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NEET Exam 2023: नीट परीक्षा को लेकर घबराहट हो तो डरने की जरूरत नहीं है, यह खबर आपके लिए हैं...

नीट की परीक्षा को लेकर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह ने छात्रों के लिए खास जानकारी दी. अक्सर देखा जाता है कि परीक्षा नजदीक आते ही छात्र परेशान हो जाते हैं. कई छात्र मेंटल तरीके से भी परेशान हो जाते हैं. छात्रों को डर बना रहता है कि परीक्षा कैसी रहेगी. रिजल्ट ठीक आएगा या नहीं. इस तमाम परेशानियों को कम करने के लिए यह खबर छात्रों के लिए अच्छी है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : May 5, 2023, 10:56 PM IST

प्रख्यात क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह से खास बातचीत

पटनाः देश में 7 मई को नीट की परीक्षा (NEET UG 2023) होनी है. इस परीक्षा से अंडर ग्रेजुएट मेडिकल कोर्स के लिए परीक्षार्थी क्वालीफाई करेंगे. बिहार में इंजीनियरिंग और मेडिकल को लेकर के बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों में भी बड़ा क्रेज देखने को मिलता है. ऐसे में नीट परीक्षा के समय नजदीक आते हीं बच्चों में मेंटल स्ट्रेस की शिकायत लेकर अभिभावक पटना के मनोचिकित्सकों के सेंटर पर पहुंचने लगे हैं. इसमें कई बार यह समस्या देखने को मिल रही है कि पेरेंट्स चाहते हैं कि बच्ची डॉक्टर बने जबकि बच्ची चाहती है कि वह फैशन डिजाइनर बने. कई बच्चों की शिकायतें यह भी रही है कि वह सब कुछ पढ़े हुए हैं लेकिन अभी ऐसा लग रहा है कि सब कुछ भूल गए हैं.

यह भी पढ़ेंः NEET UG 2023 : एडमिट कार्ड को लेकर गड़बड़झाला, जारी करने के बाद NTA ने हटाया डाउनलोडिंग लिंक

पेरेंट्स का क्या व्यवहार होना चाहिएः परीक्षा के अंतिम समय में मानसिक तनाव को छात्र-छात्राएं कैसे हैंडल करेंगे और पेरेंट्स का क्या व्यवहार होना चाहिए बच्चों को लेकर इसके बारे में प्रख्यात क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह ने कुछ खास जानकारी दी. डॉ बिंदा सिंह ने बताया कि बच्चों को खुद को लेकर एक्सपेक्टेशन भी अधिक होते हैं जिसके कारण वह तनाव में चले जाते हैं. इसके अलावा पेरेंट्स को भी है कि उनके बच्चे डॉक्टर ही बने, चाहे बच्ची में उस लेवल की एबिलिटी है अथवा नहीं बच्चा किसी और फील्ड में जाना चाहता है, यह पूछते भी नहीं और बच्चे को नीट का फॉर्म भरा देते हैं और बच्चे को क्वालीफाई करने का प्रेशर डालते हैं.

एक दूसरे से कंपैरिजन ना करेंः तनाव से दूर रहने के लिए जरूरी है कि बच्चे जितना पढ़ें हैं, उस पर कॉन्फिडेंस रखें. अपने दोस्तों से इस बात को लेकर अधिक चर्चा ना करें कि तुमने यह पढ़ लिया मेरा यह छूटा हुआ है. एक दूसरे से कंपैरिजन ना करें. क्योंकि इससे मन में डर हो जाता है. इसके अलावा अभिभावकों के लिए भी जरूरी है कि बच्चों पर एग्जाम को लेकर अधिक प्रेशर ना डालें क्योंकि इससे बच्चे डर जाते हैं कि यदि वह क्वालीफाई नहीं करेंगे तो उनका क्या होगा. इस डर की वजह से बच्चे जो कुछ कर सकते हैं वह भी नहीं कर पाते हैं.

बच्चों को पूरा सपोर्ट करेंः डॉ बिंदा सिंह ने बताया कि वह बच्चों से कहेंगे कि जो उन्होंने पढी है उस पर कॉन्फिडेंस रखें. यह गांठ बांध लें कि यह परीक्षा जीवन की अंतिम परीक्षा नहीं है. आपका जिस में इंटरेस्ट है, उस काम को भी आगे कर सकते हैं. अभी के समय यह भी देखने को मिल रहा है कि एग्जाम के प्रेशर में बच्चे रात रात भर सो नहीं रहे हैं. जग कर पढ़ाई कर रहे हैं, खाने पीने का टाइम टेबल बिगड़ गया है, भूख नहीं लग रही है, बच्चों में एक पैनिक अटैक देखने को मिल रहा है. इस समय पेरेंट्स के लिए जरूरी है कि अपने बच्चों को पूरा सपोर्ट करें. उन्हें यह बताएं कि तुम बस अपना हंड्रेड परसेंट दो और आगे होना या ना होना की चिंता छोड़ दो. ऐसा कहने से बच्चों के अंदर का कॉन्फिडेंस बढ़ेगा.


