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देशरत्न की 136वीं जयंती: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सादा जीवन और उच्च विचार के साथ बिताई पूरी जिंदगी

26 जनवरी 1950 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने. साल 1957 में वे दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. सन 1962 में उन्हें अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी नवाजा गया.

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Published : Dec 3, 2020, 12:38 PM IST

Updated : Dec 3, 2020, 1:54 PM IST

पटना
प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद

पटनाः देश के महान सपूत और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज 136वीं जयंती है. बिहार समेत पूरा देश आज इस महान व्यक्ति को नमन कर रहा है. कई जगहों पर उनकी याद में कार्यक्रम आयोजित किए गए. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी जयंति पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है.

बिहार के जीरादेई गांव में हुआ था जन्म
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को जीरादेई (बिहार) में हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. पिता फारसी और संस्कृत भाषाओं के विद्वान तो माता धार्मिक महिला थीं. वे सादगी पसंद, दयालु और निर्मल स्वभाव के व्यक्ति थे.

स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भुमिका
राजेंद्र प्रसाद बचपन में प्रारंभिक और पारंपरिक शिक्षण के बाद वे छपरा और फिर पटना चले गए. जहां उन्होंने कानून में मास्टर की डिग्री के साथ डाक्टरेट की विशिष्टता भी हासिल की. कानून की पढ़ाई के साथ-साथ वे राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और आजादी की लड़ाई में अहम भुमिका निभाई. डा. राजेंद्र प्रसाद गांधी जी से बेहद प्रभावित थे. भारतीय दौरान कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद
डॉ. राजेंद्र प्रसाद (फाइल फोटो)

महात्मा गांधी के विचारों से थे प्रभावित
महात्मा गांधी ने उन्हें अपने सहयोगी के रूप में चुना था और साबरमती आश्रम की तर्ज पर पटना में सदाकत आश्रम की एक नई प्रयोगशाला का दायित्व भी सौंपा था. राजेंद्र प्रसाद को ब्रिटिश प्रशासन ने 'नमक सत्याग्रह' और 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान जेल में डाल दिया था. वे अपने गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के विचार और महात्मा गांधी से गहरे प्रभावित थे.

सादा जीवन और उच्च विचार के साथ बिताई जिंदगी
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद धर्म, वेदांत, साहित्य शिक्षा, इतिहास या राजनीति हर स्तर पर अपने विचार व्यक्त करते थे. उनकी स्वाभाविक सरलता के कारण वे अपने ज्ञान-वैभव का प्रभाव कभी प्रतिष्ठित नहीं करते थे. 'सादा जीवन, उच्च विचार' के अपने सिद्धांत को अपनाने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपनी वाणी में हमेशा ही अमृत बनाए रखते थे.

स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति का दर्जा हासिल हुआ
आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ ही राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने. वर्ष 1957 में वे दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. इस तरह वे भारत के एकमात्र राष्ट्रपति थे. जिन्होंने लगातार दो बार राष्ट्रपति पद प्राप्त किया था. उन्हें सन् 1962 में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी नवाजा गया.

जवाहर लाल नेहरू के साथ  डॉ. राजेंद्र प्रसाद (फाइल फोटो)
जवाहर लाल नेहरू के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद (फाइल फोटो)

अपने काम के प्रति राजेंद्र प्रसाद हमेशा रहे समर्पित
डॉ राजेंद्र प्रसाद हमेशा अपने काम के प्रति अपने समर्पण के लिए जाने जाते थे. इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद की बहन की मृत्यु 25 जनवरी, 1950 को उस ऐतिहासिक क्षण से पहले हुई थी, जब भारतीय संविधान लागू होने जा रहा था. राजेंद्र प्रसाद भारत गणराज्य के स्थापना समारोह के बाद ही अपनी बहन के दाह संस्कार में शामिल हुए थे.

एशिया महादेश का पहला बारूद कारखाना बनवाया
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 5 नवंबर, 1958 को बेरमो अनुमंडल के गोमिया में एशिया महादेश के पहले बारूद कारखाना का उद्घाटन किया. 90 के दशक में ऑस्ट्रेलिया की कंपनी ओरिका ने इसका अधिग्रहण कर लिया. इसके बाद इसका नाम आईईएल ओरिका पड़ गया. इस बारूद कारखाना में बारूद के अलावा नाईट्रिक एसिड, अमोनिया, नाइट्रो फ्लोराइड का भी उत्पादन होने लगा. यहां निर्मित सामान की खपत पूरे भारतवर्ष के अलावा अरब देशों, चीन, भूटान, इंडोनेशिया, वर्मा व अन्य देशों में होती है.

