पटना: 23 मार्च 2021 बिहार में एक ऐसी कहानी लिख गया, जिससे लोग हतप्रभ भी हैं और अचंभित भी. दरअसल, 23 मार्च को बिहार विधानसभा (Bihar Legislative Assembly) में विधायकों के साथ हुई मारपीट में जो कार्रवाई हुई, उसने बिहार पुलिस के ऐसे जांबाज सिपाही खोज निकाले गए जो कम से कम बिहार के 25 विधायकों पर भारी पड़ते हैं.
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यह हम नहीं कह रहे, बिहार विधानसभा में हुई मारपीट के बाद सरकारी कार्रवाई में जिन दो पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया उन पर आरोप यही है कि मारपीट और झगड़े में जिन 25 विधायकों को चोट आई थी, उसके लिए यही दो पुलिसकर्मी जिम्मेदार हैं. जवाबदेही भी तय कर दी गई और उन्हें निलंबित भी कर दिया गया.
सत्ता में बैठे सरकार के लोगों को छोड़ दिया जाए, तो आम आदमी से लेकर विपक्ष का हर नेता इस चीज को लेकर चर्चा कर रहा है कि जब बिहार पुलिस और नीतीश कुमार के पास ऐसे जांबाज लोग हैं, तो फिर बिहार में कानून व्यवस्था फेल क्यों होती है, हत्याओं का ग्राफ बढ़ता क्यों है, चोरी रूकती क्यों नहीं है.
लेकिन, सियासत जिन सवालों को लेकर फिर से हो रही है, वह सुरक्षा व्यवस्था की है, क्योंकि मानसून सत्र (Monsoon Session) चल रहा है. इसको लेकर एक बार फिर बिहार विधानसभा को तैयार किया जा रहा है. पुलिस की फौज लगाई जा रही है और उन्हें बताया भी जा रहा है कि सदन की कार्यवाही में हिस्सेदार बनना कैसे है.
बिहार विधानसभा का सत्र जब भी शुरू होता है, पुलिस का एक बड़ा घेरा सदन के चारों तरफ खड़ा किया जाता है. बिहार विधानसभा के लिए सत्र को लेकर तैयारी भी पूरी है. तमाम जांबाज पुलिस कर्मियों को तैनात कर दिया गया है, जो सदन की कार्रवाई ठीक ढंग से चले इसके लिए जवाबदेह होंगे.
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लेकिन, बड़ा सवाल है कि इस भीड़ में खड़े तमाम वैसे सिपाही जो कल सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालेंगे, उनमें कई ऐसे हैं जो 25 विधायकों पर भारी पड़ सकते हैं. सरकार की रिपोर्ट में ऐसे ही जांबाज पुलिस कर्मियों को विधानसभा में लगाया जाएगा, जो कम से कम वह कर सकें तो 23 मार्च को हुए सदन में इन जांबाज पुलिसकर्मियों ने दिखाया था.
सदन में सवाल भी उठेंगे और सदन में उठे सवाल का अगर विपक्ष को सही उत्तर नहीं मिला तो विरोध भी होगा. अब किसी को कैसे रोका जाए इसका पूरा प्रशिक्षण विधानसभा में तैनात पुलिस वालों को दे दिया गया है. अब ऐसे में इसबार क्या होता है इसपर सबकी नजर रहेगी.
बड़े अधिकारियों ने निश्चित तौर पर पुलिस वालों को यह बताया होगा कि अगर 23 मार्च जैसी स्थिति बने तो जूता मारना कहां है और लात चलाना कैसे है, क्योंकि दिमाग चलाने से गुरेज करने वाली बिहार की पुलिस यह तो जानती है कि यहां जो कुछ करते हैं अपराधी ही करते हैं, पुलिस कुछ करने की स्थिति में होती नहीं है और जो पुलिस करती है, उससे भी लोकतंत्र की व्यवस्था शर्मसार ही होती है. चाहे वह बालू के खेल का मामला या फिर सड़क पर वसूली का मामला हो.
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यह सवाल इसलिए भी लिखने की जरूरत बन रहा है, क्योंकि बिहार 23 मार्च को जिस कहानी को लिखा गया है, वह लोकतंत्र के इतिहास में एक मिसाल है. सवाल यह भी है कि जिन लोगों को इस लोकतंत्र के मंदिर की मर्यादा ही नहीं पता है, उन लोगों को ड्यूटी पर लाया क्यों गया. दो ही सही जिन्हें निलंबित किया गया क्या उन्हें पता नहीं था कि लोकतंत्र का मंदिर है, जहां से नीतियां बिहार के लिए बनती हैं.
पुलिस के लिए भी यहीं से नीतियां बन रही हैं, जिस पर पुलिस लात चला रही है. हालांकि, पुलिस की किसी नीति में लात चलाने जैसा प्रावधान नहीं है. लेकिन बिहार पुलिस और नीतीश की पुलिस कुछ भी कर सकती है. सिवाय इसके कि बिहार में अपराध रुक जाए.
विधानसभा सत्र में एक बार फिर लोकतंत्र अपनी आत्मा को समेटे किसी कोने में बैठकर तैयारी को देखेगा. नेताओं को सुनेगा और निर्धारित करेगा कि नया बिहार बनाने का जो संकल्प सदन के पटल से पढ़ा जा रहा है, वह निश्चित तौर पर मजबूत और बड़े आयाम खड़ा करेगा.
लेकिन, अगर सब कुछ पुलिस के जूते की नोक पर रहा तो कहा जा सकता है कि जिस जगह से लोकतंत्र की आत्मा बैठकर इसे देखेगी, वहीं फूट-फूटकर रोएगी और विश्व को लोकतंत्र देने वाली यह धरती खड़े हो रहे व्यवस्था और इस तंत्र पर शर्मसार होती रहेगी, क्योंकि तैयारी जो करनी है. उसमें जांबाज तैयार हो गए हैं, बस लोकतंत्र हार रहा है.