बच्चों को कैरियर च्वाइस के बारे में पूछेः यह शुरू से देखने को मिलता रहा है कि व्यक्ति जीवन में जो अपनी ख्वाहिशों को पूरी नहीं कर पाता है. वह चाहता है कि वह मुकाम उसके बच्चे हासिल करें. अभिभावक अपने सपनों को बच्चों पर थोपते हैं और इसके लिए तमाम सारी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं, जबकि यह नहीं पूछते कि बच्चे क्या करना चाहते हैं. बच्चे कोई खिलौना नहीं कि हम जैसा चाहे वैसा बच्चे करें, हर बच्चे की अपनी एबिलिटी होती है. हर बच्चा दूसरे से अलग होता है. इस बात को अभिभावकों को समझना होगा. कोई बच्चा फैशन डिजाइनिंग करना चाहता है तो कोई इंजीनियर बनना चाहता है. कोई मैनेजमेंट करना चाहता है तो कोई बिजनेस करना चाहता है. इसलिए बच्चे से उसकी राय पूछ कर ही उसे उसकी कैरियर में आगे बढ़ने में मदद करें.

"एग्जामिनेशन समय में बच्चे बीमार पड़ जाते हैं. जो मेधावी छात्र होते हैं वह अभी एग्जाम क्वालीफाई नहीं करते. इसके पीछे प्रमुख कारण मानसिक तनाव है. स्ट्रेस की वजह से बच्चों के सिर में दर्द, पेट में दर्द, जी मचलना, भूख ना लगना इत्यादि लक्षण शामिल है. यह जो एंजाइटी है, यह जो उसके अंदर का डर है, बच्चे को बीमार करने के लिए काफी है और बीमार होने पर बच्चे एग्जाम में अपना हंड्रेड परसेंट नहीं दे पाते और कई बार वह क्वालिफाई भी नहीं कर पाते. इसलिए जरूरी है कि बच्चे जो जितना पढ़ें हुए हैं उसको लेकर कॉन्फिडेंट रहे. फिजिकल एक्सरसाइज, मेडिटेशन और योगा करें. घर में बेहतर माहौल रखें और कुछ समय दिन में पढ़ाई से दूरी बनाकर अन्य चीजों पर भी ध्यान दें. जैसे गमले में पानी डालना. फूल पौधे की रखरखाव करना, दोस्तों का हाल चाल लेना इत्यादि." -डॉ बिंदा सिंह, प्रख्यात क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट

प्रख्यात क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह से खास बातचीत

पटनाः देश में 7 मई को नीट की परीक्षा (NEET UG 2023) होनी है. इस परीक्षा से अंडर ग्रेजुएट मेडिकल कोर्स के लिए परीक्षार्थी क्वालीफाई करेंगे. बिहार में इंजीनियरिंग और मेडिकल को लेकर के बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों में भी बड़ा क्रेज देखने को मिलता है. ऐसे में नीट परीक्षा के समय नजदीक आते हीं बच्चों में मेंटल स्ट्रेस की शिकायत लेकर अभिभावक पटना के मनोचिकित्सकों के सेंटर पर पहुंचने लगे हैं. इसमें कई बार यह समस्या देखने को मिल रही है कि पेरेंट्स चाहते हैं कि बच्ची डॉक्टर बने जबकि बच्ची चाहती है कि वह फैशन डिजाइनर बने. कई बच्चों की शिकायतें यह भी रही है कि वह सब कुछ पढ़े हुए हैं लेकिन अभी ऐसा लग रहा है कि सब कुछ भूल गए हैं.

यह भी पढ़ेंः NEET UG 2023 : एडमिट कार्ड को लेकर गड़बड़झाला, जारी करने के बाद NTA ने हटाया डाउनलोडिंग लिंक

पेरेंट्स का क्या व्यवहार होना चाहिएः परीक्षा के अंतिम समय में मानसिक तनाव को छात्र-छात्राएं कैसे हैंडल करेंगे और पेरेंट्स का क्या व्यवहार होना चाहिए बच्चों को लेकर इसके बारे में प्रख्यात क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह ने कुछ खास जानकारी दी. डॉ बिंदा सिंह ने बताया कि बच्चों को खुद को लेकर एक्सपेक्टेशन भी अधिक होते हैं जिसके कारण वह तनाव में चले जाते हैं. इसके अलावा पेरेंट्स को भी है कि उनके बच्चे डॉक्टर ही बने, चाहे बच्ची में उस लेवल की एबिलिटी है अथवा नहीं बच्चा किसी और फील्ड में जाना चाहता है, यह पूछते भी नहीं और बच्चे को नीट का फॉर्म भरा देते हैं और बच्चे को क्वालीफाई करने का प्रेशर डालते हैं.

