पटना: बिहार में सरकारी शिक्षकों की कई मांगों को लेकर शिक्षक न्याय मोर्चा (Teachers Justice Front) के बैनर तले रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें शिक्षकों ने आरोप लगाया कि बिहार सरकार प्रदेश में अपने ही शिक्षकों के साथ भेदभाव की नीति अपना रही है. शिक्षक न्याय मोर्चा के संयोजक शिवेंद्र कुमार पाठक ने कहा कि बिहार सरकार शिक्षकों के प्रति भेदभाव कर रही है.
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शिवेंद्र कुमार पाठक ने कहा कि पिछले साल जब प्रदेश के शिक्षक आंदोलनरत थे, उस समय सरकार ने जो कुछ भी लिखित और मौखिक वादे किए उनमें से किसी को भी पूरा नहीं किया है. उन्होंने कहा कि 15% वेतन वृद्धि का मामला, स्थानांतरण का मामला या फिर वेतन विसंगति का मामला हो अभी तक किसी भी मामले पर सरकार की तरफ से कोई निर्णय नहीं हुआ है.
''वेतन विसंगति एक बहुत ही गंभीर मामला है. यह ऐसा मामला है जिसमें जूनियर शिक्षकों को सीनियर शिक्षकों से अधिक वेतन मिल रहा है. 2014-15 में जो शिक्षक नियुक्त हुए हैं, उन्हें कम वेतन मिल रहा है. जबकि 2016 और उसके बाद जो नियुक्त हुए हैं उन्हें अधिक वेतन मिल रहा है. इसका मुख्य कारण यह है कि 2006 से जो नियुक्त शिक्षक हैं, उनको 2015 से पहले 3 साल पर वेतन का एक इंक्रीमेंट लगाकर फिक्स कर दिया गया, जिसका परिणाम वेतन विसंगति के रूप में आया है. हम बार-बार मांग कर रहे हैं कि इसे अविलंब दूर किया जाए''- शिवेंद्र कुमार पाठक, संयोजक, शिक्षक न्याय मोर्चा
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उन्होंने कहा कि तीसरा एक गंभीर मामला है कि प्रधानाध्यापक के लिए सरकार ने अभी एक नियम बनाया है कि बीपीएससी के माध्यम से प्रदेश में 50,000 प्रधानाध्यापक नियुक्त किए जाएंगे. सरकार के इस निर्णय से उन्हें कोई परेशानी नहीं है, मगर परेशानी इस बात से है कि सर्विस रूल के तहत एक सर्विस में मिनिमम 2 प्रमोशन होना अनिवार्य है. ऐसे में प्रदेश के 4,50,000 शिक्षकों में 50,000 को प्रधानाध्यापक बना दिया जाएगा, मगर शेष बचे चार लाख के प्रमोशन का क्या होगा.
शिवेंद्र कुमार पाठक ने कहा कि प्रदेश में सरकार शिक्षा के विकास की बात कर रही है, मगर शिक्षा में गुणवत्ता कैसे आएगी जब प्रदेश के शिक्षक ही आर्थिक और मानसिक रूप से शोषित रहेंगे. सरकार से उनकी मांग है कि इन मांगों पर सरकार जल्द सुनवाई करें और वेतन विसंगति दूर करें. साथ ही सभी शिक्षकों के प्रमोशन के बारे में स्पष्ट नीति बनाए. 1 अप्रैल 2021 से 15% वेतन वृद्धि एरियर के साथ भुगतान यथाशीघ्र करें. सरकार अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है तो एक बार फिर से प्रदेश के शिक्षक स्कूलों को छोड़ सड़कों पर आंदोलन करते नजर आएंगे और इसके लिए जिम्मेदार सरकार होगी.