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नवादा : भक्तों के दुख हरती है बुधौली गांव की देवी मां, नवरात्र में होती है खास पूजा - बुधौली मठ

कोरोना संक्रमण के कारण इस साल नवरात्र की चमक फीकी पड़ गई है. सार्वजनिक रूप से त्योहार मनाने को लेकर गाइडलाइन जारी की गई है.

नवादा
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Published : Oct 22, 2020, 9:13 PM IST

नवादा(बुधौली): जिले के पकरीबरावां प्रखंड मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर बुधौली की देवी मां, भक्तों के दुख हरती है. नवरात्रि से ही भक्तों की भीड़ मां के दर्शन के लिए उमड़ने लगती हैं. बुधौली मठ परिसर में बना मां का मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र माना जाता है. 52 कोठरी, 53 द्वार के रूप में मशहूर प्रखंड का प्रमुख ऐतिहासिक धरोहर बना बुधौली मठ अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. वहीं मठ परिसर में स्थित देवी मां अपने यश के लिए जानी जाती है.

बताया जाता है कि प्रारंभ से ही मंडप में मूर्ति निर्माण और पूजा पाठ का कार्य मठ महंत के द्वारा ही कराया जा रहा है. महंत राम धनपुरी के समय से प्रारंभ हुआ मां का पूजा अर्चना का कार्य, वर्तमान में यशवंत पूरी के द्वारा कराया जा रहा है. मंदिर के खजांची और पुरोहित गिरीशकांत पांडेय ने बताया कि पूजा-अर्चना को लेकर मंदिर में 84 कलश स्थापित कर मां की पूजा अर्चना करने की परंपरा है. जमींदारी के समय मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए लगभग 51 ब्राह्मण होते थे, परंतु वर्तमान में पांच ब्राह्मणों के द्वारा पूजा अर्चना का कार्य किया जा रहा है.

मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी
मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी

लोगों की है अपार आस्था
मंदिर पुजारी ने बताया कि पहले मंडप बनाकर मां की पूजा की जाती थी. 1991-95 में महंत रामधनपुरी के द्वारा मठ परिसर में ही मां के लिए एक भव्य मंडप का निर्माण कराया गया, तब से लेकर आज तक मां उसी मंडप में विराजती आ रही हैं. ग्रामीण बताते हैं कि गांव के आगे 20 बीघा का तालाब है इसमें देश के संपूर्ण तीर्थों की नदियों का जल लाकर डाला गया है. लोग बताते हैं कि इस तालाब में केवल गाय ही पानी पी और नहा सकती है. इस जल से भैंस को धोने पर उसकी मृत्यु हो जाती है.

दर्शन के लिए दूर-दराज से पहुंचते हैं लोग
मंदिर पूजा अर्चना में लगे रविंद्र पांडेय, संजय पांडेय, उदय पांडेय, रोशन पांडेय सहित कई अन्य ने बताया कि बुधौली की मां भक्तों के दुख हर लेती है. सच्चे दिल से मुरादे मांगने पर बुधौली की देवी मां कभी खाली हाथ वापस नहीं लौटती. अश्विन माह मे इन दिनों समीपवर्ती गांवों से भी श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आने लगे हैं. नवरात्र के दिनों में यहां आस्था का जनसैलाब उमड़ता है. लेकिन इस साल कोरोना के कारण सबकुछ फीका है और वीरानी पसरी हुई है.

नवादा(बुधौली): जिले के पकरीबरावां प्रखंड मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर बुधौली की देवी मां, भक्तों के दुख हरती है. नवरात्रि से ही भक्तों की भीड़ मां के दर्शन के लिए उमड़ने लगती हैं. बुधौली मठ परिसर में बना मां का मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र माना जाता है. 52 कोठरी, 53 द्वार के रूप में मशहूर प्रखंड का प्रमुख ऐतिहासिक धरोहर बना बुधौली मठ अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. वहीं मठ परिसर में स्थित देवी मां अपने यश के लिए जानी जाती है.

बताया जाता है कि प्रारंभ से ही मंडप में मूर्ति निर्माण और पूजा पाठ का कार्य मठ महंत के द्वारा ही कराया जा रहा है. महंत राम धनपुरी के समय से प्रारंभ हुआ मां का पूजा अर्चना का कार्य, वर्तमान में यशवंत पूरी के द्वारा कराया जा रहा है. मंदिर के खजांची और पुरोहित गिरीशकांत पांडेय ने बताया कि पूजा-अर्चना को लेकर मंदिर में 84 कलश स्थापित कर मां की पूजा अर्चना करने की परंपरा है. जमींदारी के समय मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए लगभग 51 ब्राह्मण होते थे, परंतु वर्तमान में पांच ब्राह्मणों के द्वारा पूजा अर्चना का कार्य किया जा रहा है.

मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी
मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी

लोगों की है अपार आस्था
मंदिर पुजारी ने बताया कि पहले मंडप बनाकर मां की पूजा की जाती थी. 1991-95 में महंत रामधनपुरी के द्वारा मठ परिसर में ही मां के लिए एक भव्य मंडप का निर्माण कराया गया, तब से लेकर आज तक मां उसी मंडप में विराजती आ रही हैं. ग्रामीण बताते हैं कि गांव के आगे 20 बीघा का तालाब है इसमें देश के संपूर्ण तीर्थों की नदियों का जल लाकर डाला गया है. लोग बताते हैं कि इस तालाब में केवल गाय ही पानी पी और नहा सकती है. इस जल से भैंस को धोने पर उसकी मृत्यु हो जाती है.

दर्शन के लिए दूर-दराज से पहुंचते हैं लोग
मंदिर पूजा अर्चना में लगे रविंद्र पांडेय, संजय पांडेय, उदय पांडेय, रोशन पांडेय सहित कई अन्य ने बताया कि बुधौली की मां भक्तों के दुख हर लेती है. सच्चे दिल से मुरादे मांगने पर बुधौली की देवी मां कभी खाली हाथ वापस नहीं लौटती. अश्विन माह मे इन दिनों समीपवर्ती गांवों से भी श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आने लगे हैं. नवरात्र के दिनों में यहां आस्था का जनसैलाब उमड़ता है. लेकिन इस साल कोरोना के कारण सबकुछ फीका है और वीरानी पसरी हुई है.

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