जीवन के आखिरी पड़ाव में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपना शेष जीवन पटना के निकट एक आश्रम में बिताया, जहां 28 फरवरी, 1963 को बीमारी के कारण उन्होंने अंतिम सांस ली.

पटनाः देश के महान सपूत और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज 136वीं जयंती है. बिहार समेत पूरा देश आज इस महान व्यक्ति को नमन कर रहा है. कई जगहों पर उनकी याद में कार्यक्रम आयोजित किए गए. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी जयंति पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है.

बिहार के जीरादेई गांव में हुआ था जन्म
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को जीरादेई (बिहार) में हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. पिता फारसी और संस्कृत भाषाओं के विद्वान तो माता धार्मिक महिला थीं. वे सादगी पसंद, दयालु और निर्मल स्वभाव के व्यक्ति थे.

स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भुमिका
राजेंद्र प्रसाद बचपन में प्रारंभिक और पारंपरिक शिक्षण के बाद वे छपरा और फिर पटना चले गए. जहां उन्होंने कानून में मास्टर की डिग्री के साथ डाक्टरेट की विशिष्टता भी हासिल की. कानून की पढ़ाई के साथ-साथ वे राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और आजादी की लड़ाई में अहम भुमिका निभाई. डा. राजेंद्र प्रसाद गांधी जी से बेहद प्रभावित थे. भारतीय दौरान कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद
डॉ. राजेंद्र प्रसाद (फाइल फोटो)

महात्मा गांधी के विचारों से थे प्रभावित
महात्मा गांधी ने उन्हें अपने सहयोगी के रूप में चुना था और साबरमती आश्रम की तर्ज पर पटना में सदाकत आश्रम की एक नई प्रयोगशाला का दायित्व भी सौंपा था. राजेंद्र प्रसाद को ब्रिटिश प्रशासन ने 'नमक सत्याग्रह' और 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान जेल में डाल दिया था. वे अपने गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के विचार और महात्मा गांधी से गहरे प्रभावित थे.

सादा जीवन और उच्च विचार के साथ बिताई जिंदगी
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद धर्म, वेदांत, साहित्य शिक्षा, इतिहास या राजनीति हर स्तर पर अपने विचार व्यक्त करते थे. उनकी स्वाभाविक सरलता के कारण वे अपने ज्ञान-वैभव का प्रभाव कभी प्रतिष्ठित नहीं करते थे. 'सादा जीवन, उच्च विचार' के अपने सिद्धांत को अपनाने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपनी वाणी में हमेशा ही अमृत बनाए रखते थे.

स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति का दर्जा हासिल हुआ
आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ ही राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने. वर्ष 1957 में वे दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. इस तरह वे भारत के एकमात्र राष्ट्रपति थे. जिन्होंने लगातार दो बार राष्ट्रपति पद प्राप्त किया था. उन्हें सन् 1962 में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी नवाजा गया.

जवाहर लाल नेहरू के साथ  डॉ. राजेंद्र प्रसाद (फाइल फोटो)
जवाहर लाल नेहरू के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद (फाइल फोटो)

अपने काम के प्रति राजेंद्र प्रसाद हमेशा रहे समर्पित
डॉ राजेंद्र प्रसाद हमेशा अपने काम के प्रति अपने समर्पण के लिए जाने जाते थे. इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद की बहन की मृत्यु 25 जनवरी, 1950 को उस ऐतिहासिक क्षण से पहले हुई थी, जब भारतीय संविधान लागू होने जा रहा था. राजेंद्र प्रसाद भारत गणराज्य के स्थापना समारोह के बाद ही अपनी बहन के दाह संस्कार में शामिल हुए थे.

एशिया महादेश का पहला बारूद कारखाना बनवाया
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 5 नवंबर, 1958 को बेरमो अनुमंडल के गोमिया में एशिया महादेश के पहले बारूद कारखाना का उद्घाटन किया. 90 के दशक में ऑस्ट्रेलिया की कंपनी ओरिका ने इसका अधिग्रहण कर लिया. इसके बाद इसका नाम आईईएल ओरिका पड़ गया. इस बारूद कारखाना में बारूद के अलावा नाईट्रिक एसिड, अमोनिया, नाइट्रो फ्लोराइड का भी उत्पादन होने लगा. यहां निर्मित सामान की खपत पूरे भारतवर्ष के अलावा अरब देशों, चीन, भूटान, इंडोनेशिया, वर्मा व अन्य देशों में होती है.

जीवन के आखिरी पड़ाव में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपना शेष जीवन पटना के निकट एक आश्रम में बिताया, जहां 28 फरवरी, 1963 को बीमारी के कारण उन्होंने अंतिम सांस ली.

Last Updated : Dec 3, 2020, 1:54 PM IST
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