एक दूसरे से कंपैरिजन ना करेंः तनाव से दूर रहने के लिए जरूरी है कि बच्चे जितना पढ़ें हैं, उस पर कॉन्फिडेंस रखें. अपने दोस्तों से इस बात को लेकर अधिक चर्चा ना करें कि तुमने यह पढ़ लिया मेरा यह छूटा हुआ है. एक दूसरे से कंपैरिजन ना करें. क्योंकि इससे मन में डर हो जाता है. इसके अलावा अभिभावकों के लिए भी जरूरी है कि बच्चों पर एग्जाम को लेकर अधिक प्रेशर ना डालें क्योंकि इससे बच्चे डर जाते हैं कि यदि वह क्वालीफाई नहीं करेंगे तो उनका क्या होगा. इस डर की वजह से बच्चे जो कुछ कर सकते हैं वह भी नहीं कर पाते हैं.

बच्चों को पूरा सपोर्ट करेंः डॉ बिंदा सिंह ने बताया कि वह बच्चों से कहेंगे कि जो उन्होंने पढी है उस पर कॉन्फिडेंस रखें. यह गांठ बांध लें कि यह परीक्षा जीवन की अंतिम परीक्षा नहीं है. आपका जिस में इंटरेस्ट है, उस काम को भी आगे कर सकते हैं. अभी के समय यह भी देखने को मिल रहा है कि एग्जाम के प्रेशर में बच्चे रात रात भर सो नहीं रहे हैं. जग कर पढ़ाई कर रहे हैं, खाने पीने का टाइम टेबल बिगड़ गया है, भूख नहीं लग रही है, बच्चों में एक पैनिक अटैक देखने को मिल रहा है. इस समय पेरेंट्स के लिए जरूरी है कि अपने बच्चों को पूरा सपोर्ट करें. उन्हें यह बताएं कि तुम बस अपना हंड्रेड परसेंट दो और आगे होना या ना होना की चिंता छोड़ दो. ऐसा कहने से बच्चों के अंदर का कॉन्फिडेंस बढ़ेगा.


बच्चों को कैरियर च्वाइस के बारे में पूछेः यह शुरू से देखने को मिलता रहा है कि व्यक्ति जीवन में जो अपनी ख्वाहिशों को पूरी नहीं कर पाता है. वह चाहता है कि वह मुकाम उसके बच्चे हासिल करें. अभिभावक अपने सपनों को बच्चों पर थोपते हैं और इसके लिए तमाम सारी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं, जबकि यह नहीं पूछते कि बच्चे क्या करना चाहते हैं. बच्चे कोई खिलौना नहीं कि हम जैसा चाहे वैसा बच्चे करें, हर बच्चे की अपनी एबिलिटी होती है. हर बच्चा दूसरे से अलग होता है. इस बात को अभिभावकों को समझना होगा. कोई बच्चा फैशन डिजाइनिंग करना चाहता है तो कोई इंजीनियर बनना चाहता है. कोई मैनेजमेंट करना चाहता है तो कोई बिजनेस करना चाहता है. इसलिए बच्चे से उसकी राय पूछ कर ही उसे उसकी कैरियर में आगे बढ़ने में मदद करें.

"एग्जामिनेशन समय में बच्चे बीमार पड़ जाते हैं. जो मेधावी छात्र होते हैं वह अभी एग्जाम क्वालीफाई नहीं करते. इसके पीछे प्रमुख कारण मानसिक तनाव है. स्ट्रेस की वजह से बच्चों के सिर में दर्द, पेट में दर्द, जी मचलना, भूख ना लगना इत्यादि लक्षण शामिल है. यह जो एंजाइटी है, यह जो उसके अंदर का डर है, बच्चे को बीमार करने के लिए काफी है और बीमार होने पर बच्चे एग्जाम में अपना हंड्रेड परसेंट नहीं दे पाते और कई बार वह क्वालिफाई भी नहीं कर पाते. इसलिए जरूरी है कि बच्चे जो जितना पढ़ें हुए हैं उसको लेकर कॉन्फिडेंट रहे. फिजिकल एक्सरसाइज, मेडिटेशन और योगा करें. घर में बेहतर माहौल रखें और कुछ समय दिन में पढ़ाई से दूरी बनाकर अन्य चीजों पर भी ध्यान दें. जैसे गमले में पानी डालना. फूल पौधे की रखरखाव करना, दोस्तों का हाल चाल लेना इत्यादि." -डॉ बिंदा सिंह, प्रख्यात क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट

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