पटना: साल 2020 चिकित्सा जगत और चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण रहा. कोरोना संक्रमित मरीज के पास आने से परिजन भी कतरा रहे थे, जबकि स्वास्थ्य कर्मी ऐसे मरीजों की सेवा अपनी जान जोखिम में डालकर कर रहे थे. साल 2020 में चिकित्सीय व्यवस्था पूरे प्रदेश में काफी चरमराई हुई थी, सभी का ध्यान कोरोना केंद्रीत रह गया.
सामान्य बीमारी के मरीजों को भी काफी परेशानियां हुईं और इलाज के अभाव में कई सामान्य बीमारी गंभीर रूप ले चुकी थी. ऐसे में मरीजों की जान भी गई. साल 2020 में कोरोना ने इस प्रकार असर डाला की लोगों को एक बार फिर से समझ में आ गया कि आखिर डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को क्यों धरती का भगवान कहा जाता है?
कोविड-19 का बढ़ता संक्रमण
साल 2020 में पूरी दुनिया में सिर्फ कोरोना की ही चर्चा छाई रही. फिर चाहे बढ़ते संक्रमण का भय हो, या फिर वैक्सीन के निर्माण की उम्मीद. कोविड-19 का कालखंड 'लॉकडाउन' और 'अनलॉक' जैसे शब्दों के बीच सिमट कर रह गई. संक्रमण से बचने के लिए लोगों ने अपना ज्यादातर समय घरों में ही बिताए.
लॉकडाउन में स्वास्थ्य कर्मियों पर वर्कलोड
मार्च के अंत में देश के भीतर लॉकडाउन लग गया. सरकार चाहती थी कि कोरोना की चेन को सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए तोड़ा जा सकता है. इसी को अमल में लाने के लिए कुछ हफ्तों के लिए लॉकडाउन लगाया गया. हफ्ते महीनों में बदल गए. लेकिन स्थिति में सुधार नहीं आया. इस दौरान सब कुछ ठप रहा. रेल, बस, हवाई उड़ाने सब रोक दी गईं. कंपनियां बंद हो गईं. लेकिन नहीं बंद हुआ तो वो है स्वास्थ्य सेवाएं. स्वास्थ्य सेवाओं को जरूरी सेवाओं के अंदर शामिल कर लिया गया. जिसके चलते स्वास्थ्यकर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गईं.
हाई रिस्क ज़ोन में काम
स्वास्थ्य कर्मी हाई रिस्क ज़ोन में काम कर रहे थे. स्वास्थ्य कर्मियों ने ऐसे वक्त में कोविड मरीजों की सेवा की जब उनके परिजन भी सेवा करने से कतरा रहे थे. भीषण गर्मी में भी पीपीई किट पहनकर काम करना किसी चुनौती से कम नहीं था. पीएमसीएच के ब्रदर्स हेड जेपी त्यागी बता रहे थे कि पीपीई किट पहनकर वार्डों में कई घंटे ड्यूटी करना तकलीफ भरा रहा है. उनके कई सहकर्मी इसके चलते डीहाईड्रेशन के शिकार भी हो गए, लेकिन फिर भी उनको ड्यूटी पर तैनात रहते देखा है.
गर्मियों में पीपीई किट पहनकर वार्डों में काम करना चुनौती भरा रहा, कई साथी इस दौरान डीहाईड्रेशन के शिकार हो गए, छुट्टियों के कैंसिल हो जाने, और लगातार काम करते रहने से सहकर्मी तनाव में आ चुके थे- जेपी त्यागी, ब्रदर्स हेड, पीएमसीएच
'छुट्टियां रद्द होने से बढ़ा तनाव'
ब्रदर्स के हेड त्यागी ने बताया कि छुट्टियां कैंसिल होने की वजह से काम का तानव बढ़ गया है, लगातार काम करते रहने से लोगों के अंदर तनाव घर गया. हालाकि उन्हें तब राहत मिलती थी जब स्वास्थ्य कर्मी परिवार वालों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात कर लेते थे. हालाकि स्वास्थ्य कर्मी खुद ही इस मानसिक तनाव से धीरे-धीरे बाहर निकल गए.
मेडिकल की पढ़ाई पर असर
पीएमसीएच के कोविड-19 वार्ड के प्रभारी चिकित्सक और अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ अरुण अजय से भी ईटीवी ने बात की. उन्होंने बताया कि कोरोना की वजह से स्वास्थ्य सेवा पर गंभीर असर पड़ा है, खासकर मेडिकल कॉलेजों में. मेडिकल छात्रों की एकेडमिक पढ़ाई बाधित हो गई. पढ़ाई बाधित होने से एग्जाम डिले हो गया. मेडिकल की पढ़ाई में प्रैक्टिकल का सबसे अहम योगदान है, लेकिन एमबीबीएस फर्स्ट ईयर, सेकंड ईयर के छात्र कॉलेज बंद होने की वजह से प्रैक्टिकल करने का अनुभव नहीं प्राप्त कर सके.
साल 2020 लंबे वर्षों के अंतराल के बाद ऐसा साल रहा जिस साल स्वास्थ्य कर्मियों को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा और कोरोना मरीजों के इलाज में अपनी जान जोखिम में डालकर इलाज किया- डॉ अरुण अजय, उपाधीक्षक, पीएमसीएच
लॉकडाउन में घट गई OPD मरीजों की संख्या
उपाधीक्षक डॉक्टर अरुण अजय ने बताया कि लॉकडाउन में पीएमसीएच की OPD में मरीजों की संख्या 2000 से घटर 100 के आसपास सीमित हो गई. इसका प्रमुख वजह था कि विभिन्न जिलों से आने वाली गाड़ियों के परिचालन पर रोक लग गई थी. इसके अलावा डिलिवरी, छोटी-मोटी सर्जरी, जैसे की किसी को पथरी का ऑपरेशन कराना है तो उसे कोविड के चलते ऑपरेशन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा. अस्पतालों में छोटे ऑपरेशन न के बराबर हुए.
कोरोना की जांच के लिए आरटी पीसीआर और रैपिड किट से जांच की व्यवस्था में तेजी आई. जिससे समय पर बीमारी पकड़ में आई और कोरोनावायरस के स्प्रेड करने के रेशियो में काफी कमी देखी गई. साल 2021 की ओर स्वास्थ्य कर्मी उम्मीदों भरी नजर से देख रहे हैं. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि मार्च-2021 तक कोरोना संक्रमण दूर करने के लिए स्वदेशी वैक्सीन आ जाएगी. तब तक इन स्वास्थ्य कर्मियों पर काम का दबाव कम नहीं होने वाला.