूप में कार्य करती हैं. इन सेवाओं की दर भी डीटीएच और केबल सेवाओं से काफी कम रहती है. इन सभी कारणों से यह सेवाएं उपभोक्ताओं के बीच काफी प्रचलित है.
'अपराधों के निवारण हेतु कार्रवाई जरूरी'
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि स्ट्रीमिंग सर्विसेज की लोगों तक बिना सेंसर के पहुंचने के कारण बहुत से लोग अश्लील, हिंसक और अनुचित कंटेंट देख रहे हैं, जो अवांछनीय है. इन कार्यक्रमों को देखने वाले बहुत सारे लोगों के मस्तिष्क को इस तरह की सामग्री गंभीर रूप से दुष्प्रभावित करती है. इसके अतिरिक्त ऐसी सामग्री के दीर्घकालीन उपयोग से कुछ लोगों की मानसिकता नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है. जिससे अनेक सामाजिक समस्याएं हो रही हैं. विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है. मुख्यमंत्री ने पत्र के माध्यम से कहा है कि इस तरह की अनुचित सामग्री की असीमित उपलब्धता उचित नहीं है. महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हो रहे ऐसे अपराधों के निवारण के लिए प्रभावी कार्रवाई किया जाना जरूरी है.
पब्लिक एग्जीबिशन को नहीं किया गया है परिभाषित
उल्लेखनीय है कि सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 की धारा 3 के अनुसार फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन के प्रमाणीकरण के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के गठन का प्रावधान है. लेकिन इस अधिनियम में पब्लिक एग्जीबिशन को परिभाषित नहीं किया गया है. जिसके कारण यह स्पष्ट नहीं है कि प्रमाणीकरण की आवश्यकता केवल सिनेमा हॉल में दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों के लिए है. अपने निजी घर में भी देखे जाने वाले कार्यक्रम की परिभाषा में आते हैं.
स्ट्रीमिंग सर्विसेज को कानून के दायरे में लाने का अनुरोध
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में लिखा है कि नियम और अधिनियम में अस्पष्टता के कारण समाज में स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से दिखाए जाने वाले अश्लील और हिंसक कार्यक्रमों के नकारात्मक प्रभाव के कारण अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे कार्यक्रमों के निर्माण और प्रसारण को अपराध मानते हुए इन पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है. साथ ही अलग-अलग हितधारकों, अभिभावकों, शैक्षणिक संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि इस गंभीर विषय पर तत्काल विचार करते हुए स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से प्रसारित हो रहे कार्यक्रमों को सिनेमैटोग्राफ एक्ट के अंतर्गत प्रमाणीकरण की परिधि में लाने हेतु समुचित कार्रवाई करने की कृपा की जाए. इसके अतिरिक्त ऐसे अश्लील और हिंसक कार्यक्रमों के निर्माण और प्रसारण को अपराध की श्रेणी में लाना चाहिए, ताकि संबंधित व्यक्तियों पर कानूनी कार्रवाई की जा सके.