नवादा: बिहार के नवादा जिले में रेशम का ककून (Silk Cocoon In Nawada) पाया गया है. जिले के हिसुआ स्थित केशवपुर से बाभनौर ग्राम के बीच सड़क किनारे पाए गए हजारों की संख्या में यह ककून बर्बाद हो रहे हैं. यह ककून रेशमी वस्त्र बनाने में काम आता है, जो हमेशा से लोगों की पहली पसंद रही है. यह मुख्यत रेशम कीट से ही प्राप्त होता है.
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भारत में लगभग 2,379 मिट्रिक टन रेशम का उत्पादन (Silk Production In India) होता है. लगभग 3,000 करोड़ रुपये वार्षिक आय रेशम से प्राप्त होती है. रेशम उत्पादन लगभग 8 राज्यों में होता है. इससे लगभग 76 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त है. वहीं बिहार राज्य में भी कुछ वर्ष पूर्व तक रेशम उत्पादन एवं निर्माण का कार्य हुआ करता था. पकरीबरावां खादी भंडार के व्यवस्थापक युगल किशोर प्रसाद ने बताया कि लोगों की जागृति के अभाव में रेशम कीट का ककून बर्बाद हो रहा है. उन्होंने बताया कि रेशम के उत्पादन के लिए इसी ककून को अच्छी कीमत पर खरीदकर झारखंड के चाईबासा से लाया जाता है. नवादा में मिलने वाले ककून तसर सिल्क के हैं.
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नवादा का भी तसर कभी भागलपुर और बनारस के जैसे ही प्रसिद्ध था. इस उद्योग के लिए प्रदेश के नवादा स्थित कादिरगंज की भी खूब प्रसिद्धी रही है. एक समय ऐसा भी था कि जब यहां के बुनकरों की कलाओं के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे. यहां के रंग-बिरंगे वस्त्र को देखने के लिए देशबर से लोग आया करते थे. लेकिन अब यहां तसर कपड़े का उत्पादन करीब-करीब समाप्त हो चुका है. कहा जाता है कि सभी धागों में रेशम का धागा सबसे उम्दा होता है. यही वजह है कि रेशमी वस्त्र लोगों की पहली पसंद होती है.
रेशम रेशम कीट से प्राप्त होता है. रेशम कीट ऐसा जीव है, जिससे रेशम बनता है. इसका वैज्ञानिक नाम Bombyx Mori है. विश्व में रेशम का प्रचलन सर्वप्रथम चीन से प्रारंभ हुआ था. रेशम से बनें कपड़े और अन्य वस्तुएं सबके मन को भाती है. परन्तु सवाल यह उठता है कि आखिर रेशम बनता कैसे है. कैसे रेशम कीट, रेशम का उत्पादन करता है.
यहां आपको बता दें कि शहतूत की पत्तियों पर रेशम के कीड़े का लार्वा ककून में रहता है. 1920 में ही खोज कर ली गई थी कि ककून फ्लोरोफोर नामक चमकीले पदार्थ का बना होता है. लार्वा इस ककून में रेशम पैदा करता रहता है. रेशम निकालने के लिए इन ककून को उबाल दिया जाता है, ताकि इसका लार्वा मर जाए और ककून पानी में घुल जाए और रेशम को निकाल लिया जाए.
क्या पानी में ककून उबालने पर फ्लोरोफोर रेशम के साथ जाता है? दरअसल, जांच में पता चला कि फ्लोरोफोर नहीं मिला. फिर पानी के परीक्षण से पता चला कि उसमें अच्छी गुणवत्ता का फ्लोरोफोर है. इसी तरह इसके एंटीऑक्सीडेंट गुणों का परीक्षण किया गया, तो यह बेहतरीन किस्म का एंटीऑक्सीडेंट भी निकला. इसके बाद गर्म पानी में सोडियम सिलीकेट डालकर गंदे पानी से फ्लोरोफोर को अलग हटा लिया गया और फिर स्पीरिट (मिथनॉल एथनॉल मिला एल्कोहल) की मदद सोडियम सिलीकेट फ्लोरोफोर को अलग कर लिया.
एक डॉक्टर ने बताया था 100 लीटर पानी में जितने कोकून उबाले जाते हैं, उससे करीब 600 ग्राम रेशम निकलता है. इसकी कीमत 6 से 8 हजार रुपये तक उसकी गुणवत्ता के लिहाज से होती है. अब इसी पानी से प्रक्रिया के जरिए 20 से 60 ग्राम तक फ्लोरोफोर भी प्राप्त किया जा सकता है. जिसकी कीमत 8 से 10 हजार रुपए तक होती है.
- विश्व में रेशम का प्रचलन सर्वप्रथम चीन से प्रारंभ हुआ था.
- भारत रेशम की सभी पांच ज्ञात वाणिज्यिक किस्मों (मलबरी, ट्रॉपिकल टसर, ओक टसर, इरी और मूंगा) का उत्पादन करने वाला एकमात्र देश है. देश में सबसे ज्यादा मलबरी किस्म के रेशम का उत्पादन होता है.
- 1943 में केंद्रीय रेशम अनुसंधान प्रक्षेत्र, बहरामपुर (पंश्चीम बंगाल) में स्थापित किया गया था.
- भारत में सबसे अधिक शहतूत रेशम कीट (Bombyx Mori) का पालन किया जाता है.
- रेशम का धागा प्रोटीन है जबकि कपास एवं जूट का सूत सेल्यूलोज होता है.
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